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ग़ज़ल
हुस्न वो सादगी का मुझे याद है,
छंद तेरी हँसी का मुझे याद है।
तेरी आँखें हैं प्यारी ग़ज़ल की तरह,
हर वरक़ शायरी का मुझे याद है।
लाज भीगे नयन,लोच खाता बदन,
रूप वह चाँदनी का मुझे याद है।
तू जो बोले तो बुलबुल चहकने लगे,
बोलना बाँसुरी का मुझे याद है।
एक मुस्कान जैसे किरन भोर की,
गुनगुनाना परी का मुझे याद है।
लब हिले भी नहीं,सब बयाँ हो गया,
हुस्न जादूगरी का मुझे याद है।
मुझको जन्नत की हूरें लुभातीं नहीं,
गंध-रस इस ज़मीं का मुझे याद है।
स्वर्ग उतरा है,उतरेगा फिर भूमि पर,
क्या हुआ उर्वशी का मुझे याद है।
राह बनती है पर्वत के सीने में भी,
हौसला आदमी का मुझे याद है।
ये अँधेरे करें लाख गुमराह पर,
रास्ता रोशनी का मुझे याद है।
रंग कैसे बदलते हैं इंसान के,
पैतरा हर किसी का मुझे याद है।
हश्र मैं इस सदी का नहीं जानता,
ज़ख़्म पिछली सदी का मुझे याद है।
प्रो. वशिष्ठ अनूप
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी।