#DelhiNews : भारतीय साहित्य का अनुवाद चुनौतीपूर्ण : प्रो. ज्यांग जिंग खुई | #NayaSaveraNetwork
- हिन्दू कालेज में 'काव्यानुवाद की चुनौतियां' विषय पर व्याख्यान
नया सवेरा नेटवर्क
दिल्ली। भारत का साहित्य अत्यंत विपुल और वैविध्यपूर्ण है, उसका चीनी भाषा में अनुवाद किसी चुनौती से कम नहीं है। सूरसागर, गोदान तथा शेखर एक जीवनी जैसी कृतियों का चीनी में अनुवाद करने वाले प्रसिद्ध विद्वान प्रो. ज्यांग जिंग खुई ने कहा कि भारत और चीन भले ही पड़ोसी मुल्क हैं लेकिन उनकी संस्कृति और सभ्यता में बुनियादी फर्क है। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि चीन के लोग भगवान पर नहीं बल्कि खुद पर, अपने माता-पिता और अन्य लोगों पर ज्यादा भरोसा रखते हैं। भक्तिकालीन साहित्य के अनुवाद करते समय यह बुनियादी फ़र्क़ बड़ा प्रभावशाली हो जाता है, क्योंकि इस साहित्य को चीनी लोकमानस के अनुसार अनुवादित करना आसान नहीं होता। प्रो. ज्यांग जिंग खुई ने हिंदू महाविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा आयोजित एक समारोह में 'काव्यानुवाद की चुनौतियां' विषय पर बोलते हुए चीन में भारतीय साहित्य के अनुवाद की लम्बी परंपरा की जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि जू फैनचेंग, ची श्यैनलिन, जिन केमू, लियू अनवु, जिन डिंगहान, हुआंग बाओशेंग और शुए ख छिओ जैसे मूर्धन्य विद्वानों ने चीनी भाषा में उपनिषद, नाट्यशास्त्र, वाल्मीकि रामायण, भगवतगीता से लेकर कालिदास की अनेक रचनाओं तक के अनुवाद में अपना जीवन समर्पित किया है। बीजिंग विश्वविद्यालय में हिन्दी के आचार्य प्रो खुई ने कहा कि 2024 वह साल है जब चीन महान कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर की चीन यात्रा की शताब्दी मना रहा है और उनके साहित्य तथा अवदान को श्रद्धा के साथ याद कर रहा है।
प्रो. जियांग ने काव्यानुवाद की चुनौतियों पर कहा कि पंक्तियों की ध्वन्यात्मकता, लयात्मकता, पंक्तियों के बीच का मौन, शब्द, प्रतीक एवं सबसे ज्यादा भावों के अनुवाद में समस्या आती है। उन्होंने नायिका के सौंदर्य का चीनी भाषा में अनुवाद के समय की अपनी चुनौतियों को साझा करते हुए बताया कि चीनी सभ्यता के लोग किसी स्त्री के बालों को सर्प और आंखों को कमल के फूल की उपमा नहीं समझ पाते हैं ऐसे में अनुवादक के समक्ष चुनौती प्रस्तुत होती है क्योंकि चीन के लोगों की आंखें ही प्राकृतिक रूप से प्रायः छोटी होती हैं। अनुवाद की मौलिकता पर केंद्रित एक प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रो. जियांग ने कहा कि अनुवाद एक स्वतंत्र, मौलिक एवं रचनात्मक इकाई के रूप में होती है, जिसमें अनुवादक अपने भावों और विचारों के अनुरूप ही अनुवाद करता है।
इससे पहले महाविद्यालय परिसर में पहुंचने पर महाविद्यालय की प्राचार्य प्रो. अंजू श्रीवास्तव ने प्रो. ज्यांग जिंग खुई का स्वागत करते हुए कहा कि हिन्दू कालेज की पुरानी और समृद्ध परम्परा में भारतीय उपमहाद्वीप तथा एशिया के अनेक देशों के विद्यार्थी जुड़े हैं। उन्होंने कहा कि प्रो. खुई की यह यात्रा इस सम्बन्ध में और अधिक उपादेय होगी जब दोनों देशों के विद्यार्थियों में सांस्कृतिक अध्ययन की गति तेज होगी। आयोजन के विशिष्ट अतिथि दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के प्रो. अनिल राय ने प्रो खुई के साथ व्यतीत अपने चीन प्रवास को याद करते हुए अविस्मरणीय अनुभव बताया। प्रो. अनिल राय ने कहा कि नयी वैश्विक परिस्थितियों में अनुवाद अत्यंत महत्वपूर्ण सांस्कृतिक गतिविधि बन गया है जो विभिन्न देशों के लोगों को आपसे में जोड़ने का काम करता है। हिन्दी विभाग की प्रभारी प्रो. रचना सिंह ने प्रो. खुई तथा उनके शिष्य हे यांग का स्वागत किया। प्रो सिंह ने हिंदी विभाग द्वारा की जा रही विभिन्न गतिविधियों की जानकारी भी प्रो खुई को दी। विभाग के विद्यार्थियों दिव्यांश प्रताप सिंह तथा मोहित कुमार ने प्रो. खुई को महाविद्यालय की वार्षिक पत्रिका इंद्रप्रस्थ तथा विभाग की हस्तलिखित पत्रिका हस्ताक्षर के ताज़ा अंक भेंट किये।
हिंदू महाविद्यालय के वरिष्ठ अध्यापक प्रो. रामेश्वर राय ने कहा कि चीन से तकनीक तथा विज्ञान के साथ साहित्य के क्षेत्र में भी प्रेरणा ली जानी चाहिए जहां अनुवाद की ऐसी शानदार परम्परा बन गई है। प्रो. राय ने कहा कि प्राकृतिक उपमाएं अनुवाद में भले ही बड़ी चुनौती हों किंतु भारतीय संस्कृति में सौंदर्य को हमेशा से ही प्रकृति से अभिन्न माना गया है और देह से मुक्त होकर प्रकृति की ओर उन्मुखता सौंदर्य की व्यापकता को और बढ़ा देता है। कमल की उपमा का उदाहरण देकर उन्होंने कहा कि कमल संभावनाओं एवं सात्विकता को व्यक्त करता है क्योंकि वह सूर्य के उदय के साथ खिलता है। कार्यक्रम के समापन पर विभाग के अध्यापक डॉ. पल्लव ने आभार प्रकट किया। कार्यक्रम में हिंदी विभाग एवं ईस्ट एशियन स्टडीज के अनेक शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।