मातृ पितृ पूजन दिवस का आगाज़-,माता-पिता से गुस्ताखी अक्षम्य अपराध | Naya Savera Network



  • माता-पिता एवं गुरुजनों के हम ऋणी हैं,उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करके आशीष पाकर जीवन में आगे बढ़ने का अवसर है 
  • वर्तमान डिजिटल व पाश्चात्य प्रवृत्ति युग में युवाओं को माता- पिता के लिए समय नहीं, मातृ- पितृ पूजन दिवस से सराहनीय जन जागरण-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र 

नया सवेरा नेटवर्क

गोंदिया- वैश्विक स्तरपर दुनियाँ में भारत की प्रतिष्ठा एक सुसंस्कारी आध्यात्मिक संस्कृति मान्यताओं प्रथाओं महिलाओं को देवी तुल्य स्थान व माता-पिता को संपूर्ण सृष्टि में श्रेष्ठ स्थान पर देखा जाता है। परंतु वर्तमान कुछ दशकों से पाश्चात्य संस्कृति की छाया भारत पर भी पड़ती हुई दिखाई दे रही है। यह मेरी निजी राय है कि वर्तमान मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटीजंस (अमेंडेड) एक्ट  2019 नाकाफी व अपर्याप्त सिद्ध होरहा है।अब समय आ गया है कि माता-पिता बुजुर्गों के साथ दुर्व्यहर, बुरा व्यवहार,अपमान व प्रताड़ित करने से रोकने के लिए एक जन जागरण अभियान की जरूरत है जिसे मातृ-पितृ दिवस के रूप में हर शहर हर गांव हर मोहल्ले  में मनाकर जनजागरण करने की खास जरूरत है।इसी कड़ी में मैं रविवार दिनांक 16 फरवरी 2025 को रईस सिटी गोंदिया के संत कंवरराम मैदान पर रात्रि चल रहे मातृ-पितृ पूजन दिवस की ग्राउंड रिपोर्टिंग की, जहां माता-पिता को सम्मान देने के गुण सिखाने,मार्गदर्शन करने व माता-पिता की पूजा आरती घुमाकर करने,उनके चरणों में करीब 10-15 मिनट शीष झुककर क्षमादान माँगने का क्रम मैं देखकर गदगद हो उठा और इस विषय पर तुरंत आर्टिकल लिखने की ठानी और प्रक्रिया शुरू कर दी। चूँकि भारतीय संस्कृति माता-पिता का सम्मान व पूजन के लिए है, परंतु इसके विपरीत आज उनका अपमान प्रताड़ना कर उनका उपहास उड़ाया जाता है, जिसे रोकने के लिए यह जनजागरण अभियान चलाया गया था। करीब 14 वर्षों से यह अभियान चलाया जा रहा है, जिसे हर शहर गांव मोहल्ले में हर समाज धर्म जाति को मातृ- पितृ पूजन दिवस मनाने की खास जरूरत है, विशेषकर इसे किसी पाश्चात्य मौज के दिवस पर मानना, मेरे विचार से बेहतर रहेगा। चूँकि माता-पिता गुरुजनों के हम ऋणी हैं, उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करके, आशीष पाकर जीवन में आगे बढ़ाने के अवसर हैं, तथा वर्तमान डिजिटल व पाश्चात्य  प्रवृत्ति युग में युवाओं को माता-पिता के लिए समय नहीं है, इसीलिए माता-पिता पूजन दिवस मनाना जन जागरण के लिए सराहनीय कार्य है। इसलिए आज हम ग्राउंड रिपोर्टिंग के आधार पर इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, मातृ पितृ पूजन दिवस का आगाज़, माता-पिता से गुस्ताखी अक्षम्य अपराध है। 
साथियों बात अगर हम वर्तमान समय में माता-पिता बुजुर्गों के अपमान की करें तो,वैश्विक स्तरपर इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंट मीडिया के सहयोग से देख पढ़ सुन रहे हैं कि दुनियाँ में असंख्य माता पिता वह सीनियर सिटीजन बुजुर्ग व्यक्ति हैं जो अपनी संतान की दुत्कार सह रहे होंगे। आज मॉडर्न सोसाइटी का तर्क देकर माता-पिता, बुजुर्गों से दुर्व्यवहार किया जाता है। आज थोड़ी-थोड़ी बात पर माता-पिता बुजुर्गों को कहा जाता है कि चुपचाप बैठो, तुमको क्या समझता है, तुम सठिया गए हो अगर पिता पढ़ा लिखा है तो पढ़ा लिखा गंवार या बुजुर्ग गवार की संख्या दी जाती है।हालांकि भारत एक आध्यात्मिक,माता पिता का संबंध, बुजुर्गों की सेवा करने के विचारों महान मानवों का देश है। परंतु आज वह केवल उदाहरण बनकर रह गए हैं । प्रैक्टिकली अगर माता-पिता बुजुर्गों के जीवन में झांक कर देखा जाए तो आज की तारीख में उन्हें दुत्कार ही मिलती रहती है। मैंने अपनी गोंदिया राइस सिटी में इसे रिसर्च के तौर पर माता-पिता द्वारा 1 साल के बच्चों की परवरिश पर पूरा एक महीना ध्यान रखा था तो देखा वह अपने बच्चों को, माता-पिता अपने पलकों पर बैठा कर प्यार करते हुए ए ग्रेड का पालन पोषण कर रहे थे, तो दूसरी तरफ एक परिवार को देखा जिसमें जिसके दोनों बच्चे मुंबई पुणे और विदेश में रह रहे थे और मां लाचार होकर किचन में तो पिता छोटी सी दुकान पर! अपनें बुजुर्ग दौर के दिन मेहनत करके काट रहा था।तीसरी जगह देखा तो बच्चे अपने माता-पिता को दुत्कार कर रौब से बात कर रहे थे कि मानो वह उसके माता पिता नहीं उसके घर के नौकर है। यह तीनों ग्राउंड रिपोर्टिंग किस्से देखकर मैं दंग रह गया। यानें बच्चों को हम कितना लाड से पालते पोछते पढ़ाते और लाखों के पैकेज की नौकरी योग्य बनाते हैं कई बार तो उन्हें ढूंढ कर नौकरी भी दिलाते हैं, तो दूसरी ओर वह जाब करने बड़ी सिटियों या विदेश जाकर बस जाते हैं और माता-पिता बुजुर्गों को भूल जाते हैं। अगर बच्चे माता-पिता के साथ भी रहते हैं तो माता- पिता बुजुर्गों को नौकर बना कर रखते हैं, जो भारतीय सभ्यता संस्कृति के लिए शर्म की बात है। जिसे रेखांकित करना होगा।
साथियों बात अगर हम माता- पिता बुजुर्गों के अपमान को रोकने व माता-पिता के सम्मान में एक कानून बनाने की करें तो, हम प्रस्तावित कानून में माता- पिता व वरिष्ठ नागरिक(अत्याचार अपमान दुर्व्यवहार निवारण) विधेयक 2025 की जरूरत की करें तो, हमारा देश महान संतानों की भूमि है,यहां बच्चों से अपने बुजुर्ग माता-पिता की उचित देखभाल करने की अपेक्षा की जाती है, लेकिन पीड़ादायक है कि नैतिक मूल्यों में इस कदर गिरावट आ गई है कि अपना सुख-चैन जिन बच्चों के लिए माता-पिता त्याग कर जीवन खत्म कर देते हैं, वही बच्चे उन्हें बुढ़ापे में दो जून की रोटी और मोहब्बत के लिए तरसा रहे हैं।आजकल कई मामलों में बच्चे अपने माता-पिता से संपत्ति प्राप्त करने के बाद उन्हें छोड़ देते हैं।जो न सिर्फ दुखद है, बल्कि सामाजिक और नैतिक मूल्यों में निरंतर आ रही गिरावट का प्रतीक भी है।हमारे सामाजिक मूल्यों में तेजी से आ रहे बदलाव की वजह से आज बुजुर्गों को अपनी ही संपत्ति में सुरक्षित रहने और संतानों की प्रताड़ना से बचने के लिये उन्हें अपने स्वअर्जित घर से बेदखल करने के लिए अदालतों की शरण में आना पड़ रहा है. इस तरह की उद्दंड संतानों को माता पिता के घर से बेदखल करने के आदेश भी अदालत दे रही हैं लेकिन यह सिलसिला बदस्तूर जारी हैसामाजिक मूल्यों में आ रहे ह्रास का ही नतीजा है कि संपत्ति के लालच में मौजूदा दौर में बेटा-बहू और बेटी द्वारा अपने माता-पिता को बेआबरू करने की घटनाएं और इससे मजबूर होकर बुजुर्गो द्वारा कानूनी रास्ता अपनाने के मामले बढ़ रहे हैं।परिवारों में बुजुर्ग माता पिता और दूसरे वृद्ध सदस्यों को बोझ समझा जाने लगा है।कई बार तो उन्हें उनके ही स्वअर्जित घर से बेदखल करके दर बदर की ठोकरें खाने के लिये छोड़ दिया जा रहा है या फिर सुशिक्षित बेटे बहू उन्हें वृद्धाश्रम पहुंचा रहे हैं। हमारा देश महान संतान श्रवण कुमार की भूमि है, यहां बच्चों से अपने बुजुर्ग माता-पिता की उचित देखभाल करने की अपेक्षा की जाती है, लेकिन पीड़ादायक है कि नैतिक मूल्यों में इस कदर गिरावट आ गई है कि अपना सुख-चैन जिन बच्चों के लिए माता-पिता त्याग कर जीवन खत्म कर देते हैं, वही बच्चे उन्हें बुढ़ापे में दो जून की रोटी और मोहब्बत के लिए तरसा रहे हैं। आजकल कई मामलों में बच्चे अपने माता-पिता से संपत्ति प्राप्त करने के बाद उन्हें छोड़ देते हैं. जो न सिर्फ दुखद है, बल्कि सामाजिक और नैतिक मूल्यों में निरंतर आ रही गिरावट का प्रतीक भी है। 
साथियों बात अगर हम आदि अनादि काल से भारत माता की धरती पर माता-पिता को सर्वश्रेष्ठ गुरु मानने की करें तो वैश्विक स्तरपर आदि अनादि काल से भारत माता की धरती पर माता-पिता को सर्वश्रेष्ठ गुरू मानने के अनेकों या यूं कहें कि अनगिनत उदाहरण से इतिहास भरा पड़ा है परंतु वर्तमान परिपेक्ष में मैं यह महसूस कर रहा हूं कि समाज का एक बहुत बड़ा तबका अपने जीवन शैली को परिवर्तित करने में मुस्तैद है।आदि-अनादि काल से हमारे भगवानों की पूजा अर्चना हो रही थी परंतु वर्तमान समय में उपवास पूजा अर्चना तो क्या उनकी तस्वीर भी हटा दी गई है और बहुत ही जोर-शोर से नए आधुनिक बाबाओ गुरुवारों की सेवा में मुस्तैद हो गए हैं।अलग-अलग स्तरपर उनकी गुरु दीक्षा लेकर केवल उनके ही हो गए हैं।यहां तक कि अपने माता पिता का दर्जा भी अपने उस गुरुवार से कम कर दिया है।मैं देख रहा हूं कि आजकल उन भक्तगणों सेवकों के लिए अपने गुरुवरों की आज्ञा सर्वोपरि हो गईं है,उनपर सर्वस्व निषेश्वर कर देते हैं। जबकि अपने माता-पिता की अवज्ञा करने में बिल्कुल पीछे नहीं हटते उनका सम्मान की जगह अपमान करते हैं, उनके लिए अपने माता-पिता से भी बड़े गुरुवर हो गए हैं जो मेरा मानना है कि उचित नहीं है, मेरे माता-पिता ही सरोवर सर्वोपरि हैं,उसके बाद मेरे गुरुवर हैं। चूंकि शास्त्रों में भी आया है,माता गुरुतरा भूमेःपिता चोच्चत्रं च खात्।भावार्थ-माता पृथ्वी से भारी है।पिता आकाश से भी ऊँचा है। 
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विशेषण करें तो हम पाएंगे कि मातृ पितृ पूजन दिवस का आगाज़-,माता-पिता से गुस्ताखी अक्षम्य अपराध।माता-पिता एवं गुरुजनों के हम ऋणी हैं,उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करके आशीष पाकर जीवन में आगे बढ़ने का अवसर है।वर्तमान डिजिटल व पाश्चात्य प्रवृत्ति युग में युवाओं को माता-पिता के लिए समय नहीं, मातृ-पितृ पूजन दिवस से सराहनीय जनजागरण है।

-संकलनकर्ता लेखक - क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र 9284141425

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