पीएम मोदी ने नए संसद भवन में किया सेंगोल स्थापित, आखिर इस राजदंड की क्या है कहानी? जानिए | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज नए संसद भवन का उद्घाटन किया और ऐतिहासिक सेंगोल को लोकसभा कक्ष में स्थापित किया. सेंगोल पिछले कुछ दिनों से लगातार चर्चा में है. आखिर राजसत्ता के प्रतीक इस राजदंड का महत्व इतना ज्यादा क्यों है?
जिसे ब्रिटिश राज से सत्ता हासिल करते समय देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को सौंपा गया था. गृह मंत्री अमित शाह ने पहले अपने एक बयान में भारतीय संस्कृति, विशेष रूप से तमिल संस्कृति में सेंगोल की महत्वपूर्ण भूमिका पर रोशनी डाली थी.
सेंगोल को चोल राजवंश के समय से एक राजा से दूसरे राजा को सत्ता सौंपने का प्रतीक माना जाता है. चोल काल के दौरान राजाओं के राज्याभिषेक समारोहों में सेंगोल का बहुत महत्व था. यह एक औपचारिक भाले या ध्वज के दंड के रूप में कार्य करता था.
इसमें बहुत ज्यादा नक्काशी और जटिल सजावटी काम शामिल होता था. सेंगोल को अधिकार का एक पवित्र प्रतीक माना जाता था, जो एक शासक से दूसरे शासक को सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक था. सेंगोल चोल राजाओं की शक्ति, वैधता और संप्रभुता के प्रतिष्ठित प्रतीक के रूप में उभरा.
- आजाद भारत में सेंगोल का इतिहास
अंग्रेजों से भारतीय हाथों में सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीकात्मक समारोह के बारे में चर्चा के दौरान वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से एक सवाल किया था. माउंटबेटन ने भारतीय परंपरा में इस महत्वपूर्ण घटना को दिखाने के लिए किसी उपयुक्त समारोह के बारे में जानकारी मांगी थी. पंडित नेहरू ने इसके बारे में सी. राजगोपालाचारी से सलाह मांगी.
राजाजी के नाम से मशहूर सी. राजगोपालाचारी ने चोल वंश के सत्ता हस्तांतरण के मॉडल से प्रेरणा लेने का सुझाव दिया. राजाजी के मुताबिक चोल मॉडल में एक राजा से उसके उत्तराधिकारी को सेंगोल का प्रतीकात्मक हस्तांतरण शामिल था.
- सेंगोल बना ब्रिटिश राज से सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक
चोल मॉडल को अपनाने और सेंगोल के औपचारिक सौंपने को शामिल करके ब्रिटिश राज से भारतीय हाथों में सत्ता के हस्तांतरण को प्रतीकात्मक रूप से दर्शाया गया था. यह फैसला न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांतों से शासित एक आजाद देश के रूप में बदलाव का संकेत था. यह भारत की प्राचीन परंपराओं और सांस्कृतिक विरासत के लिए सम्मान को दर्शाता है. राजाजी ने इसके लिए तमिलनाडु के तंजौर जिले में स्थित एक धार्मिक मठ थिरुववदुथुराई अधीनम से संपर्क किया. अधीनम गैर-ब्राह्मण मठवासी संस्थान हैं, जो भगवान शिव की शिक्षाओं और परंपराओं का पालन करते हैं.
- आजाद भारत के लिए सेंगोल बनाने वाले आज भी जीवित
एक सेंगोल को लगभग पांच फीट लंबा होता है. सेंगोल के शीर्ष पर स्थित नंदी बैल होता है, जो न्याय और निष्पक्षता का प्रतीक है. सेंगोल को तैयार करने का काम चेन्नई के जाने-माने जौहरी वुम्मिदी बंगारू चेट्टी को सौंपा गया था. वुम्मिदी परिवार का हिस्सा- वुम्मिदी एथिराजुलु (96 वर्ष) और वुम्मिदी सुधाकर (88 वर्ष) सेंगोल के निर्माण में शामिल थे और आज भी जीवित हैं.
14 अगस्त, 1947 के ऐतिहासिक दिन पर सत्ता हस्तांतरण के प्रतीकात्मक समारोह लिए सेंगोल दिल्ली लाया गया. सबसे पहले उस समय भारत के वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन को सेंगोल भेंट किया गया. फिर उनसे सेंगोल को वापस ले लिया गया. सेंगोल को पवित्र जल से शुद्ध किया गया और फिर पंडित जवाहरलाल नेहरू को सौंप दिया गया.
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