नया सवेरा नेटवर्क
मैं मतदाता मेरी सिर्फ़ चुनाव में पूछपरख़ होती है
मैं मतदाता मेरी कहानी निराली होती है
हमेशा चुनाव में मेरी याद आती है
बाकी दोनों मेरी किस्मत ठोकर खाती है
मैं मतदाता मेरी सिर्फ़ चुनाव में पूछपरख़ होती है
कत्ल की रात मनीराम से नहलाई होती है
हाथ पैर जोड़ खूब इज्जताई होती है
राजनीतिक पार्टियां मेरे द्वारे माथा टेकती है
मैं मतदाता मेरी सिर्फ़ चुनाव में पूछपरख़ होती है
एजेंसियां हमेशा तरकीब लड़ाकर कुआचरण रोकती है अबकी बार सी विजिल ऐप से उल्लंघन रोकती है
आचार संहिता रोकने में खूब नियम झोकती है
मैं मतदाता मेरी सिर्फ़ चुनाव में पूछपरख़ होती है
चुनाव के समय दिन रात मेरी खूब पूजा होती है
वेज नॉनवेज से खूब आवभगत होती है
फिर पांच साल मेरी किस्मत रोती है
मैं मतदाता मेरी सिर्फ़ चुनाव में पूछपरख़ होती है
समाज के लिए जैसे त्योहारों की पर्व नवरात्र
रमजान गुरुनानक जयंती क्रिसमस होती है
मेरे लिए महापर्व मतदान की तिथि होती है
मैं मतदाता मेरी सिर्फ़ चुनाव में पूछपरख़ होती है
-संकलनकर्ता लेखक - कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार कानूनी लेखक चिंतक कवि एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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