#Article: मनुष्य पृथ्वी पर अकेला प्राणी है जिसको गुरुर है... | #NayaSaveraNetwork

नया सवेरा नेटवर्क

मनुष्य पृथ्वी पर अकेला प्राणी है जिसको गुरुर है कि वह सब जानता है। मंगल में क्या हुआ, चांद में क्या हुआ, साउथ पोल में क्या हुआ। दरसल उसको सूचनाओं की भूख है। फटाफट सब जानने और देखने की कोशिश में है। 

यदि चारों और देखें तो हमको एक किस्म की भीड़, एक शोर दिखाई और सुनाई देता है। 
हम अपने कान और आंख बंद भी कर लें तब भी ये भीड़, ये शोर हमारा पीछा नहीं छोड़ रहा।

सूचना की इस कदर बमबारी हो रही है कि यदि कोई इसे ग्रहण कर ले तो निश्चित रूप से उसके मस्तिष्क की नसें फट जाएं। 

अब हमारी जो सबसे बड़ी जरूरत और अपने राष्ट्र और समाज के प्रति जो नैतिक कर्तव्य है वो ये कि हम खुद को इस भीड़ और तमाम विचारों के शोर से  बचा लें, सुरक्षित रख लें।

ये हमारे सामने एक चुनौती भी है। खुद को निर्विचार, अनसुना और अनदेखा बनाने की या हो जाने की चुनौती है। लोकतंत्र को बचाने के नाम पर खुले अखबारों और मीडिया घरों को खुद के जीवन से दूर कर देने की चुनौती। प्राइम टाइम में अपने प्राइम टाइम को किसी सार्थक और प्राइम कार्य में लगाने की चुनौती। 

एक चुनौती है कि मैं अपने जीवन के बहुत ही कोमल हिस्से में किसी शोर को, किसी भीड़ को, और किसी खबर को दख़ल करने से रोक पाऊं। उसे खबरदार कर सकूं।

एक दौर था जब अकबर इलाहाबादी कहते थे - 

 खींचो न कमानों को न तलवार निकालो 
 जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो 

उस दौर में मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ था, निश्चित रुप से था। लेकिन आज इस बात को कहने में ज़रा परहेज़ करना पड़ेगा। आज बाज़ार है और उसका खुद का मीडिया है, खुद की पत्रकारिता है। 

बाजार की पत्रकारिता और पत्रकारिता के बाजार के इस गंदले कीचड़ भरे दौर में नया सबेरा जैसे थोड़े से कमल हैं जो खिल गए हैं।

जिन्होने अपनी रीढ़ सीधी रखी है। जब दिल्ली और नोएडा के मीडिया रूपी सरीसृप सत्ता और ताकत के चरण चुम्बन और पूंजीवादी ब्रह्मा, विष्णु और महेशों की नवधा भक्ति में लीन हैं उस समय नया सबेरा अखबार लोक को तंत्र से जोड़कर, लोक को हर सबेरे जगाने का काम कर रहा है। चौकन्ना कर देने का काम कर रहा है। 

नया सबेरा एक ऐसी कंदील है जो ऐसे उपवन में जन्मा है जहां चारों तरफ नागफनी उग चुके हैं। इन कांटो के आतंक के बावजूद वो अपनी खुशबू, अपना सौंदर्य और अपना अहोभाव निरंतर बिखेर रहा है जिसकी पहुंच लोक के हृदय के बहुत अंतर्तम बिंदु को छूती है।

 नया सबेरा एक ऐसा पवित्र अनुष्ठान है जो वास्तव में हिंदी पत्रकारिता और प्रजातंत्र की फटी हुई और चूती हुई भीत को पलस्तर करने का काम कर रहा है। 
मुझे पूर्ण विश्वास है कि आगे आने वाले भविष्य में नया सबेरा हिंदी पत्रकारिता को एक नई रौशनी,  एक नूतन सूरज को उदय करने का काम करेगा। ऐसा सूरज जो सालों से लोकतंत्र के चौथे स्तंभ में लगी सीलन को हटाएगा , सुखाएगा और उसे शक्ति प्रदान करेगा। 

नया सबेरा अब उतना भी नया नहीं है ये सात वर्ष का हो चुका है किंतु इसकी चेतना, इसका अस्तित्व अत्यंत नूतन और मौलिक है। 

नया सबेरा अपना काम करता रहे , अपना सौंदर्य, अपना स्मित बिखेरता रहे प्रजातंत्र के स्तंभ को लगातार मजूबत करता रहे। 
लोक के पक्ष को सुदृढ़ करता रहे। ऐसी मेरी ईश्वर से कामना है। 

हर सबेरे की खूब शुभकामनाएं नया सबेरा को सूचित हों। 
आठवीं वर्षगांठ की खूब शुभकामनाएं सूचित हों। 
हैप्पी बर्थडे नया सबेरा 


 अभिषेक सुमन 
 Phd स्कॉलर (लखनऊ विश्वविद्यालय)

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