मुल्क किसका है: संविधान बनाम सनातनी सोच | Naya Savera Network
आनन्द देव यादव
उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में एक घटना ने हमारे समाज और संविधान के मूल्यों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। डा. अशोक बजाज ने ईडीआई सिटी कॉलोनी में अपना मकान डॉक्टर यूसुफ को बेच दिया। डा. यूसुफ अपने परिवार के साथ इस मकान में रहने का सपना देख रहे थे लेकिन उनके इस सपने पर कॉलोनी के तथाकथित सनातनी विरोध का पहरा लगा रहे हैं। विरोध इस हद तक पहुंच गया कि बाकायदा एडीएम और सिटी मजिस्ट्रेट को ज्ञापन सौंपा गया। मांग यह कि मकान की रजिस्ट्री रद्द करायी जाय, क्योंकि डा. यूसुफ मुस्लिम समुदाय से हैं। सवाल यह है कि क्या यह विरोध केवल धर्म के नाम पर है? क्या ईडीआई कॉलोनी का कोई ऐसा नियम जो संविधान से भी ऊपर है?
'संविधान' और 'सनातनी' विरोध
भारत का संविधान हर नागरिक को समानता का अधिकार देता है। धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्र-किसी भी आधार पर भेदभाव की मनाही है। डॉक्टर यूसुफ ने सारी कानूनी प्रक्रियाएं पूरी कर स्टांप ड्यूटी चुकाकर मकान खरीदा। फिर यह विरोध किसके आधार पर हो रहा है? क्या ईडीआई कॉलोनी के नियम संविधान से ऊपर हैं? यह सवाल सिर्फ मुरादाबाद का नहीं है, यह सवाल हर उस मोहल्ले और हर उस इंसान का है जो इस देश को अपना मानता है। क्या संविधान का मूल ढांचा, जिसमें समानता, स्वतंत्रता और बंधुता के अधिकार शामिल हैं, अब कागजों तक सीमित हो गया है?
'सबका साथ, सबका विकास' के नारे की हकीकत
सरकार जब 'सबका साथ, सबका विकास' का नारा देती है तो यह घटना उस दावे की पोल खोल देती है। क्या विकास के इस मॉडल में मुसलमानों के लिए कोई जगह नहीं है? क्या एक डॉक्टर जो अपने परिवार के साथ सम्मानपूर्वक जीवन जीना चाहता है, उसे भी धर्म के आधार पर अलग-थलग कर दिया जाएगा? अगर किसी कॉलोनी में धर्म के नाम पर मकान खरीदने पर रोक लगाई जाती है तो यह न केवल संविधान का अपमान है, बल्कि इंसानियत के खिलाफ भी है। यह देश सिर्फ सनातनियों का नहीं है। यह देश हर उस इंसान का है जो इसे अपना मानता है जो इसकी धरती पर पैदा हुआ है और जो इसके संविधान पर विश्वास करता है।
मुल्क किसका है?
यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि यह देश किसका है। क्या यह देश केवल बहुसंख्यकों का है? क्या अल्पसंख्यकों को अपने वतन में जीने का हक नहीं है? अगर आज डॉक्टर यूसुफ का खरीदा घर उनका नहीं है तो कल कौन सा अधिकार छीना जाएगा?
ईडीआई कॉलोनी में विरोध का यह मामला सिर्फ एक मकान का नहीं है। यह भारतीय समाज के उस कटु सत्य को उजागर करता है, जहां धर्म के नाम पर इंसानियत की दीवारें तोड़ी जा रही हैं। यह घटना संविधान की छाती पर प्रहार है।
मानवता का पतन
जब एक डॉक्टर जो समाज की सेवा करता है, अपने परिवार के साथ सुरक्षित जीवन जीने का अधिकार नहीं पा सकता, तो क्या यह हमारी मानवता का पतन नहीं है? अगर आज हम ऐसे मुद्दों पर चुप रहते हैं, तो कल कोई भी मोहल्ला, कोई भी कॉलोनी, किसी भी धर्म के खिलाफ खड़ी हो सकती है।
क्या यह हिंदोस्तान है?
यह सवाल अब हर भारतीय से पूछा जाना चाहिए। अगर हमारे मोहल्लों में धर्म के आधार पर दीवारें खड़ी होंगी, तो क्या हम खुद को हिंदोस्तानी कहने का हक रखते हैं? अगर एक मुसलमान का खरीदा हुआ घर भी उसका नहीं होगा तो इस मुल्क का संविधान किसके लिए है? अगर संविधान की मूल भावना को खत्म कर दिया जाएगा तो क्या हमारा लोकतंत्र जिंदा रह पाएगा?
संविधान की कसौटी पर
मुरादाबाद की यह घटना भारतीय संविधान की असल परीक्षा है। क्या प्रशासन संविधान के साथ खड़ा होगा या सनातनी विरोध के सामने झुक जाएगा? यह सवाल सिर्फ डॉक्टर यूसुफ का नहीं है, यह सवाल भारत की आत्मा का है। अगर हम अब नहीं बोले तो आने वाले दिनों में धर्म के नाम पर भेदभाव और गहराएगा। यह देश गांधी, अंबेडकर और भगत सिंह का देश है। यह देश उनकी कुर्बानियों का देश है जिन्होंने इस मुल्क को आजाद कराने के लिए जाति, धर्म और वर्ग के भेदभाव से ऊपर उठकर लड़ाई लड़ी। आज इस देश में नफरत की राजनीति और सामाजिक भेदभाव की दीवारें हर दिन ऊंची हो रही हैं। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम संविधान, लोकतंत्र और इंसानियत की हिफाजत करें, वरना यह वतन जिसे हम हिंदोस्तान कहते हैं, सिर्फ नक्शे में बचा रह जाएगा और इसकी रूह खो जाएगी।