नया सवेरा नेटवर्क
- कवि दीपक की भांति प्रकाश देता है: डॉ. दुबे
मुम्बई। के.सी. काॅलेज हिंदी विभाग द्वारा कोंकण रेलवे के डायेक्टर (वाणिज्य एवं परिचालन) संतोष झा के काव्य-संग्रह "फूल, कलम और बंदूक" का लोकार्पण एवं "सूरज का वारिस" पर चर्चा सत्र आयोजित किया गया। दीप-प्रज्वलन और सरस्वती वंदना से आरंभ कार्यक्रम की शुरुआत में उपप्राचार्य स्मरजीत पाधी ने उपस्थित विद्वानों का स्वागत किया। अध्यक्षता करते हुए महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के कार्याध्यक्ष प्रो. डाॅ. शीतला प्रसाद दुबे ने कहा कि कवि की कविताओं में सूरज की बात अवश्य होती है, लेकिन स्वयं वह दीपक की तरह जलकर समाज को प्रकाशित करता है। उन्होंने कहा कि कवि कर्म, समाज को जोड़ने का उपक्रम है। डॉ. दुबे ने कवि सुंदर दास, घनानंद, केदारनाथ अग्रवाल की पंक्तियों को प्रस्तुत करते हुए कविता के महत्व को बताया। उन्होंने सूरज का वारिस काव्य संग्रह की एक कविता "मैं एक नन्हा सा दीपक" पर चर्चा करते हुए कवि के विशाल हृदयता को बताया। उन्होंने कहा कि कविता के बारे में बात करना, मतलब जीवन के बारे में बात करना और जीवन के बारे में बात करना मतलब रंगमंच की बात करना है।
मुख्य अतिथि के रूप में नादिरा बब्बर ने कवि संतोष झा को साधुवाद देते हुए कविता की आवश्यकता को रेखांकित किया। इसके बाद उपस्थित श्रोताओं के आग्रह पर नादिरा ने स्वयं की रचना "मां के हाथ" सुनाकर सभी को भाव विह्वल कर दिया।
दोनों संग्रहों के रचनाकार एवं कोंकण रेलवे के डायरेक्टर संतोष झा ने कहा कि जो जितना बड़ा होता है, उनमें उतनी ही विनम्रता होती है। ये गुण हमें नादिरा बब्बर से सीखने को मिलते हैं। श्री झा ने डॉ. शीतला प्रसाद दुबे का बखान करते हुए कहा कि विनम्रता इनके डीएनए में है। इसके बाद उन्होंने स्वरचित रचना "काश तेरा लहू हरा होता..." और "खुशनुमा कल" सुनाया। साथ ही कविताओं का पाठ करते हुए उन्होंने उसकी रचनात्मकता पर प्रकाश डाला। श्रीमती रेणु शर्मा और डॉ. अनंत द्विवेदी ने कविताओं की समीक्षा प्रस्तुत की। संचालन डॉ. अजीत कुमार राय ने किया।
इस अवसर पर पंकज, आनंद सिंह, दीपनारायण शुक्ल, डॉ. सुधीर कुमार चौबे, गजानन महतपुरकर, कवि सुरेश मिश्र, रासबिहारी पांडेय, अमरेश सिन्हा सहित हिंदी प्रेमी और विद्यार्थी उपस्थित थे।
0 टिप्पणियाँ