#Article: विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस | #NayaSaveraNetwork
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लेखक : अतुल प्रकाश जायसवाल |
नया सवेरा नेटवर्क
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के आलोक में आज हम मानसिक स्वास्थ्य पर सारगर्भित चर्चा करेंगे। यह समझना बेहद आवश्यक है कि उत्तम मानसिक स्वास्थ्य और मानसिक बीमारी / परेशानी में क्या अंतर है! सूचनाओं की बमबारी के बीच गलत जानकारियां भी फैल रही है। आज की बातचीत से आप पाठकों में मेन्टल हेल्थ को लेकर मुक्कमल समझ विकसित होगी।जाने माने मनोचिकित्सक डॉ. प्रदीप चौरसिया अपने ज्ञान से हमें लाभान्वित करेंगे।
- मानसिक स्वास्थ्य की परिभाषा:-
मानसिक स्वास्थ्य के अंतर्गत भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक परिदृश्य को शामिल किया जाता है। एक व्यक्ति का सोचना; महसूस करना और काम करने के तरीके का चुनाव आदि उस व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य के दायरे में आता है। विविध परिस्थितियों में हमारी प्रतिक्रिया, तनाव का नियमन और एक-दूसरे से स्थापित संबंधों का नियमन इत्यादि मानसिक स्वास्थ्य के घोतक हैं। जीवन के प्रत्येक चरण - बाल्यावस्था, किशोरावस्था , वयस्क और बुढ़ापा - में मानसिक स्वास्थ्य की महत्ता बराबर है।
- *मानसिक स्वास्थ्य का महत्व:
#बेहतर मानसिक स्वास्थ्य वाला व्यक्ति बेहतर तनाव प्रबंधन करेगा;अपनी भावनाओं को व्यवस्थित ढंग से व्यक्त करेगा; देश/काल/परिस्थिति के अनुसार सटीक निर्णय लेगा।
#एक बच्चे का सर्वांगीण विकास उसके बेहतर मानसिक स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। किसी मेंटल हेल्थ कंडीशन में बच्चा गुस्सा ज्यादा करेगा; स्थिरता की कमी दिखायेगा;अनावश्यक डर/भय दिखाएगा।
#इसी तरह किशोरावस्था में स्थिर मानसिक स्वास्थ्य का बड़ा महत्व है।माना जाता है कि ज्यादातर मानसिक बीमारियों की शुरुआत 14 वर्ष की अवस्था से होती है- और, 24 वर्ष की अवस्था तक बीमारी बिगड़ चुकी होती है।
#उम्र ढलने के क्रम में मानसिक स्वास्थ्य की अनियमितता ही अनिद्रा/तनाव/हाई बीपी और डिमेंशिया को जन्म देती है।
- *मानसिक अस्वस्थता की शुरुआत :-
#बच्चों में : उम्र के हिसाब से शारीरिक गतिविधियों में कमी दिखे;गुस्सा/चिचिड़ापन/खीझ की अधिकता दिखे; आधारभूत समझ में कमी दिखे तो सजग हो जाएँ। ऐसे में सम्भव हो तो मनोचिकित्सक से मिलें, नहीं तो कम से कम बालरोग विशेषज्ञ से मिलकर सलाह जरूर करें।
#किशोरों में: मानसिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से सबसे संवेदनशील अवस्था किशोरावस्था को माना जाता है। मनोविज्ञान में इसे तनाव और तूफान की अवस्था के रूप में बताया गया है। आंकड़े भी बयान करते हैं कि 50% मानसिक बीमारियों के शुरुआती लक्षण 14 वर्ष की अवस्था में दिखाने लगते हैं। नशे की लत भी इसी अवस्था में लगती है.
एक किशोर उखड़ा- उखड़ा रहे; दोस्तों से दूरी बनाए; एक ही कार्य बार-बार करे; हमेशा थका-थका रहे; भरपूर नींद न ले; स्कूल से उसकी परफॉर्मेंस में गिरावट के संदेश मिले; भावनात्मक दुर्बलता दिखाए तो तत्काल मनोचिकित्सक अथवा काउंसलर से मिलकर समस्या को समझने का प्रयास करें।
#वयस्कों में/कामकाजी आबादी में : काम के बढ़ते दबाव के दौर में कामकाजी लोगों में थकान/तनाव/अवसाद/बर्न आउट के मामलों में भयावह गति से बढ़ोत्तरी देखी जा रही है।
कार्यस्थल पर बिगड़ते मानसिक स्वास्थ्य के कारण न केवल लोगों की सेहत खराब हो रही बल्कि अर्थव्यवस्था को भी भारी नुकसान हो रहा है।
यह इतना बड़ा मुद्दा बन चुका है कि वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ मेंटल हेल्थ और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस वर्ष विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस की विषयवस्तु निर्धारित की है- कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दिया जाना जरूरी है.
#बुजुर्गों में: चीजों को भूलना; रात में नींद न आना; भावनाओं पर नियंत्रण न होना; दैनिक गतिविधियों को न कर पाने की स्थिति में चिकित्सकीय सलाह आवश्यक हो जाती है।
*नो हेल्थ विदाउट मेण्टल हेल्थ : ठीक बात है कि दो दशकों पहले वाली बात नहीं रही। लोग मानासिक स्वास्थ्य को लेकर सजग भी हुए हैं.
कोरोना महामारी ने आमजन को बहुत परेशान किया लेकिन मानसिक स्वास्थ्य को लेकर 'ब्लेसिंग इन डिसगाइज' वाली बात साबित हुयी। आज लोग अपनी मैटल हेल्थ कंडीशन्स को खुलकर इजहार कर रहे हैं। तनाव और अवसाद को सच्चाई मान ली गयी है। लेकिन यह बदलाव सकारात्मक परिणामों के साथ नकारात्मक परिणाम भी लेकर आया। आज अपनी बदतमीजी को मानसिक अस्वस्थता बता दी जाती है; बीमारी के 10 लक्षणों में से एक भी अपने स्वभाव से मेल करे तो खुद को बीमार घोषित कर दिया जाता है। सामान्य मानसिक थकान को आधार बनाकर कामधंधा बंद कर दिया जाता है। ऊपर से तुर्रा यह कि आप को जानकारी व सलाह देने वाला कोई मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल नहीं बल्कि सोशल मीडिया/इन्फ्लुएंसर है.
हमें समझना होगा कि जिस प्रकार हृदय, गुर्दा, यकृत इत्यादि की बीमारियां हैं- उनके लक्षण हैं; विशेषज्ञ हैं; इलाज है- ठीक उसी प्रकार मानसिक बीमारियां भी हैं.
आपका शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य, एकदम से जुड़े हुए हैं।
अत्यधिक तनाव आपके हृदय के लिए घातक है तो हृदय की बीमारी आपके अवसाद का कारण बन सकती है।
- *आधारभूत संरचना में बदलाव हो तो बात बने:
-हमारे देश में लगभग 7.5 करोड़ लोग उल्लेखनीय मानसिक रोगों से जूझ रहे हैं।
यह आँकड़ा 2020 तक कुल आबादी का 20% पार कर चुका है।
-अवसाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी बीमारी बन चुकी है
-विश्व स्वास्थ्य संघठन की एक स्टडी के मुताबिक 2012-2030 के टाइम ड्यूरेशन में भारतीय अर्थव्यवस्था को 1.03 ट्रीलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान उठाना पड़ेगा।
-हमारे देश में 15-29 साल की आबादी में मुत्यु का सर्वप्रमुख कारण आत्महत्या है।
-हमारे देश में 10 लाख लोगों पर केवल 3 मनोचिकित्सक उपलब्ध हैं।
-भारत में मानसिक स्वास्थ्य पर किया जाने वाला कुल खर्च सम्पूर्ण हेल्थ बजट की मात्र 1.3% है.
-प्रति एक लाख की आबादी पर 0.07 मनोवैज्ञानिक हैं.
-प्रति एक लाख की आबादी पर 0.07 समाजिक कार्यकर्ता हैं.
-प्रति एक लाख की आबादी पर 0.004 मानसिक स्वास्थ्य को समर्पित संस्थान हैं.
- *सरकारी प्रयासः
-राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य मिशन.
-राष्ट्रीय टेली मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (टेली-मानस).
-किरण हेल्पलाइन
-सुसाइड प्रिवेंशन हेल्पलाइन
-राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम
-विश्वविद्यालयों में स्ट्रेस मैनेजमेण्ट सेल की स्थापना
उपरोक्त प्रयासों से बदलाव की शुरुआत हुई तो है, अभी बहुत दूरी तय करनी है.
- *कुछ अन्य आंकड़े:
-दुनियाभर में लगभग 97 करोड़ लोग मानसिक रोगों से पीड़ित हैं।
-दुनियाभर में 14.3% मौतें(8 करोड़ मौतें) मानसिक बीमारी के कारण होती हैं।
- *विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस :-
हर वर्ष 10 october को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है-सन् 1992 में पहली बार आब्जर्व किया गया था। सन् 1994 में इसे एक वार्षिक थीम के साथ ओब्जर्व किया जाने लगा। -सन् 1948 में विश्व मानासिक स्वास्थ्य संघ की स्थापना हुयी थी-जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन का सहयोगी माना जाता है। यह संस्था मेंटल हेल्थ जागरुकता की झण्डाबरदार है.
-विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2013-2030 तक के लिए जरूरी मेंटल हेल्थ एक्शन प्लान बनाया है. इसके अंतर्गत मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता, रोकथाम, ईलाज व बीमारों के अधिकार के लिए सभी जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं.
-विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 2024 की थीम है : "समय है कि कार्यस्थलों पर मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जाए"
- *मेंटल हेल्थ एट वर्क :
काम पर मानसिक स्वास्थ्य की गड़बड़ी से भारी नुकसान हो रहा है। दुनिया की 60% आबादी कामकाजी है। ऐसे में खराब वर्क कल्चर; भेदभाव; आधारभूत सुविधाओं का अभाव;अत्यधिक काम का दबाव;गलाकाट प्रतियोगिता और असमान आय इत्यादि कारण कार्यस्थल पर मेंटल हेल्थ इश्यूज को बढ़ा रहे हैं। इससे हर साल लगभग 12 अरब कार्यदिवासों की हानि हो रही है।
- #समाधान:
-मेंटल हेल्थ मैनेजमेंट की व्यवस्थित ट्रेनिग हो.
-काम के अनुसार वेतन की सुनिश्चितता.
-कार्यस्थल पर पर्याप्त शौचालय/कैंटीन/आराम कक्ष/कॉउंसलर जैसी बेसिक जरूरतों की उपलब्धता सुनिश्चित हो.
-अच्छे काम की तारीफ और नियमित इंसेंटिव का प्रावधान हो.
-चयन और कार्य का बंटवारा हमेशा योग्यतानुसार हो.
-एच आर पॉलिसी भेदभाव रहित हो.
-हर व्यक्ति अपने कामों की प्राथमिकता तय करे. नियमों को माने तथा जरूरी आलोचना करे.
अनावश्यक दबाव में आने की जगह ना कहना सीखे.
-सबसे महत्वपूर्ण: दुनियाभर की सरकारों को सभी हितधारकों को एक मंच पर लाकर व्यवस्थित पॉलिसी बनाने की जरूरत है.
लेखक : अतुल प्रकाश जायसवाल
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