Poetry: : आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस... | Naya Savera Network
नया सवेरा नेटवर्क
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस...
विधाता...!
अगर अपने उत्पादों पर...
एक्सपायरी डेट लिखकर,
धरा पर भेजते...
सच मानो मित्रों...
आवश्यकता ही नहीं होती,
आईपीसी... सीआरपीसी... या...
बीएनएस... बीएनएसएस की...
अपराधों की संख्या में भी...!
ऑटोमैटिक घटोत्तरी हो जाती...
इसी तरह... अगर उत्पादों को...
यान्त्रिक रूप से फिट करते...!
आवश्यकतानुसार दुकानों पर,
पार्ट्स आसानी से बिकते मिलते
समय-समय पर बदले भी जाते...
निश्चित ही... दुःख-दारिद्र्य और...
काम-क्रोध, लोभ-मोह रहित...!
यही सृष्टि....सुन्दरतम होती...
मित्रों...विधाता के मन में... तब...
कैसा विचार रहा होगा...
पता नहीं कर पाया है कोई अब तक
पर मनुष्य... विधाता का खिलौना...
धरती का स्व-घोषित बुद्धिमान प्राणी
विधाता की ऐसी ही गलतियों पर...!
आज की तारीख में...
निरन्तर शोध कर रहा है...
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस...!
शायद इसी शोध की कड़ी में,
बढ़ता हुआ चरण है...
वैसे तो कुछ विद्वान,
यह भी कहते हैं कि...
श्रम, सृष्टि और सभ्यता के लिए...!
ऐसा विकास एक ग्रहण है...
पता नही असली सच क्या है... पर...
सलाह मेरी मानो मित्रों...
ऐसे परिवर्तन और विकास पर,..
गौर फरमाओ-गहन मंथन करो...
फिर तय करो कि...!
मनुष्य विधाता की गलतियों का
परिहार कर रहा है... या फिर...
खुद ही विधाता होने का...!
कल्पित प्रयास कर रहा है...
रचनाकार—— जितेन्द्र दुबे
अपर पुलिस उपायुक्त, लखनऊ