जन्म और मृत्यु सभी की निश्चित है, जिसने भी इस धरा पर जन्म लिया है | #NayaSaveraNetwork
अंत्येष्टि संस्कार
नया सवेरा नेटवर्क
हमारा शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है, सभी जानते हैं ,बताने की आवश्यकता नहीं है।
शरीर जब तक बेजान है तक तक जड़ तत्व है,इस जड़ तत्व में जब चेतन तत्व प्रविष्ट होता है तो चलता फिरता जीव हो जाता है।
लेकिन यह शरीर तब तक किसी काम का नहीं जब तक इसमें कोई गुण न हो।
जिसे आप त्रिगुणात्मक शरीर के रूप में जानते हैं।
सतोगुण,रजो गुण,तमो गुण।
इन तीन गुणों के कारण ही हम
सोचने, समझने,प्रेम करने, ईर्ष्या, द्वेष इत्यादि से पूर्ण हो जाते हैं।
इन तीनों गुणों में जिस गुण की अधिकता होगी,वह वैसा ही व्यवहार करेगा।
अपने पिछले कर्मों के अनुसार ही एक दूसरे से माता-पिता, भाई बहन,के रूप में जन्म पाते हैं।
जिनके साथ पूरा जीवन हम गुजारते हैं, उनसे हम सबका मोह होना लाजमी है।
यह मोह ही है जो मृतक के संस्कार में विद्यमान रहते हैं,जिसके कारण वो मृत्यु के बाद भी मुक्त नहीं पाते।
इसी कारण संत महात्माओं ने सोलह संस्कार बनाए। उन्ही सोलह संस्कारों में, अंत्येष्टि संस्कार भी है।
यह प्रथा सदियों से चली आ रही है। लेकिन आज इसका स्वरूप विकृत हो गया है।आज तो जिस शानो-शौकत का मृत्यु भोज में भी प्रदर्शन किया जाता है,वह बहुत ही निंदनीय है।
जब इन संस्कारों का निर्माण किया गया,उस समय, मृतक के रिश्तेदारों,के अलावा, समाज में रहने वाले मृतक के परिचित अपने अपने घरों से अन्न , मिष्ठान,दूध, कपड़े इत्यादि सब कुछ लेकर आते थे,और उन सभी को मिलाकर कुछ भोजन बनता था, वही खाते भी थे। मृतक की आत्मा तृप्त हो, इसलिए यह विधान शुरू किया। लेकिन आज मात्र प्रदर्शन भर रह गया है।इसे मूल रूप में जैसा था उसी रूप में करना चाहिए।
डॉ अवधेश विश्वकर्मा नमन
कवि गीतकार गायक अभिनेता स्तम्भकार