निर्मल मन ही पाते मुक्ती | #NayaSaveraNetwork
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||निर्मल मन ही पाते मुक्ती||
नहीं पुण्य मिलता है तीरथ में जाने से|
नहीं पाप कटता है गंगा नहाने से||
नहीं स्वर्ग मिलता भजन सिर्फ गाने से|
नहीं ईश मिलता है मंदिर में जाने से||
नहीं खुश वो होते हैं आरती घुमाने से|
नहीं भाव बिन भोग छप्पन लगाने से||
नहीं जागते उच्च स्वर में जगाने से|
सदा दौड़े आते हैं प्रेम से बुलाने से||
बुलाया था गजराज तुरत प्रभु थे आये|
लाज सैरंध्री की प्रभु स्वतः आ बचाये||
कुम्भज के घर प्रभु सुतीक्षण संग आये|
पास सुग्रीव के जा हृदय से लगाये||
ये पाये सभी मन को निर्मल बनाने से|
हुए मुक्त महि पे सदा आने जाने से||
मिलते हैं प्रभु मन उन्हीं में रमाने से|
मिलते नहीं इत उत तन को भगाने से||
लेखक - पं. जमदग्निपुरी