#JaunpurNews : श्रीकला धनंजय सिंह का बैठना समाजवादी पार्टी के लिए बना वरदान | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
जौनपुर। भारतीय जनता पार्टी के लिए पूर्वांचल में प्रतिष्ठा की सीट रही जौनपुर लोकसभा का परिणाम हमारे सामने है। भाजपा को करीब एक लाख मतों से मिली पराजय ने राजनीति के जानकारों को स्तब्ध कर दिया है। बीजेपी के नेता भी इस हार को लेकर मंथन कर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि चूंक कहां से हुई? क्या सिर्फ संविधान बचाओ की हवा देकर इतनी बड़ी जीत हासिल की जा सकती थी? भाजपा हाई कमान ने कृपाशंकर सिंह का नाम पहली ही सूची में घोषित कर दिया था ताकि जिला भाजपा संगठन यहां अपनी पूरी तैयारी कर सके। कृपाशंकर सिंह ने आते ही सक्रियता दिखाई।
सभी विधानसभाओं में कार्यालय खोल दिए गए। पूरे लोकसभा में वे वन मैन शो के रूप में नजर आ रहे थे। इसी बीच समाजवादी पार्टी द्वारा इंडिया गठबंधन प्रत्याशी के रूप में बाबू सिंह कुशवाहा तथा बहुजन समाज पार्टी द्वारा श्रीकला धनंजय सिंह के नाम की घोषणा की जाती है। सपा कार्यकर्ताओं द्वारा जगह-जगह बाबू सिंह कुशवाहा के पुतले फूंके जाते हैं। एक प्रकार से लोग मान चुके थे कि बाबू सिंह कुशवाहा की हार सुनिश्चित है। दूसरी तरफ श्रीकला धनंजय सिंह के पक्ष में अभूतपूर्व जोश और उत्साह दिखाई देता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि धनंजय सिंह की आम जनता के बीच एक अच्छी छवि है। खासकर मध्यम और निचले तबके के मतदाताओं का उन्हें खुला समर्थन मिलता रहा है।
यही कारण था कि लोग भाजपा और बसपा के बीच में सीधी टक्कर मानने लगे थे। अचानक बदलते घटनाक्रम में श्रीकला को टिकट वापस करना पड़ा। धनंजय सिंह के समर्थकों में मायूसी छा गई। विरोधी पक्ष के मतदाता कुशवाहा की तरफ लौटने लगे। इसी बीच अप्रत्याशित रूप से संविधान बचाओ का मुद्दा इंडिया गठबंधन के हाथों लग गया। जमानत मिलने के बाद बाहर आए धनंजय सिंह चुनाव प्रचार के अंतिम दिनों में भाजपा के पक्ष में मैदान में उतरे, परंतु तब तक काफी देर हो चुकी थी। धनंजय सिंह के समर्थक भाजपा के पक्ष में मतदान करने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थे।
एक समर्थक में नाम न छापने की शर्त पर बताया कि धनंजय सिंह के समर्थक गृह मंत्री अमित शाह को सबक सिखाना चाहते थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि इस संपूर्ण प्रकरण के पीछे उन्हीं का हाथ है। मल्हनी विधानसभा धनंजय सिंह का गढ़ माना जाता है,परंतु यहां भाजपा को अन्य विधानसभाओं की तुलना में सबसे अधिक करीब ( 32 हजार) मतों से पराजय का सामना करना पड़ा है। प्राप्त जानकारी के अनुसार धनंजय सिंह के गांव में ही जहां भाजपा को मात्र 71 मत प्राप्त हुए हैं, वहीं सपा को 251 मत प्राप्त हुए हैं। कुल मिलाकर एक बात तो साफ नजर आती है कि श्रीकला सिंह के बैठने से पूरा का पूरा फायदा समाजवादी पार्टी प्रत्याशी को मिला। अगर वे चुनाव लड़ती तो मुकाबला निश्चित रूप से त्रिकोणीय होता। भाजपा के खिलाफ मतदान करने वाले लोग दो भागों में बंट जाते।
ऐसे में भाजपा को सबसे अधिक फायदा होता। आमने-सामने की लड़ाई होने से विपक्षी मतदाताओं को ध्रुवीकरण होने का अच्छा अवसर मिल गया। भाजपा के पक्ष में मतदान करने वाले कुछ लोग जातिय राजनीति के चलते समाजवादी पार्टी के खेमे में चले गए। जिस प्रत्याशी को लोग सबसे कमजोर समझ रहे थे,वह घटनाक्रम के बदलते ही सबसे ताकतवर बनकर सामने आ गया। इसे कहते हैं – भाग्य का खेल। इसमें कोई दो राय नहीं कि जौनपुर ने एक बार फिर केंद्र सरकार के विपरीत जाकर खुद को संभावित प्रगति की रेस से अलग कर लिया है। कृपाशंकर सिंह जीतते तो मंत्री जरूर बनते। उन्होंने जौनपुर को रोजगार का हब बनाने का वायदा किया था। कुशवाहा की हालत भी पूर्व सांसद श्याम सिंह यादव जैसी ही रहने की पूरी संभावना है।
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