आ गया चुनाव फिर से लगने लगे हैं नारे... | #NayaSaveraNetwork

@ नया सवेरा नेटवर्क

भारत ही एक ऐसा लोकतांत्रिक देश है,जहाँ हर महीने किसी न किसी तरह के चुनाव होते रहते हैं|लोकसभा विधान सभा के अलावां भी बहुत से चुनाव होते रहते हैं|ग्राम सभा|ब्लाक सभा जिला सभा आदि आदि|जब भी कोई चुनाव होता है तो आचार संहिता लग जाती है|जनहित के कार्य ठप हो जाते हैं|विपक्ष तर्क ये देकर जनहित के कार्य बंद करवा देता है कि इससे सत्तापक्ष जनता को लुभाकर चुनाव में परिणाम अपनी तरफ मोड़ लेगा|इसलिए इस दौरान कोई जनहित के कार्य न हों|लेकिन पक्ष और विपक्ष अपनी जबान पर आचार संहिता न लगाये न लगवाने के लिए चुनाव आयोग से कहें|सत्ता पाने के लिए बरकार रखने के लिए|कुछ भी ऊल झलूल बकना शुरू कर देते हैं|जिससे सामाजिक ताना बाना छिन्न भिन्न हो जाता है|चुनाव आते ही देश जैसे ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठ जाता है|कब कौन सा नेता कौन विष उगल दे भरोसा नही रहता|

कोई जातिवादी टिप्पणी करता है तो कोई धर्मवादी|कोई कोई तो हद तोड़ देता है|और अलगाववादी टिप्पणी करता है|कांग्रेस के नेता इस समय भारत जोड़ो न्याय यात्रा पर निकले हैं|आज तक समझ में नहीं आ रहा कि किस मति मंद ने उन्हें यह सलाह दी भारत जोड़ो|भारत कहाँ से टूटा है|चलिए मान लिया उनकी नजर में टूटा होगा|तो जुड़ने के लिए ए उससे आतुर हैं जो भारत तोड़ने की बात करता है|जो अलग देश की माँग करता है|इसका ताजा तरीन उदाहरण डीएमके नेता ए राजा की वह टिप्पणी है|जिसमें उन्होंने भारत को देश मानने से इन्कार करते हुए सनातन को गाली देते दिख रहे हैं|और कांग्रेस उन्हीं के साथ मिलकर देश चलाने के लिए आतुर है|ऐसे लोगों को ही जोड़ने का शायद काम कांग्रेस के लिए भारत जोड़ो लग रहा है|सत्तापक्ष एक देश एक निशान व एक संविधान की बात कर रहा है|और विपक्ष जातिगत तोड़ फोड़ में लगा है|और भारत जोड़ने की यात्रा कर रहा है|बड़ी विचित्र बात कर रहा है|समझ ही नहीं रहा कि किस भारत की एकता की बात विपक्ष कर रहा है|जहाँ तक समझ पा रहा हूँ जिस तरह से इंडिया गठबंधन बन रहा है,कांग्रेस शायद उसी को भारत मानकर चल रही है|और उसी को जोड़ने की यात्रा पर निकली है|भारतीय तो इस यात्रा से नहीं जुड़ पा रहे|क्योंकि यात्रा ही दिशाहीन है|जिसमें तुष्टीकरण व अलगाववाद की बदबू भरी है|एक को खुश करने के लिए एक को दिल खोलके गाली दी जा रही है|

अब बात करते हैं न्याय यात्रा की|यह भी जनता समझ नहीं पा रही है कि ए किसके लिए न्याय यात्रा पर निकले हैं|जनता के लिए या खुद के लिए|या शाहजहाँ जैसे दुर्दांत देशद्रोही जनद्रोही अपराधियों के लिए|जनता इनके न्याय यात्रा से भी असमंजस में ही है|यदि ये जनता के न्याय के लिए यात्रा कर रहे होते तो संदेशखाली अवश्य गये होते|मगर ऐसा न करके जनता में यह वहम भर दिए कि यह एक चुनावी रैली है|बस नाम बदला है|लोग सोंचने पर विवश हैं कि सियार शेर की खाल ओढ़कर निकला है|बिल्ली ने मंत्र नहीं घड़े की रिंग धारण किये हुए है घड़े में फॕसने के कारण|इसलिए जनता इनको चुनावी मैदान में भाव नहीं दे रही|इनके नेता और इनके सहयोगी वह कर रहे हैं,जो सत्ता पक्ष को मजबूती प्रदान कर रहा है|जनता हर बात स्वीकार कर लेगी,मगर देश विरोधी बात और देश विरोधियों को कत्तई स्वीकार नहीं करेगी|हाँ दो चार दल्ले चमचे भले आपके भुलावे में पड़े रहें| 

इस चुनाव की स्थित पर जब दृष्टिपात करते हैं तो लगता है जैसे विपक्ष है ही नहीं|हर जगह सत्तापक्ष ही दिखाई दे रहा है|दिखाई ईसलिए दे रहा है कि विपक्ष अपने क्रियाकलापों से अपने वक्तव्यों से अपने कुत्सित विचारों से जनता को अपनी तरफ नहीं मोड़ पा रहा है|क्योंकि विपक्ष बेलगाम है|कोई कुछ भी ऊटपटांग बोल रहा है|इनके ही दक्षिण भारत के सहयोगी उत्तर भारत वालों को गाली दे रहे हैं|और ये उत्तर भारतीय नेता लोग ताली बजा रहे हैं|और चाह रहे हैं कि जनता इसके कुत्सित देशविरोधी  विचारों को अंगीकार कर चुनाव में विजयी बनाये|

        इस चुनावी समर में सत्तापक्ष जहाँ सबका साथ सबका विश्वास सबका विकास का नारा दे रहा है तो वहीं विपक्ष जातिगत जनगणना सनातन को गाली भारत को उप द्वीप बता अपनी देश व सनातन विरोधी मांसिकता को जनता के सामने परोस रहा है|वहीं सत्तापक्ष अपनी विभिन्न योजनाओं से बिना किसी भेदभाव के सबके विश्वास को जीतने में कामयाब होता स्पष्ट दिख रहा है|और विपक्ष अभी भी वही तोड़फोड़ तुष्टीकरण की विधा में उलझा सत्ता के गलियारे को तलाश रहा है|सत्तापक्ष ने विपक्ष को दिवालिया बना दिया है|इसी दिवालिएपन में तमाम मुद्दों के रहते हुए वही लकीर के फकीर बने हुए है|इंडिया गठबंधन बहरहाल अभी मूर्त रूप में आया नहीं है|और जिस तरह से गठबंधन करने वालों का मिजाज है लगता नहीं कि चुनाव तक बन पायेगा|फिर  भी कुछ पार्टियाँ अपने को इंडिया वाला मानकर अलग अलग प्रचार में जुटी हैं|कांग्रेह गठबंधन का मुखिया तो बनना चाह रही है|मगर यात्रायें अकेले कर रही है|इसलिए और दल असमंजस में  हैं|और अपना सिक्का जमाने के लिए कुछ भी बक रहे हैं|जो न उनकी पार्टी के हित में है न गठबंधन के ही हित में है|ऐसा ही कोई नीम हराम चमचा देशद्रोही होगा जो भारत को द्वीप मानकर ऐसे नमकहराम नेताओं को वोट देगा|और जिताकर सिंहासन पर बैठायेगा|विपक्षी नेता गण सरकार का विरोध कम देश व सनातन का विरोध करते अधिक दिख रहे हैं|कोई निजी टिप्पणी करके सेल्फ गोल कर रहा है तो कोई देश को तोड़ने की बात करके आत्मघाती गोल कर रहा है|मंहगाई बेरोजगारी शिक्षा स्वास्थ्य भुखमरी कुपोषण जैसे मुद्दे विपक्ष के मेनू से गायब है|जैसे विपक्ष बिना चुनाव के ही हताश और हारा दिख रहा है|

प्यार की दुकान खोले विपक्ष के नेता नफरत ही बेंच रहे हैं|कोई धर्मवादी तो कोई जातिवादी नफरत बेचने में खुद को जी जान से लगाया हुआ है|न्याय यात्रा हो रही है|मगर जहाँ अन्याय हुआ है वहाँ से बचते हुए|भारत जोड़ा जा रहा है|अलगाववादी से गठबंधन करके|मूल भूत मुद्दों से हटकर देश हथियाने में लगे हैं|चुनावी रणनीतिकार विपक्ष की नाव डुबोने में लगे हैं|और विपक्ष सत्तापक्ष को गरियाने में और कोसने में मस्त चुनावी समर में कूदा है|

पं.जमदग्निपुरी


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