ईमेल के आविष्कार में भारतीयों का बड़ा योगदान | Naya Savera Network



  • - 90 के दशक से तेजी से बदले संचार माध्यम
अंकित जायसवाल @ नया सवेरा 
चिट्ठी आई है, आई है, चिट्ठी आई है... चिट्ठी का इंतजार तो हर शख्स को रहता है. सरकारी सेक्टर हो या प्राइवेट या फिर निजी जिंदगी हर क्षेत्र में समय के साथ कबूतरों से शुरू हुआ डाक का सफर ई-मेल (इलेक्ट्रॉनिक मेल) तक पहुंच गया है. सेकेंडों में एक स्थान से दुनिया के किसी कोने में चिट्ठी (मेल) या उसके साथ कुछ भी भेजना डिजिटल रूप से भेजना बहुत ही आसान हो गया है, लेकिन पहले यह सब सोचना भी असंभव था. समय का पहिया घूमता रहता और आज घर बैठे ये सब चीजें आसान हो गई हैं. अब पत्र लिखना और उसे पहुंचने और उसका जवाब पाने के लिए अब न तो लेटर बॉक्स तक जाने की जरूरत पड़ती है और न ही किसी पोस्टमैन का इंतजार करना पड़ता है और न ही आपके पत्र को खोने का अंदेशा रहता है. यह सब आसान कर दिया है इंटरनेट ने. कंप्यूटर के जरिए इंटरनेट की सहायता से दुनिया के किसी कोने में ईमेल के जरिए अपना पत्र पलक झपकते ही भेज सकते हैं. समय के साथ-साथ ईमेल में भी काफी बदलाव हुए और आज लोग गूगल मीट के माध्यम से दुनिया के किसी कोने में बैठे व्यक्ति से वीडियो कान्फ्रेसिंग करके बात भी कर सकते हैं.

  • - मुंबई में पैदा हुए थे ईमेल के आविष्कारक वीए शिवा अय्यदुरई

भारतीय अमेरिकी वीए शिवा अय्यदुरई ने तेजी से संदेश पहुंचाने वाले ईमेल का आविष्कार 1978 में किया था. उस समय वह महज 14 साल के थे. 30 अगस्त 1982 को उनको अमेरिकी सरकार ने आधिकारिक रूप से ईमेल की खोज करने वाले के रूप में मान्यता दी. अय्यदुरई ने वर्ष 1978 में एक कंप्यूटर प्रोग्राम तैयार किया जिसे 'ईमेल' कहा गया. इसमें इनबॉक्स, आउटबॉक्स, फोल्डर्स, मेमो, अटैचमेंट्स आप्शन थे. आज ये फीचर हर ई-मेल सिस्टम के हिस्से हैं. हफ्फिंगटन पोस्ट के अनुसार एर्पानेट, एमआईटी या सेना जैसे बड़े संस्थानों ने ई-मेल की खोज नहीं की. इस प्रकार के संस्थानों का मानना था कि इस प्रकार की प्रणाली तैयार करना मुश्किल है. अय्यदुरई का जन्म 2 दिसंबर 1962 मुंबई में एक तमिल परिवार में हुआ था. 7 वर्ष की आयु में वह अपने परिवार के साथ अमेरिका चले गए.
रे टॉमलिंसन ने १९७२ में पहला ई-मेल संदेश भेजा. उन्होंने ही सर्वप्रथम @ चिन्ह का चयन किया और इन्हीं को ईमेल का आविष्कारक माना जाता है. रे टॉमलिंसन की बात करें तो उन्होंने सिर्फ @ की खोज की थी. बता दें कि ईमेल एड्रेस यूजरनेम और डोमेन नेम से मिलकर बना होता हैं जैसे akjcfb@gmail.com तो इसमें akjcfb यूजरनेम हैं और .com डोमेन नाम. इसमें लगा @ यूजरनेम और डोमेन नेम को जोड़ने का काम करता हैं. रे टॉमलिंसन ने किसी एक नेटवर्क से ही विभिन्न मशीनों के बीच ईमेल भेजने की खोज की थी. इससे पहले कोई भी User एक ही कंप्यूटर से दूसरों के लिए सन्देश लिख सकते थे और इसी कारण इन्हें भी ईमेल का आविष्कारक माना जाता हैं.

  • - भारत में ईमेल सेवा की शुरुआत
स्वतंत्रता दिवस के दिन 15 अगस्त 1995 को भारत में पहली बार इंटरनेट सेवा का इस्तेमाल हुआ. इसके बाद देश में ईमेल का प्रचलन शुरू हो गया. देश में इंटरनेट का आम इस्तेमाल कोलकाता से शुरू हुआ था. पहली लोकप्रिय वेबमेल भी एक भारतीय ने शुरू की थी. दुनिया के पहली वेबमेल सेवाओं में से एक हॉटमेल की शुरुआत 1996 में की गई थी. इसे कैलिफोर्निया में भारतीय मूल के सबीर भाटिया और जैक स्मिथ ने शुरू किया था. 1997 में माइक्रोसॉफ्ट ने 40 करोड़ डॉलर में हॉटमेल का अधिग्रहण किया और एमएसएन हॉटमेल लांच किया. उस समय इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों में यह तुरंत लोकप्रिय हो गया था, लेकिन 2004 में जब जीमेल गीगाबाइट के साथ अस्तित्व में आया तो गूगल की ओर हवा बहने लगी.

  • - दो छात्रों ने मिलकर बनाया था याहू सर्च इंजन
याहू एक सर्च इंजन है, ठीक गूगल के ही तरह यह भी यूजर्स के क्वेरिज को पूरे इंटरनेट में खोज कर उनके सामने सर्च रिजल्ट्स में प्रदर्शित करता है. 1995 में स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के दो स्टूडेंट जेरी यांग और डेविड फिलो ने बनाया था और एक साल बाद यानी 1995 में इए याहू के नाम से लांच किया गया था. याहू कंपनी का मुख्य ऑफिस कैलीफोर्निया में है. याहू ने सबसे पहले एक कमर्शियल वेबसाइट लांच की जिसमें न्यूज़ के माध्यम से खबर और विज्ञापन चलते थे. आज गूगल ने याहू को पछाड़ दिया है. आज सबकी जुबान पे सिर्फ और सिर्फ गूगल का ही नाम है, लेकिन एक वक्त याहू भी सफलता के पायदान पर था. याहू का पूरा नाम Yet Another Hierarchical Officious Oracle होता है. पहले याहू का नाम Jerry’S Guide To The World Wide Web था. याहू की मेल सर्विस याहू मेल के नाम से है. कंपनी ने याहू मैसेंजर 1998 में लांच कर दिया. उस दौर में यह चैटिंग का सशक्त माध्यम हुआ करता था. एक समय ऐसा था जब याहू ने गूगल को खरीदने के दो मौके गंवा दिए थे. जब गूगल ने याहू को उसे खरीदने का ऑफर दिया तब याहू ने दो बार गूगल के ऑफर को ठुकरा दिया और आज अंजाम आप देख ही सकते है याहू को आज कोई पूछता भी नहीं और गूगल के पीछे लोग पागल हुए जा रहे है. याहू ने गूगल के ऑफर को यह कहकर ठुकरा दिया था कि वे नहीं चाहते की याहू से लोग किसी और सर्च इंजिन पर जाए. उस समय गूगल सिर्फ एक सर्च इंजिन था जो कुछ ही सेकंड में यूजर को रिजल्ट दिखा देता था. उस समय याहू को गूगल की 50 लाख डॉलर की रकम ज्यादा लगी थी और आज गूगल 522 अरब डॉलर से भी ज्यादा की कम्पनी है. याहू अपने यूजर तक सीमित रहना चाहता था और गूगल पूरे वर्ल्ड पर राज करना चाहता था और हुआ भी ऐसा ही आज गूगल को लोग सबसे लोकप्रिय सर्च इंजन मानते हैं और कुछ भी सर्च करना हो गूगल पर ही सर्च करते हैं. याहू लगभग खत्म ही हो गया और उसका अस्तित्व अब इतिहास बन गया है. बस अब याहू जापान में 33.5 स्टेक और चीन की दिग्गज ई-कॉमर्स कंपनी अलीबाबा में 15% की हिस्सेदारी रह जाएगी.

  • - हॉटमेल का जन्मदाता भी भारतीय
आउटलुक एक निःशुल्क मेल सेवा उपलब्ध कराने वाला जालस्थल हैं. इसे हॉटमेल के नाम से पहले जाना जाता था. 1996 में हॉटमेल की शुरुआत एक भारतीय सबीर भाटिया ने की. इसे 1997 में माइक्रोसॉफ्ट ने 40 करोड़ डालर में खरीद लिया. इसकी खासियत यह है कि यह बिना माऊस के उपयोग के सरलता से उपयोग करने की आजादी देता है. इसमें संदेशों को आसानी से खोजा जा सकता है. इसके अलावा यह लगभग सभी ब्राउज़र में अच्छे से कार्य करता है. इसके अलावा यह अन्य कुछ मेल सेवा देने वाले की तरह आपको उन्नत पाठ्य में लिखने की सुविधा भी देता है. सबीर की बात करें तो उनका जन्म 30 दिसम्बर 1968 को चंडीगढ़ के सिंधी परिवार में हुआ था. वह एक भारतीय अमेरिकी उद्यमी हैं. भाटिया के पास 200 मिलियन अमरीकी डालर की संपत्ति है. उनके पिता बलदेव भाटिया भारतीय सेना में ऑफिसर के रूप में कार्यरत थे और बाद में वह भारतीय रक्षा मंत्रालय में शामिल हो गए, जबकि उनकी मां दमन भाटिया सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में एक वरिष्ठ अधिकारी के पद पर थीं.

  • - मुंबई से शुरू हुआ रेडिफमेल
गूगल के पहले लोग रेडिफमेल पर ही अपना ईमेल आईडी बनाए थे. रीडिफ डॉट कॉम मुंबई से 1996 में शुरू हुआ यह मुख्यत: भारतीय समाचार, सूचना, मनोरंजन और शॉपिंग वेब पोर्टल है. इसकी स्थापना रीडिफ ऑन द नेट के रूप में हुई. इसका मुख्य कार्यालय मुम्बई में है जबकि शाखा कार्यालय बंगलौर, नई दिल्ली और न्यूयॉर्क नगर में स्थित हैं. एलेक्सा के अनुसार रीडिफ १७वां भारतीय वेब पोर्टल है. रेडिफ डॉट कॉम 1996 में भारत में पंजीकृत पहला डोमेन नाम है. 1998 के आस पास इसने ईमेल की सुविधा भी दी इसे रेडिफमेल के नाम से जाना जाने लगा. बाद में खरीदारी एवं रेडियो सुविधा से इसकी आमदनी काफी बढ़ गई. इसके बाद सन 2000 के प्रारंभ में रीडिफ ने अपने पांव अन्य भाषाओं में भी पसारने शुरू किए. पहले हिन्दी में फिर अन्य भाषाओं में (जैसे तमिल, कन्नड़, बंगाली, गुजराती) समाचार देना शुरू कर दिया. 2000 के मध्य में रीडिफ ने रीडिफ बोल (मेसेन्जर: तुरंत सन्देश के आदान प्रदान का साधन) उतारा. इसमें बोल शब्द को 'बड्डीज़ ऑन लईन' अर्थात अन्तर्जाल पर उपस्थित मित्र शब्द का सूक्ष्म रूप था. 2002 तक रीडिफ ने तमिल, कन्नड़, बंगाली की सुविधा समाप्त कर दी थी. 2003 तक हिन्दी व गुजराती भाषा की सेवा भी बंद कर दी गई थी.

  • - जीमेल का जन्म
जीमेल परियोजना गूगल विकासकर्ता पॉल बुछेइत द्वारा सार्वजनिक करने की घोषणा के कई वर्षों पहले शुरू किया गया था शुरू में केवल गूगल के कर्मचारी इस ईमेल का आंतरिक इस्तेमाल कर सकते थे. अंततः 1 अप्रैल 2004 को गूगल ने जनता के लिए जीमेल की घोषणा की. गूगल द्वारा जीमेल.कॉम के अधिग्रहण से पहले यह डोमेन नाम garfield.com नामक एक मुक्त ईमेल सेवा द्वारा प्रयोग किया जाता था जो कॉमिक स्ट्रिप गारफील्ड का वेबसाइट था एक अलग डोमेन में जाने के बाद, उस सेवा को बाद में बंद कर दिया गया. जीमेल.कॉम डोमेन कुछ देशों में उपलब्ध नहीं है अतः प्रयोक्ता गूगलमेल.कॉम नामक डोमेन का उपयोग करने में सक्षम होते हैं जीमेल सेवा इन दो डोमेनों के बीच विभेद नहीं करता.

  • - ईमेल का इतिहास एक नजर में
१९७२ : पहला ईमेल संदेश
1978 : ई-मेल का अविष्कार
1995 : भारत में पहली बार इंटरनेट सेवा का इस्तेमाल
1995 : याहू की शुरुआत.
1996 : हॉटमेल की शुरुआत एक भारतीय सबीर भाटिया ने की.
1996 : रेडिफ डॉट कॉम की मुंबई से शुरुआत.
2004 : गूगल द्वारा जनता के लिए जीमेल की घोषणा.

  • - सीसी और बीसीसी के बीच अंतर
सीसी की फुल फार्म होती है कार्बन कॉपी यह टेक्स्ट की एक कॉपी होती है सीसी में हम उस व्‍यक्ति का ईमेल एड्रेस लिखते हैं जो सीधा हमसे जुड़ा नहीं होता पर हम उसे टेक्स्ट की कॉपी भेजना चाहते है. बीसीसी मतलब ब्लाइंड कार्बन कॉपी इसमें व्यक्तियों को टेक्स्ट की जानकारी होती है कि उनके अलावा भी किसी दूसरों को टेक्स्ट भेजा गया है

  • - सोशल साइट ऑर्कुट का इतिहास
सोशल साइट ऑर्कुट गूगल समूह द्वारा संचालित किया जा रहा था. ऑर्कुट का प्रयोग सबसे ज्यादा ब्राजील में होता था जिसके बाद भारत दूसरे स्थान पर था. सबसे ज्यादा उपयोग करने वाले 18-25 वर्ष के लोग थे. इसका नाम गूगल समूह के एक कर्मचारी ऑर्कुट बुयुक्कॉक्टेन के नाम पर पड़ा. गूगल ने कहा था कि ऑर्कुट में वीडियो चैट, प्रचार और आसान नेविगेशन शामिल हैं. इसकी सेवा में कहा गया था कि यह उपयोगकर्ता को नए दोस्त बनाने और वर्तमान संबंधों को बनाए रखने में मदद करने के लिए अन्वेषित किया गया है. पहले इसमें खाता खोलने के लिए किसी पूर्व सदस्य के निमंत्रण की आवश्यकता होती थी पर अक्टूबर २००६ के बाद से बिना निमंत्रण के खाता खोलने की सुविधा दे दी गई. अन्य सामाजिक नेटवर्किंग साइटों के आगमन के कारण ऑर्कुट के उपयोग में कमी आई है. ऑर्कुट 30 सितंबर 2014 से बंद कर दिया गया.

  •  2004 में दुनिया में तहलका मचाने आया फेसबुक
2004 में हार्वर्ड के एक छात्र मार्क ज़ुकेरबर्ग ने 'द फेसबुक' की स्थापना की. शुरुआत में यह कॉलेज तक ही सीमित था. कॉलेज परिसर में तेजी से लोकप्रिय होने के बाद कुछ ही महीनों में पूरे यूरोप में पहचाना जाने लगा. अगस्त 2005 में इसका नाम फेसबुक कर दिया गया. फेसबुक में अन्य भाषाओं के साथ हिन्दी में भी काम करने की सुविधा है. 2013-2014 में फेसबुक ने भारत सहित 40 देशों के मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियों से समझौता किया था. इस करार के तहत फेसबुक की एक नई साइट का उपयोग मोबाइल पर निःशुल्क किया जा सकता था. यह जालस्थल फेसबुक का पाठ्य संस्करण था. भारत में रिलायंस कम्युनिकेशंस (जियो) और वीडियोकॉन मोबाइल (2017 से बंद) को यह सेवा प्रदान करना था. इसके बाद शीघ्र ही टाटा डोकोमो (2017 से बंद) पर भी यह सेवा शुरू हो जानी थी. इसमें फोटो व वीडियो के अलावा फेसबुक की अन्य सभी संदेश सेवाएं मिलनी थी, लेकिन फरवरी 2016 में ट्राई ने इस समझौते को रद्द कर दिया. 29 अक्टूबर 2021 को फेसबुक ने अपनी कंपनी का नाम बदलकर 'मेटा' कर दिया है.


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