#Poetry: ख़ुद से कहती हूँ यार चल फिर से | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
ग़ज़ल
ख़ुद से कहती हूँ यार चल फिर से
लिक्खा तकदीर का बदल फिर से
मेरी आवाज़ घुट रही भीतर
चीख़ पाऊँगी क्या मैं कल फिर से
याद हर बात रक्खी जाएगी
स्याह पन्नों का होगा हल फिर से
जब हैं आयोग धाँधली करते
यानी अब हो उथल-पुथल फिर से
इस परीक्षा में हम नहीं अव्वल
ख़्वाब का टूटा है महल फिर से
मैं अँधेरों को देख सकती हूँ
रौशनी कर रही है छल फिर से
रद्द कर दी गई परीक्षाएँ
हो गई है कहीं नक़ल फिर से
जिन को नाराज़ होना है हो लें
कल कहूँगी कोई ग़ज़ल फिर से
वंदना
अहमदाबाद