साहित्य पर गाँधी के प्रभाव को किया गया है रेखांकित : डॉ. लहरी राम मीणा | #NayaSaveraNetwork

  • आलोचना पुस्तक ‘सृजन के विविध रूप और आलोचना’ का लोकार्पण
  • परिचर्चा का हुआ आयोजन

नया सवेरा नेटवर्क
वाराणसी। विगत तीन दिनों से हिंदी विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में पुस्तक लोकार्पण एवं परिचर्चा का समारोह चल रहा है। इसी क्रम में बुधवार को आचार्य रामचंद्र शुक्ल सभागार, हिन्दी विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय एवं वाणी प्रकाशन समूह के संयुक्त तत्वावधान में प्रसिद्ध युवा कवि, आलोचक एवं रंगचिंतक डॉ. लहरी राम मीणा की नवीनतम आलोचना पुस्तक ‘सृजन के विविध रूप और आलोचना’ का लोकार्पण करते हुए इस पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। 
लेखक लहरी राम मीणा ने अपने लेखकीय वक्तव्य में स्पष्ट किया कि मैं यह दावा नहीं करता कि मैंने जो कुछ लिखा है वह पहले नहीं लिखा गया है। मैंने यथासंभव नए सिद्धांतों, विचारों एवं नए दृष्टिकोण के साथ इन लेखों को लिखने की कोशिश की है। भले ही साहित्यिक कृति सामाजिक दबाव में उपजती हो लेकिन उसकी सृजनात्मकता में कमी नहीं आती है। इन्होंने बताया कि ‘साहित्य का गाँधी’ शीर्षक लेख में साहित्य पर गाँधी के प्रभाव को रेखांकित किया गया है।

साहित्य पर गाँधी के प्रभाव को किया गया है रेखांकित : डॉ. लहरी राम मीणा | #NayaSaveraNetwork


अध्यक्षता कर रहे हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. वशिष्ठ अनूप ने इस पुस्तक में संजोए गए लेखों के मर्म को स्पष्ट करते हुए कहा कि जब कोई सत्य कहता है तब वह आंखों में आँखें डालकर बात करता है और जब झूठ बोलता है तब उसकी आँखें भी उसका साथ नहीं देती हैं,भाषा हकलाने लगती है।
“गलतियाँ जब की तो कुछ का कुछ बताकर बच गया,
जब अकेले में मिला ख़ुद से तो शरमाना पड़ा।” 
लेखक ने ‘साहित्य का मर्म’ निबंध में साहित्य के शाश्वत तत्वों की चर्चा की है। इन्होंने इस निबंध को आचार्य मम्मट से जोड़कर भी देखा। ‘शिवेतर क्षतये’ अर्थात् साहित्य अमंगल का नाश करता है।
प्रेमचंद साहित्य के विशेषज्ञ प्रो. विनय कुमार सिंह कहते हैं कि साहित्य को प्रत्येक व्यक्ति व्यक्ति को इसलिए भी पढ़ना चाहिए, आत्मसात करना चाहिए क्योंकि वह जीवन को बेहतर बनाता है। एक गिलास ठंडे पानी का महत्व रेगिस्तान में तपता प्यासा व्यक्ति ही बता सकता है। साहित्य और राष्ट्रबोध आज की तारीख़ का सबसे ज्वलंत मुद्दा है। लेखक ने लिखा है कि भारतीयों को एक राष्ट्रबोध में बांधने के लिए एक ही विकल्प था; भाषा। असली साहित्य वही है जो जीवन से निकलें और जीवन के लिए निकले। लोक साहित्य, लोक संस्कृति प्रेम का संदेश देती हैं। तमाम कठिनाइयों के पश्चात् भी हमारी संस्कृति रह गई क्योंकि इसके मूल में प्रेम और विश्वास है, भारतीय आत्मा है। शासन का सोर (जड़) किस तरह से उपारना है यह लोक की ताकत बताती है। लेखक पाश्चात्य के अंधानुकरण पर खेद जताते हुए बताता है कि भारत की कहीं बची संस्कृति बची हुई है तो वह गाँवों में और आदिवासियों के यहां बची हुई है। इन्होंने यह भी बताया कि दिखने की भाषा जिस तरह की होती है वही लिखने की भाषा भी होनी चाहिए। हरिवंशराय बच्चन ने ‘खादी का फूल’ में कहा था; ‘बापू की छाती की हर साँस तपस्या थी।’ 
आलोचक, रामधारी सिंह दिनकर साहित्य के विशेषज्ञ प्रो. सत्यपाल शर्मा ने कहा कि आलोचना में नई बात कहने का आग्रह कभी-कभी दुराग्रह का परिचय बन जाता है, इसके माध्यम से हम गलत निष्कर्षों तक पहुंच जाते हैं। इस पुस्तक का आलोचक इस तरह के दुराग्रह से बचा है। लहरी राम एक संवदेनशील,ईमानदार और संवेदनशील आलोचक हैं। यह मानवकेन्द्रित आलोचना पुस्तक है। इन्होंने जीवनानुभव पर जोर दिया है। जीवनानुभव से ऊपजा सत्य ही सबसे बड़ा सत्य होता है। ‘साहित्य का गांधी’ नामक लेख एक ऐसा लेख है जो भविष्य के शोधार्थियों के लिए नवीन शोध विषय का मार्ग प्रशस्त करेगा। इनकी पुस्तक पढ़ते हुए दो मनीषी याद आए, अभिनव गुप्त और टी. एस. इलियट। साधारणीकरण में अभिनवगुप्त ने बाधाओं की चर्चा की है। ‘पात्र आदि की वास्तविकता का बोध।’ यदि रचनाकार आपका करीबी हो तब उसका व्यक्तित्व रचना को समझने में बाधा उत्पन्न करता है लेकिन लहरी जी की आलोचकीय ईमानदार व्यक्तित्व के कारण ऐसी बाधा उत्पन्न नहीं हुई। टी. एस. इलियट ने कहा था कि किसी भी रचनाकार की रचनाधर्मिता को उसकी समकालीनता के साथ उसके इतिहास एवं परंपरा से भी जोड़कर देखा जाना चाहिए। इस समग्रता बोध को हम ‘सृजन के विविध रूप और आलोचना पुस्तक में देख सकते हैं।
हिंदी विभाग की सहायक आचार्या डॉ. मानसी रस्तोगी कहती हैं, “इसमें संकलित लेख एवं निबंध शोधपरक हैं।” लेखक ने ‘साहित्य का आत्मतत्व’ शीर्षक निबंध में आलोचक ने बताया है कि अच्छा साहित्य वही होता है जो मानव हित के साथ-साथ समाज हित एवं राष्ट्रहित की बात करे।इस पुस्तक में एक आलोचक की ईमानदारी झलकती है। 
परिचर्चा का संचालन कर रहे सहायक आचार्य डॉ. सत्यप्रकाश सिंह ने बताया कि यह पुस्तक किसी एक समय एवं एक मनःस्थिति में नहीं लिखी गई है बल्कि अलग-अलग वातावरण एवं परिस्थितियों में लिखे गए लेखों एवं निबंधों का संकलन है। यह लेख अलग-अलग समय एवं संदर्भों में लिखा गया है। ‘साहित्य और राष्ट्रबोध ’ नामक लेख में पश्चिम की राष्ट्रीयता के बरक्स भारतीय राष्ट्र बोध को उजागर करने का प्रयत्न लेखक ने किया है। 
धन्यवाद ज्ञापन स्वयं पुस्तक के लेखक डॉ. लहरी राम मीणा ने किया। इस कार्यक्रम की संपूर्ण रिपोर्ट जो आपके समक्ष प्रस्तुत है, बीएचयू, हिंदी विभाग की शोध छात्रा कु. रोशनी उर्फ धीरा ने किया है। परिचर्चा में प्रो. कृष्णमोहन सिंह, प्रो. नीरज खरे, डॉ. अशोक कुमार ज्योति, डॉ. प्रभात कुमार मिश्र, डॉ. विंध्याचल यादव, डॉ. नीलम कुमारी सहित पर्याप्त संख्या में विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों की उपस्थिति रही।
प्रस्तुति: रोशनी उर्फ धीरा, शोध छात्रा, हिंदी विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय।

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