शाश्वत भारतीय सभ्यता की एकता का प्रतीक है काशी तमिल संगमम | Naya Savera Network

शाश्वत भारतीय सभ्यता की एकता का प्रतीक है काशी तमिल संगमम | Naya Savera Network


प्रोफेसर शांतिश्री धुलीपुड़ी,कुलपति, जेएनयू

नया सवेरा नेटवर्क

मुंबई। काशी तमिल संगमम सिर्फ आयोजन नहीं है, बल्कि शाश्वत भारतीय सभ्यता की एकता का प्रतीक है, जिसमें काशी और तमिल भाषाई, आध्यात्मिक और बौद्धिक परंपरा की एकात्मकता दिखती है। इस बार काशी तमिल संगमम का तृतीय संस्करण हो रहा है। इसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 में की, जो अब विशाल और विस्तृत भारतीय ज्ञान परंपरा और उससे जुड़े प्राचीन विद्वानों की मेधा की पुनर्स्थापना कर रही है। इस बार काशी तमिल संगमम का शीर्षक महर्षि अगस्त्य हैं, जो भारतीय ज्ञान परंपरा (IKS) और यहां की दर्शनधारा की घनिष्ठता दर्शाता है। पल्लव और चोल सम्राट अपने शासन काल में समुद्री महाशक्ति के रूप में प्रशांत महासागर क्षेत्र में व्यापार और वाणिज्य किया करते थे। उनकी संवाद की प्राचीन भाषा  तमिल थी। आज भारत के सबसे बड़े राजनेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमिल भाषा के प्राचीन इतिहास, इसके विस्तार और भारतीय संस्कृति को समृद्ध बनाने में इसकी भूमिका को समझा है। पवित्र सम्मिलन 
काशी तमिल संगमम की शुरुआत भारतीय सभ्यता के दो सबसे प्राचीनतम, पवित्र और मेधावी स्थान तमिलनाडु और काशी के बीच सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंध के साथ शुरू होता है। 2022 में "एक भारत, श्रेष्ठ भारत" योजना के अंतर्गत इस हजारों वर्ष पुरानी परंपरा के संबंध को मोदी जी ने पुनर्जीवित करने का प्रशंसनीय कदम उठाया। यह आपसी संबंधों का पुनर्जागरण है, जिसके माध्यम से एक साझा विरासत और ज्ञान परंपरा फिर से दोनों दिशाओं को जोड़ रही है। इसके पहले के दो पुष्पों में इसी एकात्मकता का उत्सव मनाया गया, किंतु इसका तृतीय पुष्प काफी महत्वपूर्ण बन गया है। इसके माध्यम से तमिल भाषाविज्ञान, आयुर्वेद और आध्यात्मिक दर्शन के अतुलनीय महापुरुष महर्षि अगस्त्य के योगदान पर विशेष बल दिया जा रहा है। भारत के उत्तरी और दक्षिणी भागों को जोड़ने में उनका योगदान अविस्मरणीय है। 
इस बार आयोजित तृतीय तमिल संगमम और भी महत्वपूर्ण इसलिए बन गया है, क्योंकि इसी समय प्रयागराज में भारतीय संस्कृति के मील का पत्थर बना भव्य महाकुंभ का आयोजन भी चल रहा है। यह एक अद्भुत सांस्कृतिक संयोग है, जिससे हर भारतीय आह्लादित है। इस प्रकार के परिवर्तनकारी कार्यों की शुरुआत का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदृष्टी को जाता है। सांस्कृतिक संबंधों और मेलजोल के माध्यम से भारतीय सभ्यता के स्रोतों को आज मुख्यधारा में न सिर्फ लाया जा रहा है, बल्कि उसे जनमानस से जोड़ कर अपने अतीत के गौरव को याद दिलाया जा रहा है। जिससे उन्हें सक्रिय रूप से अपनी विरासतों और धारोहरों को पुनः प्राप्त करने की प्रेरणा भी मिल रही है। इसे पुरानी यादों में खोने जैसा न समझा जाए, बल्कि हमारी मौलिक ज्ञान परंपरा के पुनरुद्धार के रूप में समझा जाना चाहिए, जिसे वामपंथी और औपनिवेशिक लाभार्थी विद्वानों ने काफी विद्रूपित कर दिया था। इस प्रकार संगमम के माध्यम से भारत अपने इतिहास को अपने खुद के शब्दों और शर्तों पर लिख रहा है। 
  • महर्षि अगस्त्य: भारत को एक सूत्र में पिरोने वाले संत
भारत के बौद्धिक एवम आध्यात्मिक परंपरा में महर्षि अगस्त्य सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तित्व हैं। उन्हें तमिल भाषा के जनक के रूप में जाना जाता है। उन्होंने तमिल व्याकरण की सबसे पुरानी पुस्तक " आगत्यईयम" की रचना की, जिससे तमिल भाषा में वेदों से जुड़ती हुई भाषाई शिष्टता और सुसुत्रता का संरक्षण हो सका। उनका योगदान साहित्य के साथ ही सिद्धा चिकित्सा में भी रहा, जो कि एक प्राचीन चिकित्सा पद्धति है,  जिसके माध्यम से आज भी करोड़ों लोग समग्र स्वास्थ्य का लाभ ले रहे हैं। 
अपने विद्वतापूर्ण प्रभाव के साथ ही महर्षि अगस्त्य उत्तर और दक्षिण भारत की परंपराओं की एकरूपता का विलक्षण सेतु हैं। उनके दर्शन में भौतिक और आध्यात्मिक ज्ञानोदय का बड़ा संतुलित ज्ञान मिलता है। यह ऐसा दर्शन है जो आधुनिक काल के समाज के लिए भी बहुत उपयोगी है। इस बार के काशी संगमम में उनके जीवन दर्शन को महत्व देना,  उनकी ज्ञान और दर्शन की परंपरा के प्रति भारत का सतत समर्पण दर्शाता है। इसलिए संगमम को महर्षि अगस्त्य पर केंद्रित करके सिर्फ एक बौद्धिक श्रेष्ठता का सम्मान भर नहीं किया, बल्कि भारत की अनूठी सभ्यता के मूल्यों की पुनः अभिव्यक्ति (reassertion) की जा रही है। इसके माध्यम से उन अति सरलीकरण वाले कथनों को करारा जवाब मिल रहा है जिन्होंने भारत की सांस्कृतिक एकता पर कई वर्षों से हमला किया है। महर्षि अगस्त्य की विरासत का उत्सव मनाने से मार्क्सवादी और उपनिवेशवादी इतिहास के लेखकों को भारत के बौद्धिक और आध्यात्मिक सत्य का करारा जवाब भी मिला है। इसने भारत की आध्यात्मिक परंपरा और बौद्धिक विरासत की वैश्विक प्रासंगिकता को भी उजागर किया है। 
  • तमिल संगमम की वैश्विक प्रासंगिकता 
भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण और राष्ट्रवादी अभियान के पोषण के साथ साथ तमिल संगमम के माध्यम से भारत की सौम्य शक्ति (soft power) का दर्शन भी हो रहा है। भारत की बौद्धिक और सांस्कृतिक परंपरा में पश्चिम के प्रभाव वाले वैश्विक विचारों के समकक्ष एक मजबूत वैचारिक विकल्प बनने की क्षमता है। संगमम के मंच से भारत के ज्ञान, विज्ञान और अध्यात्म को प्रस्तुत करके भारत की वैश्विक धारणाओं को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। जैसे कि महर्षि अगस्त्य का प्रभाव सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में फैला है। बौद्ध साहित्य में भी उनकी उपस्थिति से दक्षिण पूर्वी एशिया, तिब्बत और जापान में भी भारतीय दर्शन और अध्यात्म का प्रभाव फैला है। इससे भारत का उन देशों के साथ बहुत नैसर्गिक संबंध जुड़ता है जहां बौद्ध धर्म का निर्णायक प्रभाव है। थाईलैंड, म्यांमार, श्रीलंका और वियतनाम को प्राचीन बौद्ध विरासत के माध्यम से जोड़ा जा सकता है, जिसमें महर्षि अगस्त्य जैसे ऋषि सभ्यता के मेरु पर्वत जैसे बिराजमान हैं। 
महर्षि अगस्त्य की काव्य रचना "अगस्त्य इंदी" में बौद्ध शिक्षाएं, नैतिकता और सदाचार सम्मिलित हैं जिन्हें धम्मपद ग्रन्थ से लिया गया है। इन अंतर्निहित संबंधों को काशी तमिल संगमम के मंच के माध्यम से प्रयोग करके दक्षिण पूर्वी एशिया में भारत अपनी सौम्य शक्ति राजनय (soft power diplomacy) को नई ऊंचाई पर ले जा सकता है। इस क्षमता के पूर्ण सदुपयोग के लिए भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों, वैचारिक समूहों और सांस्कृतिक संगठनों के बीच संस्थागत और सुव्यवस्थित सहयोग स्थापित होना जरूरी है। महर्षि अगस्त्य की परंपरा से जुड़े आयामों पर अंतर्राष्ट्रीय चर्चा, शोध, सांस्कृतिक आदान प्रदान के माध्यम से भारत स्वयं को सभ्यतामूलक नेतृत्व के रूप में स्थापित कर सकता है, जो विश्व समुदाय की व्यवस्था को प्रभावित करेगा। 
  • भविष्य के निर्माण हेतु विरासत की पुनर्प्राप्ति
काशी तमिल संगमम सिर्फ एक बौद्धिक कार्यक्रम नहीं है। यह एक आंदोलन है जिसमें भारत की विरासत के गौरव को पुनर्प्राप्ति, पुनर्स्थापना और पुनर्पुष्टि करते हुए सबसे प्राचीन तमिल भाषा को उसके अतीत से जोड़ेगा। संगम युग में तमिल साहित्य में जिस ऊंचाई को छुआ था उसकी कल्पना भी करना कठिन है। जब पश्चिम पत्थरों और कंदराओं में था तब भी भारत ने उन्हें सभ्यता के सूत्र दिए,लेकिन इसे उल्टा बताया जाता रहा है। वामपंथी और औपनिवेशिक इतिहासकारों द्वारा इतिहास की तोड़ मरोड़ इसका प्रमुख कारण रहा है। महर्षि अगस्त्य जैसे महापुरुष को सामने रखकर आज हम सारी ऐतिहासिक चालाकियों और साजिशों को ठीक कर रहे हैं। क्योंकि भारत सिर्फ एक राष्ट्र राज्य भर नहीं है, यह एक महान सभ्यता और संस्कृति है जो हजारों वर्षों से फलती फूलती रही है। वामपंथियों और विदेशियों के हास्यास्पद इतिहास लेखन से इसे मिटाया नहीं जा सकता है। हमारे शास्त्र और ग्रन्थ प्राचीन हैं जिनमें प्रचुर मेधा है तो हम खुद को किसी वामपंथी बौद्धिक सीमा में क्यों बांधे? राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय ज्ञान परंपरा (IKS) को राष्ट्रीय चेतना से जोड़ कर काशी तमिल संगमम एक सुनहले भविष्य का पथ प्रशस्त और प्रकाशित कर रहा है। अपने गौरव, ज्ञान और संस्कृति को वैश्विक स्वरूप में स्थापित करने का हम सभी के लिए उचित अवसर है। जिसमें हमारे पूर्वजों की ज्ञान साधना सहायक होगी।


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