विश्व बधिर दिवस : ध्वनियों की गैर मौजूदगी में भी जीवन का संगीत सुना जा सकता है... | #NayaSaveraNetwork

नया सवेरा नेटवर्क

सितंबर महीने का एक सप्ताह - सोमवार से शुरू होकर महीने के आखिरी रविवार तक- अंतर्राष्ट्रीय बधिर सप्ताह के रूप में ऑब्जर्व किया जाता है.


मूक-बधिरों के हक हुकूक की लड़ाई में अगुआ संस्था-
विश्व बधिर महासंघ - और  तमाम सहयोगी संस्थान, एक साथ आकर, पूरे एक हफ्ते, अलग-अलग दैनिक विषय-वस्तु पर, जागरूकता कैंपेन करते हैं । इसका उद्देश्य श्रवण बाधित लोगों को जागरूक करना, शिक्षित करना, उनके जीवन को बेहतर करने हेतु विश्व समुदाय को एकजुट करना है।

*  'बधिर समुदाय के भविष्य में निवेश '

इस कहानी की शुरुआत सन 1871, फिलाडेल्फिया से होती है.एक बच्चे का जन्म होता है, जिसका नाम जी. आर. एस. रेडमंड रखा जाता है। बचपन में अपनी सुनने की क्षमता गंवाकर वह बच्चा असहाय विकलांगों की भीड़ का हिस्सा बन जाता है।
बहरापन एक ऐसी विकंलागता है जिसको ना सहानुभूति मिली, ना ही स्वाभिमान.
आज की तारीख में भी सुनवाई हानि से जूझ रहे व्यक्ति के प्रति आमजन की प्रतिक्रिया खीझ/उलझन/दोषारोपण मिश्रित होती है।
पैरों से विकलांग हों / हाथों से विकलांग हों / आंखों की विकलांगता हो / मानसिक विकलांगता हो तो दिख जाती है- स्वत: सहानुभूति पैदा होती है- उपाय की तरफ ध्यान जाता है।
बहरापन महसूस करना होता है। सापेक्षत: कम ध्यानाकर्षक और अतिरिक्त पीड़ादायी स्थिति होती है।
तो, 19वीं सदी में बालक रेडमंड ने नई लकीर खींची।
कैलिफोर्निया स्कूल ऑफ डिजाइन में प्रवेश लेकर पेंटिंग, मूकाभिनय, चित्रकारी की पढ़ाई की । सन 1905 तक आते-आते एक लैंडस्केप पेंटर के रूप में वैश्विक प्रसिद्धि प्राप्त की । रेडमंड की सफलता ने दुनिया को मूक-बधिरों में व्याप्त अपार संभावनाओं की ओर देखने को मजबूर किया। वैश्विक प्रयास प्रारंभ हुए । सन 1951 में ग्लोबल एन जी ओ 'द वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ द डेफ' अथवा 'विश्व बधिर महासंघ' की स्थापना हुई। सन 1958 से 'वर्ल्ड डे ऑफ द डेफ' / 'विश्व बधिर दिवस' की अवधारणा का जन्म हुआ। जल्द ही सभी प्रतिष्ठित वैश्विक संस्थानों ने इस कार्यक्रम को मान्यता दे दी।
सन 2009 से अभियान को और मजबूती देने हेतु सितंबर के आखिरी सप्ताह को 'विश्व बधिर सप्ताह' के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया।
दैनिक विषय-वस्तुओं को केंद्र बनाकर कार्यक्रम होने लगे। महीने के अंतिम रविवार को विश्व बधिर दिवस के रूप में ओब्जर्व करके साप्ताहिक कार्यक्रम का अंत होता है। 
सन 2018 में यूएन ने विश्व बधिर दिवस को अंतरराष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस के रूप में भी मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। 
वर्तमान वर्ष में इस जागरूकता सप्ताह का आरंभ 23 सितंबर से हुआ । आगामी 29 सितंबर (रविवार) को विश्व बधिर दिवस व अंतराष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस के रूप में विश्व भर में मनाया जाएगा.
इस बार की Theme है:- 
        "बधिर समुदाय के भविष्य में निवेश"

*  आंकड़े जो आपको डराएंगे :-

* दुनिया भर में लगभग 1.3 अरब लोग सुनवाई हानि से जूझ रहें हैं- जिनमें से लगभग 46 करोड़ लोग गम्भीर श्रवण हानि के शिकार हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार सन् 2050 आने तक लगभग 2.5 अरब लोगों को कुछ हद तक श्रवण हानि से जूझना पड़ेगा। कम से कम 70 करोड़ लोगों को सुनने हेतु तकनीकी मदद देनी पड़ेगी।

* तकनीक सुलभ / मशीनीकृत दुनिया और आधुनिक जीवनशैली ने सुनने के संकट को बढ़ा दिया है । ऐसा माना जा रहा है कि इन बदलावों की वजह से लगभग 1 अरब लोग स्थायी श्रवण-हानि का शिकार हो सकते हैं। 

* चुपचाप फैलती वैश्विक महामारी को रोकना संभव है :-
अगर हम सुनने के विज्ञान के अनुसार अपने व्यवहार को ढ़ालें तो 50% मामलों को होने से पहले ही रोका जा सकता है। कुछ विशेष प्रयासों से 80% मामलों को निष्प्रभाव किया जा सकता है. तकनीक और जनभागीदारी के संयोजन से 100% मामलों में सुनवाई बहाल की जा सकती है.

- तकनीकी विकास के काल में समय रहते बहरेपन का पता लगाकर उसका पूर्ण इलाज़ संभव है। जैसे 5 वर्ष की आयु पूर्ण होने से पहले कॉक्लियर इंप्लांट सर्जरी इत्यादि।

- सांकेतिक भाषा को बढ़ावा, आधुनिक तकनीकों में निवेश, मूक-बधिरों की शिक्षा में निवेश, ध्वनि प्रदूषण का निराकरण, आमजन में जागरूकता इत्यादि से हम इस महामारी को समाप्त कर सकते हैं। 
यही इस वैश्विक आयोजन का उद्देश्य भी है।

* बनारस का एक डॉक्टर दिलाएगा भारतवर्ष को बहरेपन से मुक्ति : -

जीवन का लक्ष्य जनकल्याण हो, साथ ही प्रयत्न में पवित्रता हो तो परालौकिक शक्तियों के सहयोग से लक्ष्य-प्राप्ति अवश्य होती है ।
काशी के मशहूर नाक, कान, गला रोग विशेषज्ञ डॉक्टर मनोज कुमार गुप्ता का जीवन लक्ष्य है:-
" बहरापन मुक्त भारत 2047 तक ।"
जब देश स्वतंत्रता की शताब्दी संध्या के उल्लास में होगा, तब विकलांगता का एक बड़ा कारण - बहरापन-
से भी भारत आजाद होगा। अपने भीष्म लक्ष्य की प्राप्ति हेतु डॉक्टर गुप्ता दिल्ली शहर को छोड़कर बनारस आए- पूर्वांचल के एकमात्र ईएनटी रोगों को डेडिकेटिड - ए  एनएबीएच प्रमाणित / एडिप योजना से युक्त / विश्व स्वास्थ्य संगठन से प्रशंसाप्राप्त - सत्कृति हॉस्पिटल- को सफलतापूर्वक संचालित कर रहें हैं। निरंतर सरकार, समाजसेवी संस्थान, जनभागीदारी के माध्यम से डॉक्टर गुप्ता श्रवण-हानि के कारण / प्रकार / बचाव / इलाज के प्रति जागरूकता फैला रहें हैं। 
विश्व बधिर दिवस पर मेरा सुझाव होगा कि प्रत्येक भारतीय को डॉक्टर गुप्ता  की पुस्तक " साइलेंट एपिडेमिक अनविलिंग द बर्डेन ऑफ डीफनेस इन इंडिया " को पढ़ना चाहिए। 
यह एक मुकम्मल कृति है जो बहरेपन के सभी संभावित आयामों को गहराई से दर्शाती है। यह बेस्ट-सेलर आपको अमेजॉन शॉपिंग वेबसाइट / एप से खरीदनी पड़ेगी । जल्द ही इस पुस्तक का हिंदी में अनुवादित संस्करण आपके बीच में होगा ।

लेखक : अतुल प्रकाश जायसवाल





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