जाति धर्म और धर्मांधता | #NayaSaveraNetwork

पं.जमदग्निपुरी

नया सवेरा नेटवर्क

पौराणिक कथाओं के अनुसार जब सृष्टि निर्मित हुई तो ईश्वर ने जितने जड़ चेतन में जीवधारी थे सबमें तीन जाति बनाया|पुलिंग स्त्री लिंग और उभलिंगी|चार युग बनाया|सतयुग,द्वापर,त्रेत्रा,और कलियुग|पौराणिक कथाओं के अनुसार जब चतुर्युग समाप्त होता है तो पृथ्वी पर महाप्रलय आता है|और सब जीव नष्ट हो जाते हैं|इस चतुर्युग  के मान्यतानुसार प्रथम पुरुष के रूप में मनु महराज को माना जाता है|सृष्टि रचना में सहभागिता के लिए प्रथम महिला के रूप में सतरूपा को माना जाता है|जब यह बात वेद शास्त्रों द्वारा प्रमाणित है कि यह सृष्टि मनु की वंशज है तो ए ऊँच नीच हिन्दू मुस्लिम का वीजारोपण कैसे हुआ|जबकी तब एक ही धर्म था मानव धर्म में तीन ही जाति थी,नर मादा,व उभयलिंगी|

     अब सोंचने वाली बात यह है कि जब एक ही धर्म था मानव धर्म या उसी को हम सनातन धर्म भी कह सकते हैं|तो इतने धर्म और इतनी जातियाँ कैसे उत्पन्न हुई|मनु महराज ने मानव जीवन सुचारु रूप से चल सके इसके इसलिए चार पद का सृजन किया|ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य व शूद्र|इसे कद काठी व आहार विहार के अनुसार लोगों में विभाजित किया|और साथ में पदोन्नति व पदोवनति की व्यवस्था भी किया|जिससे सभी सुखमय तरीके से जी सकें जिसमें सभी जीव निर्जीव जड़ चेतन को सहूलियत से जीने रहने खाने आहार विहार व्यवहार की व्यवस्था हो ऐसे समाज का उन्होंने निर्माण किया|चयन प्रक्रिया में जो जिस लायक था उसे उसी तरह काम दिया गया|उस संस्कृति का नाम आर्य संस्कृति दिया गया|उसके नियम भी बनाये गये|जिसका लोग कड़ाई से पालन करते थे|उसी आर्य संस्कृति से अनार्य का उद्भव हुआ|जो धीरे धीरे एक कालांतर में पंथ, पंथ से धर्म का रूप ले लिया|आर्य संस्कृति के नियम बड़े कठोर थे|जो उन नियमों की अवहेलना करते पकड़ा जाता था|उसे आर्य संस्कृति से निकाल दिया जाता था म्लेच्छ कहके|जिसे म्लेच्छ कहके निकाला जाता था उसे फिर गाँव में रहने नहीं दिया जाता था|वे लोग जंगलों में जाके रहते थे और उनके सभी काम सभ्य समाज के विपरीत होते थे|लूट मार डकैती छिनैती अपहरण बलात्कार उनका व्यवसाय बनते गया|क्योंकि जीने के लिए भोजन की जरूरत थी|संख्या बढल बढ़ाने के लिए महिला की जरूरत थी|जो जंगल में उपलब्ध नहीं था|इसलिए वे लोग जंगली पशु पक्षियों को मार कर खाने लगे |अनियमित आचार विचार आहार विहार से वे लोग ताकतवर बनते गये|उनकी संख्या में वृद्धि होती गई|वे सब आर्यों के विपरीत काम को ही अपनाये|इसलिए उनकी वृद्धि तीब्र गति से हुई|वे पहले अनार्य बने,जिसे राक्षस भी कहा जाता है|कालांतर में यही लोग सनातन से हटके एक अलग धर्म की घोषणा कर दी|इस्लाम धर्म| क्योंकि ये लोग सदैव मारकाट चोरी डकैती बलात्कार अपहरण में लिप्त रहते थे|इसलिए इनका विस्तार तीब्र गति से हुआ|और एक बहुत बड़े भूभाग पर कब्जा करने में सफल हो गये|इन्होंने अपना एक देश बना लिया|एक खलीफा नियुक्त कर उसी के बताये हुए कुसंस्कृति का निर्माण करते ये आगे बढ़ते गये|इसी तरह आर्य संस्कृति से ही यहूदी इसाई आदि का उद्भव हो गया|

       इधर जो जिसे पद मिला लोग उसे जाति बना लिए और धीरे सामाजिक ताना बाना बिगड़ने लगा|जिस आर्य संसकृति में कर्म का आधार था वह जन्म से जुड़ गया|उसी को जो जैसे ताकतवर बना एक धर्म और एक जाति का गठन करते गया|कुछ संतो द्वारा हुआ तो कुछ असंतो द्वारा|इस तरह अपनी अपनी चलाने के लिए कुछ लोग अलग जाति धर्म का निर्माण किया तो कुछ लोग धर्म बचाने के लिए संगठन बनाया|वही संगठन कालांतर में धर्म बन गया|और मानव या यूँ कहें कि सनातन के गले की फाँस बन गया|इसी तरह जाति में जाति धर्म में धर्म बनते गये और मानव धर्म विलुप्त हो के हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई यहूदी जैन बौद्ध आदि बन गये|आर्य संस्कृति में अनार्य संस्कृति ने गहराई तक अपनी पैठ बना ली|आर्य संस्कृति जाति में विभक्त हो छिन्न भिन्न हो गई|जाति प्रभावी हो गई|जिसका दुष्परिणाम यह हो रहा है कि लोग असभ्य होते जा रहे हैं|ऊँच नीच की भावनाओं से ग्रसित हो गर्त में जा रहे हैं|मजे की बात यह है कि सब जानते हुए|समझते हुए पतन की तरफ ही बढ़ रहे है|इसी जाति और धर्म को शातिर विद्वान लोग और शासक लोग इसे अपना अमोघ अस्त्र बना लिए|और अपने राजा बने रहने के लिए और बनने के लिए समय समय पर इस अमोघ अस्त्र का होंशियारी पूर्वक उपयोग करते रहते हैं|जिससे भाईचारा एकता सब खंडित हो रक्तरंजित हो रही है|और जनता जाति में बँट धर्मांधता की तरफ उन्मुख हो गई|

      ये सब इसलिए हो रहा है कि लोग शास्त्र से विमुख हो गये|शास्त्र न पढ़के उपन्यास पढ़ने लगे|शातिर विद्वानों का लेख पढ़ने लगे|शासकों की बात को अधिक महत्व देने लगे और शास्त्र की बात को नकारते गये|जिसका नतीजा यह हो रहा है कि कोई भी हित चिंतक बनके आता है|और समाज में विषवमन करके आनंद उठाता है|और हमें लड़ाता है|कोई टुटपुजिया नेता अंट संट बकता है

अर्थ को अनर्थ बनाकर परोसता है|और हम उसे ही सही मानकर अपना अहित कर बैठते हैं|और अपनों को ही खतम करने पर उतारू हो जाते हैं|यह इसलिए सम्भव हो रहा है कि हमने शास्त्र का अध्ययन करना छोड़ दिया है|सत्तासीनों की कठपुतली बनकर रह गये हैं|

     हमारी विगत सरकारों ने बड़ी होशियारी से हमें शास्त्र से विमुख कर सिनेमा उपन्यास किस्सा कहानी में उलझाकर अपना उल्लू सीधा करती रहीं|कमोवेश आज भी वही हो रहा है|और हम हैं कि देखते हुए समझते हुए,उनके ही बुने जाल में उलझते जा रहे हैं|और आर्य संस्कृति व सनातन या यूँ कहें हिन्दू धर्म पर कुठाराघात करते हुए खुद को नष्ट करने पर तुले हुए हैं|आज हम पढ़ लिख के भी अनाड़ी ही बने हुए हैं|क्योंकि हमने जो भी पढ़ाई की सब पैसा कमाने ऐशो आराम पाने के लिए की|जीवन सही तरीके से जीने की की,की ही नहीं|जीवन खपाने वाली की|शस्त्र की पढा़ई की शास्त्र को देखा तक नहीं|इसीलिए जो आज समाज में विसंगतियाँ हैं वह कम होने की बजाय और विकराल रूप लेती जा रही हैं|इसका फायदा कुछ चिंतक और हमारे कर्णधार नेतागण बड़ी चतुराई से हमें मूर्ख बनाकर उठा रहे हैं|जीवन दर्शन को यदि सही ढंग से समझना है तो मनुस्मृति का अध्ययन करना होगा|गीता और रामायण में उधृत शब्दों के अर्थ को सही ढंग से समझना होगा|तभी हम अपने और अपने लोंगो का जीवन सरल बना पायेंगे|अन्यथा स्वामी प्रसाद जैसे बकवादियों की बात को सुनकर मानते हुए खुद तो डूबेंगे ही देश धर्म जाति सबको डुबो देंगे|धर्मांधता में जीवन नर्क बनाते जायेंगे|

       यह जाति धर्म ऊँच नींच विवाह जैसे पवित्र रिश्ते में बड़ी गहराई तक घुस गया है|जिसके चलते लोग जाति और धर्म के मांसिक गुलाम हो गये|बहुत सारी जिन्दगियाँ इसके चलते नारकीय जीवन जीने के लिए विवश होती गईं|पहले स्वयम्बर की व्यवस्था थी|लड़कियाँ अपना जीवन साथी स्वत: चुनती थीं|इसके हमारे शास्त्रों में अनगिनत प्रमाण हैं|लेकिन बीच में यह व्यवस्था बन गई कि लड़कियों की इच्छा के विपरीत होने लगा जिसका नाम विवाह हो गया|इसमें अब बहुत सारी विसंगतियाँ आ गई हैं|जिसमें दहेज दानव की तरह उत्पन्न हो गया है|ये सब इसलिए हो रहा है कि हम शास्त्र से विमुख हो गये हैं|सुनी सुनाई बात को सही मान बैठे हैं|और जाति व धर्मांधता में अपने को सिद्दत से ढाले हुए हैं|

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