टमाटर | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
टमाटर
भाव कम थे मेरे तो इज्जत नहीं
हर घर में सड़ रहे थे,
भाव ने चढ़ाई क्या दिखाया जरा
लोग काटने में डर रहे हैं।
कितना भी मैं अच्छा था लोग
सलाद बना देते थे,
अब सब्ज़ी में भी डालना पड़े तो
थोड़ा सा रस गिरा लेते हैं।
पहले मैं हर फ्रीज में नजर आता था
अब मैं मामूली नहीं दिखाई देता
हर सब्जी में डालने वाले जो थे
उसी को अब दिखाई नहीं देता।
आखिर में मेरा दिन बदला और मैं
इतना कहर ढा गया
जो मुझे पांच किलो ले लेते थे अब आधा किलो तक आ गया ।
सच कहा गया है
दिन बदलता है जरूर
टूट जाता है सबका गुरूर
अपने ही दोषों को जुटा के
थोड़े दूर पर ही बनाते हैं घूर।
टमाटर में लाल रंग था
जीवन में बड़ा उमंग था ,
आलू का संगम और कोहड़ा का साथ
प्याज और लहसुन का संग था।
20 में लाते थे तो सड़ जाने तक रखा जाता था
120 में लाते हैं तो फ्रीज में रखकर चखा जाता है।
इसीलिए समय बदलता है
खुद को बदलना चाहिए ,
संग उसके ही रहने लायक है
जो दुःख सुख में साथ नजर आता है ।
रितेश मौर्य
जौनपुर , उत्तर प्रदेश
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