इंडिया बनाम भारत | #NayaSaveraNetwork

नया सवेरा नेटवर्क

बीते कुछ दिनों से इंडिया बनाम भारत पर सियासत तेज हो चुकी है। अभी पूर्व में कुछ दिनों पहले ही जी 20 शिखर सम्मेलन में शामिल मेहमानों को देश की वर्तमान राष्ट्रपति महामहिम द्रौपदी मुर्मू की ओर से भेजे गए रात्रिभोज के निमंत्रण पत्र में 'प्रेसिडेंट ऑफ भारत' लिखा गया था। जिस पर विपक्षी दलों ने अपने अपने विचार व्यक्त किए और आरोप भी लगाए कि देश की वर्तमान सरकार देश का नाम  इंडिया से बदलकर भारत करना चाहती है।

देशभर में आज के समय चौक- चौराहे से लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स तक हर जगह ये चर्चा हो रही है कि देश का क्या नाम सबसे उचित है भारत या इंडिया। मेरे मन में भी बार बार यह प्रश्न उठता है कि आखिर इंडिया बनाम भारत क्या है

आइए जानते हैं कि संविधान सभा में देश को क्या नाम मिला और कौन किसके पक्ष में था?

इतिहास के पन्ने पलटें तो स्पष्ट होता है कि पहले-पहल संविधान निर्माताओं ने इसमें देश के लिए भारत शब्द का प्रयोग नहीं किया था। केवल इंडिया था। इस पर कई सदस्यों ने आपत्ति जताई थी।

एक विशेष अध्ययन से पता चला कि संविधान का अनुच्छेद- एक देश के नाम को स्पष्ट करता है। इसमें लिखा है- इंडिया दैट इज भारत... यानी दोनों नाम शामिल किए गए किंतु हजारों वर्ष पुराने भारत के बजाय अंग्रेजीकरण किए जा चुके नाम इंडिया को प्राथमिकता दी गई।

इसी मुद्दे को अपनी अपनी विचारधारा के तहत तूल देते हुए कुछ नेताओं ने भारत शब्द पर विशेष जोर दिया और भारत क्यों होना चाहिए इसकी खामियां भी बताया !

इसके बाद देश के नाम पर संविधान सभा में जबर्दस्त बहस हुई जिसमें महाकोशल (अब मप्र ) से आए सदस्य सेठ गोविंद दास और अल्मोड़ा में जन्मे हरगोविंद श्री कामत ने बहस पंत भारत नाम के प्रयोग लेकर प्रस्ताव करते हुए बहुत मुखर रहे। के. सुब्बाराव,राम सहाय और कमलापति त्रिपाठी ने भी भारत पर जोर दिया।

इंडिया नाम का कोई प्राचीन इतिहास नहीं रहा सम्पूर्ण क्षेत्रफल का इतिहास भारत की एकता और अखंडता एव भारत की सभ्यता और संस्कृति से जानी जाती हैं आज इंडिया सिर्फ और सिर्फ अंग्रेजों की सुविधा के रूप में बोला गया एक अस्थाई शब्द था जो आजादी के बाद भी देश के तमाम काग्जात पर उनके द्वारा उपयोग होने वाले शब्द इसलिए रह रह गये क्योंकि उनके द्वारा तमाम समझौते किए गए जिसके काग्जात पर उनके द्वारा प्रयोग होने वाले शब्द इंडिया ही लिखे गए।

अगर बात करें तो वहीं इतिहास के हर दौर में अखंड भारत की सभ्यता संस्कृति बहुचर्चित है इतिहास का हर युग भारत ही दर्शाता है इसलिए यदि भारत नाम का कहीं उल्लेख होता है तो बिल्कुल उचित है। इसलिए इस दौर में हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति का पालन अतिआवश्यक है और मैं आशीष मिश्र उर्वर देश की राष्ट्रपति महामहिम द्रोपदी मुर्मू जी का पुरजोर समर्थन करता हूं और मैं कहना चाहूंगा कि जिस प्रकार से पूर्व में भारत अपना इतिहास दोहराया है ठीक उसी भांति जी ट्वेंटी का यह शिखर सम्मेलन भी अपने आप में हम भारत वासियों के लिए किसी राष्ट्रीय पर्व से कम नहीं है जो हर भारतीय के लिए बहुत ही गौरव का विषय है , आज भारत फिर एक कीर्तिमान स्थापित किया इस वैश्विक उत्सव का स्थल भारत का होना बहुत कुछ दर्शाता है। आज भारत विश्व को कतार में खड़ा करना जानता है, वैश्विक नेतृत्व कर्ता है क्या यह किसी कीर्तिमान व गौरव से कम है और हमें भी एक भारतवासी होने के नाते अपने आप में गर्व महसूस होता है कि हम दुनिया के एक ऐसे महान देश की संतान हैं जो विश्व की अगुवाई करता है और तमाम देशों को राह दिखाता है। और अपने सामने दुष्मन देशों को उन्हीं की भाषा में उत्तर देता है हमें गर्व है अपने भारत पर और अपने भारतीय होने पर भी मैं बहुत भाग्यशाली व्यक्ति हूं जो इस गौरवशाली देश का नागरिक हूं।


आप को बता दें कि कुछ रिपोर्ट को खंगालने पर विशेष  रूप से पता चला कि, 

अनुच्छेद- एक पर बहस 17 नवंबर 1948 को होनी थी, लेकिन गोविंद बल्लभ पंत के सुझाव पर टल गई। 18 सितंबर 1949 को बीआर आंबेडकर ने अनुच्छेद- एक बदलाव के साथ प्रस्तुत किया जिसमें इंडिया पहले था।

जहां कई सदस्य इस नामकरण और शब्दों के क्रम से सहमत नहीं थे। संविधान सभा के सदस्य एचवी कामत ने बहस का प्रस्ताव करते हुए भारत शब्द को पहले रखने की बात कही।

और सेठ गोविंद दास ने विष्णु और ब्रह्म पुराण का उदाहरण देते हुए कहा कि इंडिया नाम का कोई प्राचीन इतिहास नहीं है। भारत शब्द हमारी सांस्कृतिक विरासत और समृद्ध इतिहास का परिचायक है। यदि इस संबंध में सही निर्णय नहीं लिया गया तो देशवासी स्वाधीनता का भाव कैसे अनुभव कर सकेंगे? इसी कड़ी में एक बयान आता है कि

भारत दैट इज इंडिया: कमलापति त्रिपाठी के शब्दों में 

ऐसे में कमलापति त्रिपाठी का संबोधन आज भी याद किया जाता है। उन्होंने कहा था कि संविधान में भारत दैट इज इंडिया... लिखा जाना चाहिए। एक हजार वर्ष की दासता के कारण देश ने अपना नाम, इतिहास और मान गवा दिया है। यह पुनस्थापित किया जाना चाहिए।

तो वही हरगोविंद पंत ने भारतवर्ष नाम पर जोर देते हुए जंबूद्वीपे भरतखंडे आर्यावर्त... का उल्लेख किया है। और कहा कि भारत का उल्लेख महाकवि कालिदास ने किया है। इंडिया विदेशी अपनी सुविधा के लिए लाए।

यदि देश का नाम  उसकी धरोहर, संस्कृति, और सभ्यता के नाम पर हो तो कहीं न कहीं गौरवशाली माना जाता है, क्यों कि संसार में हर तिनके आकार को किसी न किसी नाम से जाना जाता है जो उसकी स्थिति को दर्शाता है। नाम का भी जीवन में बहुत प्रभाव होता है, नाम ही है जो हमारे सम्पूर्ण आकार का संवोधन करता है और हमारी पहचान कराता है। इसलिए देश का नाम सदैव उसकी ऐतिहासिक तथ्यों पर होना सफल माना जाता है। जहां भारत यथोचित रहेगा। हमें अपने भारतवासी होने पर गर्व है, भारत माता की जय।

लेखक- आशीष मिश्र उर्वर

कादीपुर, सुल्तानपुर।


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