Article: मानसिक बीमार के साथ खड़ी सरकार : डॉ. प्रदीप चौरसिया| Naya Savera Network
नया सवेरा नेटवर्क
एक बड़ी आबादी विविध प्रकार की डिसेबिलिटी से जूझ रही है। समय के साथ मुख्य धारा में इनके समावेशन हेतु तमाम प्रयास किए गए हैं। इसी कड़ी में हर साल तीन दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय विकलांगजन दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य डिसेबल लोगों को होने वाली समस्याओं; समाधानों और उनके समावेशन पर बातचीत करना; सरकारों/संगठनों/आमजन की भागीदारी से नीति नियम/आधारभूत संरचना/समावेशी दृष्टिकोण का विकसित करना इत्यादि हैं।
आज विश्व अपने प्रयासों से हुए सकारात्मक बदलावों पर गर्व कर सकता है/खुश हो सकता है! अभी भी लंबा रास्ता तय करना है।
भारत सरकार ने 2016 में नियमावली में कुछ उल्लेखनीय बदलाव करे।
सामाजिक न्याय एवं निःशक्तजन कल्याण विभाग द्वारा दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 के अंतर्गत जागरूकता व अधिकार सुनिश्चित करने के लिए 21 प्रकार की दिव्यांगताओं को शामिल किया गया है। अधिनियम में पूर्व में प्रचलित 7 प्रकार की दिव्यांगताओं के स्थान पर अब 21 प्रकार की दिव्यांगताएं शामिल की गई हैं।अधिनियम के अंतर्गत दिव्यांगता के 21 प्रकार एवं उनके लक्षण जैसे चलन दिव्यांगता, बौनापन, मांसपेशी दुर्विकास, तेजाब हमला पीड़ित, दृष्टि बाधित, अल्पदृष्टि, श्रवण बाधित, कम/ऊंचा सुनना,बोलने एवं भाषा की दिव्यांगता, कुष्ठ रोग से मुक्त, प्रमस्तिष्क घात, बहु दिव्यांगता, बौद्धिक दिव्यांगता, सीखने की दिव्यांगता, स्वलीनता, मानसिक रूगणता, बहु-स्केलेरोसिस, पार्किसंस, हेमोफीलिया, थेलेसीमिया, सिक्कल कोशिका रोग शामिल हैं।
अब शिक्षा और नौकरियों में दिव्यांग जनों को 4% का आरक्षण मिलने लगा है।
जिस महत्वपूर्ण मुद्दे की तरफ़ मैं ध्यान आकर्षित कराना चाहता हूं वह है कि अधिनियम में संशोधन के उपरांत मानसिक रुग्णता(MI) को भी वह सभी विशिष्ट अधिकार मिलेंगे जो अन्य दिव्यांग जनों को मिलता है। यहां समझने वाली बात यह है कि बौद्धिक दिव्यांगता एक अलग कैटेगरी है और मानसिक रुग्णता अलग। अगर आप किसी मानसिक विकार से लंबे समय से जूझ रहे हैं, इलाज़ करा रहे हैं और निर्धारित मानसिक रुग्णता के मानदंड में आते हैं तो उनको भी आरक्षण का लाभ मिलेगा। कम से कम 40% मानसिक रुग्णता होनी चाहिए।दिक्कत यह है कि मानसिक रुग्णता के निर्धारण के लिए जो असेसमेंट की प्रक्रिया है, उसमें बहुत स्पष्टता नहीं है।
आज मानसिक विकारों से जूझ रहे लोगों की भारी तादाद है। मानसिक रोगों/विकारों का इलाज लंबा चलता है;पीड़ित व्यक्ति को कोई काम नहीं देता है; शादी-विवाह में दिक्कत होती है; लोग न तो परेशानियों को समझते हैं और न ही सहयोग की भावना रखते हैं। ऐसे में मेंटली इल लोगों के लिए यह आरक्षण किसी वरदान से कम नहीं है। अब जरूरत है कि असेसमेंट प्रक्रिया को पूर्णतः स्पष्ट और पारदर्शी बनाया जाए। सभी शिक्षण संस्थानों और विभागों को निर्देशित किया जाय कि मानसिक रुग्णता वाले योग्य कैंडिडेट्स को लाभ से वंचित न करें। सभी सक्षम मेडिकल ऑफिसर्स से निवेदन है कि बिना हिचक के, क्राइटेरिया को पूरे करने वाले मानसिक बीमार लोगों का डिसेबिलिटी सर्टिफिकेट बनाएं।
पैर से दिव्यांग से सहानुभूति है तो मानसिक रुग्णता(मेंटल इलनेस)से ग्रसित व्यक्ति से क्यों नहीं!
- डॉ. प्रदीप चौरसिया
कंसल्टेंट न्यूरोसाइकियाट्रिस्ट एंड डायरेक्टर गंगोश्री हॉस्पिटल, गुरुधाम, वाराणसी