Lucknow News : सीएम योगी ने विधानभवन के मुख्य द्वार का किया उद्घाटन | Naya Savera Network
- विधानसभा के बजट सत्र से पहले आयोजित कार्यक्रम में सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेतागण रहे मौजूद
नया सवेरा नेटवर्क
लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा के बजट सत्र से पहले सोमवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानभवन के मुख्य द्वार का उद्घाटन किया। इस अवसर पर विधानसभा परिसर में विभिन्न भित्तिचित्रों का अनावरण भी किया गया। विधानसभा को हाईटेक और अधिक कलात्मक बनाने के क्रम में इस कार्य को पूरा किया गया है। नव निर्मित भित्तिचित्रों में भारत की ऐतिहासिक घटनाओं और राजनीतिक व्यवस्था को उकेरा गया है। इनमें गीता के विभिन्न प्रसंग भी दर्शाए गए हैं, इससे विधान भवन अब और भी अधिक भव्य और आकर्षक दिखने लगा है। पहले लकड़ी का गेट हुआ करता था, जिसे अब अत्याधुनिक और नक्काशीदार स्टील के मजबूत गेट में बदल दिया गया है। विधानसभा के सौंदर्यीकरण और आधुनिकीकरण के लिए लगातार कार्य किए जा रहे हैं। विधानसभा को तकनीकी रूप से उन्नत करने के साथ-साथ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। कार्यक्रम में विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना, नेता सदन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना, नेता विपक्ष माता प्रसाद पांडेय और कांग्रेस नेता अराधना मिश्रा 'मोना' उपस्थित रहे। कार्यक्रम के बाद सर्वदलीय बैठक भी आयोजित की गई, जिसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष के प्रमुख नेता शामिल हुए।
मनुष्य की प्रकृति सामन्तवादी है। वह शासन करना चाहता है। औरों को अपने अधीन अपने नियन्त्रण में रखना चाहता है। परिवार का मुखिया, संस्था का प्रमुख, संगठन का नेता- सब वर्चस्व चाहते हैं और इस वर्चस्व कामना में निहित ‘राजस’ भाव स्वयं के लिए एवं अपने जाति-वर्ग के लिए सुख-सुविधाएँ जुटाने का उद्यम करता है। राजतंत्र में राजा लोग अपने लिए, अपने राजपरिवार के लिए, अपने पक्ष के सामन्तों-सरदारों आदि के लिए सुख- सुविधाएं जुटाते थे और जनता के हितों की उपेक्षा करते थे, वर्तमान जनतंत्र में भी यही दुष्प्रवृत्ति दूर-दूर तक दिखाई देती है। भाई-भतीजावाद, वंशवाद, वोट बैंक सुदृढ़ करने की मानसिकता, जनता की गाढ़ी कमाई पर ऐश करने की ऐसी ही दुरभिलाषाओं के कारण आज हमारा जनतंत्र अपना वास्तविक अर्थ खोकर असंतोष और अराजकता की ओर अग्रसर हो रहा है।
संज्ञा बदल जाने से स्वभाव नहीं बदल जाता। इसी प्रकार सामन्ती मानसिकता भी जनतांत्रिक संज्ञा धारण करने से नहीं बदल सकती। अभावों और संकटों से जूझते ऋणग्रस्त देश के जनतांत्रिक ध्वजवाहक के वस्त्रों का पेरिस से धुलकर आना हमारी सामन्ती मानसिकता को मौन समर्थन देने की चूक थी। यदि अपने जनतांत्रिक नेतृत्व की इस सामन्ती प्रवृत्ति को हमने समय रहते समझ लिया होता तो हमारा जनतंत्र भ्रष्टाचार का शिकार न बनता। उसका स्वरूप अधिक लोकमंगलकारी होता। उसकी छवि अधिक उज्ज्वल होती। जनता सदा नेता का, प्रजा सदा राजा का अनुसरण करती है। रावण के राजा रहते राम से युद्धरत रहने वाले लंकावासी विभीषण के राजा बनते ही राम के शरणागत हो जाते हैं।
महात्मा गाँधी जब अपने दीवान परिवार की ऐश्वर्य और वैभवपूर्ण सुख-सुविधाओं को त्यागकर देश सेवा के लिए लंगोटी धारणकर आजादी की लड़ाई में उतरते हैं तो लाखों-करोड़ों भारतीय अपनी व्यक्तिगत सुविधाओं और पारिवारिक उत्तरदायित्विों की परवाह किए बिना उनके पीछे चलकर देशहित में हर संभव त्याग करते हैं किन्तु जब स्वतंत्र भारत का शीर्ष नेतृत्व विलासितापूर्ण जीवनशैली अपनाता है तो धीरे-धीरे हमारे नेता भी बड़ी संख्या में विलासी जीवन जीने के अभ्यस्त हो जाते हैं जिसकी परिणिति व्यापक भ्रष्टाचार के रूप में सामने आती है। सत्ता सेवा का नहीं व्यक्तिगत सुविधाएं संचित करने का साधन बनकर वोफोर्स, हवाला, चारा, व्यापम आदि असंख्य घोटालों का शिकार हो जाती है।