नया सवेरा नेटवर्क
संसार में जितने भी अध्यात्मिक स्थल हैं जैसे मंदिर ,शिवालय, अध्यात्मिक शास्त्र, जैसे वेद ,उपनिषद , यह सभी ईश्वर के प्रति आस्थावान होने और मन को शुद्ध, अथवा पवित्र करने के लिए ही हैं।आप मंदिर जाते हैं, वहां पर आपको भगवान के दर्शन तो नहीं होते, किंतु मन आनंद से अभिभूत हो जाता है। यही मन की पवित्रता ही ईश्वर से मिलन का प्रमाण है।
जब आप शास्त्र पढ़ते हैं,तब ज्ञान मिलता है, सत्य और असत्य का भेद समझ में आता है।और जब आप सत्य के साथ होते हो तो , समझिए आप ईश्वर के संग हैं। जैसे आप मंदिर के अंदर प्रवेश करते समय अपने जूते उतार देते हैं,और जैसे ही बाहर आते हैं, फिर से जूते पहन लेते हैं। इसको ऐसे समझते हैं! आप सभी ने अनुभव भी किया होगा| जब हम मंदिर में प्रवेश करते हैं,तो बुराई स्वरूप जूते उतार देते हैं।उस समय मंदिर के अंदर हम एकदम पवित्र होते हैं,मन में कोई द्वेष नहीं होता आप सभी ने अनुभव भी किया होगा। किन्तु मंदिर से बाहर आते ही,बुराई रूपी जूते को पहनकर फिर उसी पुरानी स्थिति को आ जाते हैं।
जिस तरह हम मंदिर में जाते समय बुराई रूपी जूते उतार देते हैं,काश !ठीक उसी तरह हम अपने घर में भी जब प्रवेश करें तो, बुराई छोड़कर ही प्रवेश करें। मंदिरों से यही तो शिक्षा मिलती है। मंदिर की असल महत्ता भी यही है| यह नहीं कि ,आज उपवास रखा,कल किसी जीव का मांसाहार कर लिया।
शास्त्र भी हमें यही शिक्षा देते हैं,कि हम हर बुराई से दूर रहें। किसी को बुरा न कहें, किसी को सताएं नहीं।सत्य का अनुगमन करना ही ईश्वर की पूजा है।पूजा पाठ का विधि विधान भी हमें संस्कारों से जोड़ता है,हृदय पवित्र होता है।महर्षि पतंजलि ने मन को पवित्र करने के लिए अंतर्मुखी होकर सत्य रूपी ईश्वर को पाने का सफल मार्ग दिखाया है।
महात्मा बुद्ध ने उसी मार्ग को जीवन में ढालकर ईश्वर सदृश हो गये।
कोई भी कर्मकांड, पूजा व्यर्थ की नहीं है,इन सभी से आपके मन की पवित्रता बढ़ती है|इसलिए समाज को हर उस चीज की आवश्यकता है जिससे हमारा मन पवित्र हो। बस ऐसे पाखंडियों से दूर रहें जो कर्मकांड के नाम पर, अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु, आपको भगवान का डर दिखाकर आपका शोषण करते हों।
जीवन को सफल बनाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण यह पांच मंत्र हैं।
जिनको,आप अपने जीवन में ढालकर देखें ! ईश्वर आपके आसपास ही मिलेगा।
१) मैं आज चिंता नहीं करूंगा।
२) मैं आज किसी पर क्रोध नहीं करूंगा।
३)आज मैं ईमानदार रहूंगा।
४)आज मैंने कितनों को आशीर्वाद दिया गिनूंगा।
५)आज के दिन मैं सभी को प्रेम और आदर दूंगा।
कुछ लोगों को ज्ञान का, इतना अहंकार हो जाता है ,कि यदि कोई दूसरा व्यक्ति कुछ ज्ञान की बातों का अनुभव कराता है,और अपने मित्रों में साझा करता है,तो उस तथाकथित ज्ञानी को बहुत अखरता है।
वो सोचता है!अरे इस मूर्ख को इतना ज्ञान कहाँ से हो गया।
जबकि उसे कोसने वाले और स्वघोषित ज्ञानी को ,सिर्फ ज्ञान का अहंकार भर होता है, वास्तविक ज्ञान कुछ नहीं होता। बल्कि उसे सिर्फ किताबी ज्ञान ही होता है।
इसलिए किसी भी व्यक्ति को अज्ञानी न समझें।
जीवन के हर पलों को जीने वाला व्यक्ति भी महा ज्ञानी हो सकता है।
इसलिए ज्ञान का अहंकार निरर्थक है।
इसलिए इन पांच मंत्रों को जो जीवन में उतार लेता है ,वह स्वयं से और दूसरों से प्रेम करने लगता है।
यही वो पल है जब ईश्वर के साथ होते हैं|
डॉ.अवधेश विश्वकर्मा "नमन "
कवि गीतकार अभिनेता गायक स्तम्भकार
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1 टिप्पणियाँ
सुन्दर लेख
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