Poetry: शीत ऋतु में विरह वेदना | Naya Savera Network
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शीत ऋतु में विरह वेदना
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डमरू छंद - जैसे-जैसे ठंडी बढ़ रही है वैसे-वैसे विरहिणी के वियोग की ज्वाला भी धधकती जा रही है। इस डमरू जैसे कठिन छंद में विरह का वर्णन। प्रोत्साहन तो बनता ही है -
बरसत बरफ पवन सन-सन कर,
थर-थर करत बदन परयक पर।
पर घर लखत भरत नयनन जल,
पल-पल कलपत करपत जस घर।
घर-घर बरत अगन जब वट तर,
तन मन जरत दसन कट-कट कर।
कर अब जतन सजन लख मम मन,
तरकश कसत मदन बरसत शर।
सुरेश मिश्र