नया सवेरा नेटवर्क
चाहता हूं
भुला कर अश्क अपने, तुमको बताना चाहता हूं,
बस तुम्हारी चाह में, मैं डूब जाना चाहता हूं।
नफरतों की आग से खुद को बचाना चाहता हूं,
हौंसले की नाव चढ कर पार होना चाहता हूं।
ख़ुशी लिख कर सारे ग़म अपने भुलाना चाहता हूं,
दर्द सीने में दबा कर, मैं मुस्कुराना चाहता हूं।
खुश तो होगी तुम बहुत, तुमने जो कहा मैंने किया,
तुमसे कितना प्यार था, बस ये जताना चाहता हूं।
ये जरूरी तो नहीं कि पास हों हम रात दिन,
पल भर में इन दूरियों को मैं मिटाना चाहता हूं।
कितने हम नजदीक थे, सांसों ने सांसों को छुआ,
फिर है ये कैसी दूरियां, मैं ये बताना चाहता हूं।
साहित्यकार एवं लेखक
डॉ आशीष मिश्र उर्वर, कादीपुर सुल्तानपुर उ.प्र.।
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