#Article: अपाहिज आवारा और नाकारा व अयोग्य बनाती सरकारें | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
हमारा देश जबसे आजाद हुआ है,तभी से हमारे देश व राज्य की सरकारें हम लोगों को लालीपाप देकर अपाहिज आवारा नाकारा और अयोग्य बनाने पर तुली हुई हैं। जिसका परिमाण यह है कि देश को जहाँ होना चाहिए था वहाँ नहीं पहुँच पाया। क्योंकि अच्छे अच्छे पदों पर अयोग्य लोग बैठे हैं। 10वीं फेल हमारे देश का अगुवा बन जाता है। चोर लुटेरे आतंकी सब संसद में बैठते आये और बैठ रहे हैं। अदालतों में खानदानी चल रही है, जिससे न्याय व्यवस्था सदैव शक के घेरे में रहती है।
विगत सरकारों की ही तरह बर्तमान सरकार भी काम कर रही है|या यूँ कहें कि उससे भी दो कदम आगे बढ़कर लोगों को अकर्मण्य अपाहिज बना रही है|जितनी भी सरकारी योजनायें निकल रही हैं या बन रही हैं|सबकी सब जनोपयोगी कम जनता को अपाहिज बनाने वाली अधिक हैं|जितनी भी राजनीतिक पार्टियाँ हैं,सब चुनाव जीतने व सत्ता पाने के लिए तरह तरह के प्रलोभन देकर जनता को नाकारा और अकर्मण्य बना रही हैं|आजादी के बाद अयोग्य बनाने की नींव पड़ी जो गहरी ही होती जा रही है|उसके बाद से सत्ता हथियाने के लिए हमारे कर्णधार कर्ज माँफी,और मुफ्तखोरी की तरफ ढकेलना शुरू किया है|जिससे लोग मुफ्त का ही हबकुछ चाह रहे हैं|पहली बात तो काम करना नहीं चाह रहे,यदि किसी तरह चाह रहे हैं तो कामचोर होते जा रहे हैं|काम करें क्यों? काम आदमी पेट भरने के लिए करता है|जब पेट मुफ्त में भर रहा है तो काम क्यों करें|कोरोना काल में चली मुफ्त राशन की व्यवस्था आज तक अनवरत जारी है|एक एक घर में महीने का 70 से अस्सी किलो अनाज बिना मेहनत के आ रहा है|जिससे सबका घर आसानी से चल रहा है,तो मजदूरी क्यों करें|पेट भरा है|यह योजना कोरोना काल में जरूरत थी,मगर आज सत्ता पाने का हथियार बना लिया है|एक कहावत है,"न हर चलइ न चलइ कुदारी,बइठे भोजन देइं मुरारी"तो जब सरकार मुफ्त का राशन दे रही है तो लोग अपाहिज ही बनेंगे|आरक्षण से शिक्षा की गुणवत्ता खतम हो गयी,मुफ्त राशन से काम की गुणवत्ता खतम हो रही है|मजदूर वर्ग काम नहीं करना चाहता है|जिससे पंगुता बढ़ रही है|
इसी तरह मनरेगा है|मनरेगा में भ्रष्टाचार चरम पर है|आज की तारीख में मनरेगा से अधिक भ्रष्टाचार शायद ही किसी सरकारी योजना में हो रहा है|एक मजदूर काम करता है|पाँच मजदूर की मजदूरी वसूली जा रही है|सबसे कम काम मनरेगा के अंतर्गत हो रहा है|जो काम एक दिन में होना चाहिए वो काम दस दिन में हो रहा है|ससरकार पैसा तो दे रही है पर काम करने का समय निर्धारित नहीं की है|जिससे इस योजना में केवल लूट मची है|
इसी तरह कई सरकारी योजनायें जो जनहित की सरकार द्वारा चलाई जा रही हैं सब भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रही हैं|सब मौन साधे हुए हैं|जनता भी उसी राह पर है|वह भी अपाहिज अयोग्य नाकारा ही बनकर जीना चाहती है|इसीलिए वही कर रही है,जो नेता चाह रहे हैं|जनता को जहाँ बोलना चाहिए वहाँ नहीं बोलती,जहाँ नहीं बोलना चाहिए वहाँ चिल्लमचाली करती है|
पं.जमदग्निपुरी