पं. जमदग्निपुरी |
नया सवेरा नेटवर्क
जन मानस के साथ सयानों ने सदैव छल ही किया है| राजतंत्र था तब भी प्रजातंत्र है तब भी| हमेशा जनता के साथ छल ही हुआ है| कभी धर्म के नाम पर तो कभी जाति के नाम पर|सबसे अधिक छल देश के नाम पर हुआ है| अपनी सत्ता बचाने के लिए, अपनी सत्ता बनी रह, इसलिए हमेशा जनता के साथ सयानों ने जन भावनाओं को उकसा कर उनके साथ खिलवाड़ किया है|
सबसे अधिक छल हम भारतियों के साथ आजादी के बाद हुआ| सबसे पहले तो सयानों ने देश के दो टुकड़े कर दिए| फिर तिकड़म से सत्ता हथिया कर हमें धर्मनिर्पक्षता का पाठ पढ़ाया| हमें समझाया गया कि
"न हम हिन्दू बनेंगे न मुसलमान बनेंगे|
इंसान की औलाद हैं इंसान बनेगे||"
हमने खुशी खुशी मान लिया| लेकिन सत्तासीनो ने क्या किया? हमें जातियों में बाँट दिया| दिलित सवर्ण से और पिछड़ा बना कर आपसी भाईचारे को छिन्न भिन्न कर दिया| जन मन में एक दूसरे के प्रति विद्वेश भर दिया| जो चीजें आर्थिक आधार होनी चाहिये वो जाति के आधार पर करके हम भारतवासियों के साथ तगड़ा छल किया गया| जिससे प्रतिभाओं का हनन हुआ|प्रतिभायें कुव्यसनों में लिप्त हो लुप्त होती गईं| और देश पिछड़ता गया| हम विदेशियों के गुलाम थे और गुलाम होते गये| क्योंकि हम उन पर ही आश्रित होते गये| शारीरिक आजादी तो मिली मगर मांसिक गुलामी की जाल से हम आज भी नहीं आजाद हो पाये हैं| यह भी हमारे साथ छल ही हुआ है|
हमें सिखाया गया "हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई|
आपस में सब भाई भाई||"
जब सभी एक समान थे तो अल्पसंख्यक आयोग अल्प संख्यक मंत्रालय और अल्पसंख्यक बोर्ड क्यों बनाया गया| अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक बनाकर हम भारतवासियों में इतनी बड़ी खाईं खोद दी गई कि इसे पार करने में अब कई चेतक बलिदान हो गये मगर पार नहीं कर पाये| जिसका परिणाम यह है कि हम भारतवासी एक हो ही नहीं पा रहे| किसी तरह बड़ी मसक्कत से किनारे पहुँचते पहुँचते डुबो दिये जा रहे हैं| या उस खाईं के मगरमच्छ से जान बचाने के लिए मझदार के पहले ही वापस हो जा रहे हैं| क्योंकि खाईं में जो जाति धर्म रूपी बड़वानल है वो हमें पार जाने ही नहीं दे रहा| सयाने लोग तो उड़कर पहुँच जा रहे हैं यहाँ से वहाँ| मगर भोली भाली जनता कैसे पार पाये| क्योंकि जनता तो लाचार बना दी गई है| जाति धर्म रूपी अफीम छना दी गई है| जनता तो अफीम के नशे में सुस्त पडी़ हुई है| सयानों के इशारों पर नृत्य कर रही है|वो जैसा चाह रहे हैं वैसा नचा रहे हैं|
हमें सिखाया गया ये देश तुम्हारा है|तुम इसके रक्षक हो|इसलिए देश पर बलिदान होना तुम्हारा कर्तव्य है|हमने खुशी खुशी मान लिया| हम अपने देश की खुशहाली के लिए बलिदान देते रहे| और सयाने हमारे बलिदान का फायदा उठाते रहे और उठा भी रहे हैं| हमको जाति धर्म और राष्ट्र के नाम से लड़ाते रहे,लड़ाते आ रहे हैं| और सयाने लोग आपस मैं मिलकर अपने राज भोग रहे हैं| और हम भारतवासी लड़ भिड़ कर अपने को खपा रहे हैं किसके लिए| न परिवार के लिए, न जाति के लिए, न धर्म के लिए, ना देश के लिए| हम अपने को खपा रहे हैं उनकी सुख सुविधा के लिए जो हमारे साथ केवल और केवल छल कर रहे हैं| हमें आरक्षण रूपी लेबिनचूस थमा के अपने सारे सुख भोग रहे हैं| हम अपना हित अनहित उन्हीं के साथ जोड़ रखे हैं| जो हमारी भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं| हम उनके लिए लड़ मर खप रहे हैं, जो हमें सदा लड़ते मरते खपते देख जश्न मनाते हैं| हम उनके लिए बलिदान हो रहे हैं या हुए हैं, जो हमारे ही शव पर नर्तन किए हैं और कर रहे हैं|
अब हमें सुप्ता अवस्था से जाग्रत अवस्था में आना होगा| इन मक्कार छलियों से बचना होगा| लेबिनचूस के चक्कर में इन छलियों के छल से बचना होगा| अब हमें लेबिनचूस से कोई बहका ले ऐसा नहीं होगा| ए बात इन छलियों को बताना होगा|तभी हम अपने साथ हो रहे छल से बच पायेंगे| हमें आत्मनिर्भर बनना पड़ेगा| लालच से बचना होगा| आरक्षण या मुफ्त वाली बैसाखी तोड़कर फेंकना होगा| सरकार के सहारे जीने की आदत को छोड़ना होगा| नहीं तो ये छलिए हमें इसी तरह छलते रहेंगे| बार बार और हम तो बरवाद होते रहेंगे साथ में देश भी होगा| और छलिए समृद्ध होते रहेंगे| हमारे साथ छल करके|
1 टिप्पणियाँ
सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद