#Article : चुनावी हप्ता और चुनावी बांड में अंतर और उद्योगपतियों की बेबसी | #NayaSaveraNetwork

#Article : चुनावी हप्ता और चुनावी बांड में अंतर और उद्योगपतियों की बेबसी | #NayaSaveraNetwork

नया सवेरा नेटवर्क

आज कल चुनावी माहौल बना है|ऊपर कि तपिश से अधिक राजनीतिक तपिश बढ़ी हुई है|सभी राजनीतिक पार्टियों का पारा 50 डिगरी से भी हाई है|एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप स्वाभाविक है|सत्ता हथियाने के लिए हर हथकंडा जायज है|एक कहावत है कि राजनीति में और प्यार में कुछ नाजायज नहीं है|एक तरफ पूरा विपक्ष भ्रष्टाचार के सागर में गोते लगा डूब उतरा रहा है|तो दूसरी तरफ चंदा को धन उगाही का जरिया बता विपक्ष सरकार को घेरने के लिए अदालत पहुँच गई|और अदालत ने अपना कर्तव्य निभाते हुए आदेश जारी कर दिया कि जितना इलेक्टोरल बांड खरीदा गया है|किसने बेंचा किसने खरीदा,उसे स्पष्ट करते हुए सार्वजनिक किया जाय|सही भी है|धनशोधन कहाँ से किया जा रहा है|जनता को उसका पता चलना चाहिए|

        पहले कौन पार्टी धन उगाही उद्योगपतियों व्यापारियों से करती थी,और कितना करती थीं,पता ही नहीं चलता था|लेकिन सरकार बदली तो नियम बदला|हप्ता को चुनावी बांड का रूप देकर थोड़ी सी पारदर्शिता लाई|जो लिखित में दस्तावेज बन गई|इसमें भी थोड़ी खामियाँ थी,जिसका फायदा उठाने के लिए विपक्ष इसे अदालत ले गया|अदालत ने भी त्वरित संज्ञान लेते हुए आदेश जारी कर दिया कि कौन कितना पाया है,बताया जाय|जब बैंक ने ब्योरा दिया तो पता चला कि हमाम में सभी नंगे हैं,कोई कम तो कोई अधिक|फिर भी विपक्ष इसी को हथियार बनाकर जनता के बीच में उतर गई और औंधे मुँह गर गई|क्योंकि जनता अब 21वीं सदी में है|और सबकुछ देख और सुन रही है|साथ में अब समझ भी रही है|पहले पार्टियाँ चाहे पक्ष की हों चाहे विपक्ष की हप्ता उगाही करती थीं उद्योगपतियों से और व्यापारियों से|व्यूरोकेट से भी पोस्टिंग ट्रांसफर के लिए|यहाँ तक की अपने सांसदों और विधायको से भी टिकट के लिए करोड़ों वसूलती थीं|शायद अब भी स्थिति वही है|

    कांग्रेस सीना ठोंक के कहती है कि मैने सूचना का अधिकार लाया|बहुत उत्तम|तो देश जानना चाहता है कि सूचना के अधिकार से नेताओं राजनीतिक पार्टियों और जज आदि को समाहित क्यों नहीं किया गया|सरकार को उससे अलग क्यों रखा गया,तो उत्तर है कि खुद की धन उगाही का किसी को पता न चले|इसलिए उपरोक्त सभी को सूचना के अधिकार वाले बिल से बाहर रखा गया|सोंच ये थी कि सत्ता सदैव हमारे पास ही रहेगी|ये भूल गये कि परिवर्तन संसार का नियम है|आज बदली हुई परिस्थिति में उद्योगपतियों और व्यापारियों ने आज के विपक्ष को घास डालना कम कर दिया तो ए सब चुनावी चंदा को सरकार द्वारा किया गया भ्रष्टाचार बता रहे हैं|इन विपक्षियों के बुद्धि को क्या कहें|इन्हें भ्रष्टाचार और चंदा में और हप्ता में अंतर ही नहीं समझ में आ रहा|आज का विपक्ष पूरी तरह दिवालिया हो गया है|जिस चंदे में वो खुद शामिल हैं|वही जनता को सरकार द्वारा किया गया भ्रष्टाचार बता रहे हैं|अब जनता यह जानना चाहती है कि लिए तो आप भी हो|तो जो आप लिए हो वह क्या है|जब वही लेकर सत्तापक्ष भ्रष्टाचारी है तो आप क्यों नहीं हैं|तब कहते हैं हमको कम मिला है|उनको अधिक|मतलब तकलीफ इस बात की है कि सत्तापक्ष को अधिक क्यों मिला है|जाहिर सी बात है उद्योगपति  व्यापारी अपना बिजनेस चलाने के लिए नेताओं राजनीतिक पार्टियों माफियाओं व यूनियन लीडरों को हप्ता देते आये हैं और दे रहे हैं|आगे भी देते रहेंगे|जो सत्ता में रहता है उसे अधिक,और जो विपक्ष में रहता है उसे कम|सत्ताधारी को काम करवाने के लिए और विपक्ष को काम न रुके इसके लिए देना लेना कोई नई बात नहीं है|

       विगत में एक आंदोलन चला था गौ आंदोलन|जिसमें डालडा वनस्पति के मालिक डालमियाँ ने गौ आंदोलनकारियों को मोटा चंदा दिया था|जो कि सरकार की हिस्सेदारी से अधिक था|सरकार कम्पनी के ऊपर नाराज हो गई|और कम्पनी की खाट खड़ीकर जमींदोज कर दिया|दूसरा मामला सिंगूर का है जिसमें विपक्ष को नहीं मिल रहा था,तो वहाँ टाटा कम्पनी को अपना प्रोजेक्ट ही नहीं लगाने दिया गया तृणमूल कांग्रेस की तरफ से|आखिर टाटा अपना नुकसान करके बोरियाबिस्तर वहाँ से समेट लिया|एक बार रतन टाटा जी स्वयं पत्रकारवार्ता में कहे|किस्सा है उत्तराखंड का|टाटा वाले वहाँ एयरपोर्ट बननाॎ  चाहते थे|मगर तत्कालीन सरकारों ने इतना हप्ता माँग लिया कि रतन टाटा जी पीछे हट गये|विगत सरकारों के ऐसे अनेक किस्से हैं|जो उद्योगपतियों और व्यापारियों से धन उगाही को उजागर करते हैं|आज बस बदलाव इतना है कि शराब पुरानी ही है बस बोतल बदल गई है|इसलिए विपक्ष यहाँ कुछ कर नहीं पायेगा|क्योंकि विपक्ष भी चुनावी बांड खुब बेंचा है|बस कीमत कम मिली है|जाहिर सी बात है जैसा माल वैसी कीमत|अब शर्ट की कीमत में कोट तो नहीं मिलेगी न|बस यही अंतर है|सत्तापक्ष के चंदे में और विपक्ष के|लिए दोनो हैं तो भ्रष्टाचारी दोनो हुए|एक कम लिया है तो वह भ्रष्टाचारी नहीं है|यह कैसे हो सकता है|चोरी चोरी होती है|वह छोटी और बड़ी नहीं होती है|पहले पता नहीं चलता था तो नेतागण धवल कुर्ते में धवल ही दिखते थे|पर अब इलेक्ट्रानिक मिडिया,प्रिंट मिडिया,सोशल मिडिया का जमाना है|एक सेकेंड में सबकी कलई खुल जाती है|इसलिए अब नेताओं से एक ही बात कहना है कि जब सब बदल गया है तो आप सब भी बदल जाइए|इसी में आपकी सबकी और देश की भी भलाई है|

पं.जमदग्निपुरी


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