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सीजोफ्रेनिया दिवस पर संगोष्ठी में बोले चिकित्कस
जौनपुर। सीजोफ्रेनिया दिवस के अवसर पर श्री कृष्णा न्यूरो एवं मानसिक रोग चिकित्सालय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें डॉक्टर हरिनाथ यादव मरीजों और उनके साथ अभिभावकों को सीजोफ्रेनिया के बारे में समझाते हुए बताया कि सिजोफ्रेनिया एक मानसिक बीमारी है जो पूर्णता ठीक हो सकती है। यह मस्तिष्क में रासायनिक असंतुलन सामाजिक और व्यवसायिक दुष्क्रियाओं से होने वाला एक मानसिक विकार है। यद्यपि सीजोफ्रेनिया के भ्रांतिमूलक विचार व भ्रम के कारण कभी-कभी हिंसक व्यवहार दिखाई पड़ता है पर इससे ग्रसित ज्यादातर व्यक्ति न तो हिंसक होते हैं और न ही दुसरों के लिए खतरा । हिंसक व्यवहार को दवा से नियंत्रित किया जा सकता है। श्री यादव ने बीमारी के लक्ष्ण के बारे में बताया कि इस बिमारी में मरीज को ऐसा प्रतीत होता है कि कोई उसे आवाज दे रहा है। मरीज को नींद कम आती है। साथ-साथ कभी वो उल्टी सीधे बाते करने लगता है और बिना बात के ही मुस्कुराने व रोने लगता है। कहा कि सीजोफ्रेनिया को लेकर तमाम तरह की भ्रांतिया हैं न तो पारिवारिक पापों के कारण ई·ारीय दंड है और न ही यह प्रेम की कमी से होता है। यह व्यक्ति के जनेटिक, सामाजिक उसके वातावरण के कारण होता है। इसके उपचार में शादी से मदद नहीं मिलती है। रोगी को चाहिये कि वह शादी से पहले मनोवैज्ञानिक चिकित्सक से परामशर््ा ले और होने वाले जीवनसाथी को रोग और होने वाले जीवनसाथी को रोग और उपचार के बारे में अवश्य बतायें मानसिक कमजोरी पूरी तरह से अलग अलग स्थितियां है। जिसमें व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता हमेशा के लिये क्षतिग्रस्त हो जाती है दिखाते रहें। जबकि समय से और उचित इलाज से मनोबलता ठीक हो जाती है। बीमारी के इलाज को लेकर बताया कि इसके पुनर्वास उपचार पद्धति तथा पूरी सामाजिक सहारे और समझ से ग्रषित व्यक्ति का उपचार संभव है। रोगी को सुरक्षित स्थान की आवश्यकता होती है जहां वह स्वस्थ होने के लिये स्थित और एकाग्र हो सके। दवा का नाम खुराक और सेवन की विधि जानना आवश्यक है। हिंसक हमले के विशेष चेतावनी चिन्हों को पहचाना सीखें। रोगी को सामाजिक बनने के लिये उत्साहित करें। रोगी के पहुंच में पैनी व खतरनाक वस्तुएं न रखें। डॉक्टर ने सलाह दी कि किसी तकलीफ साइड इफेक्ट और अनुभव के बारे में डाक्टर को सूचित करें ताकि वह खुराक में बदलाव अथवा अन्य दवा का चयन कर सके। डाक्टर के पास नियमित दिखाते रहे। संगोष्ठी में डॉक्टर सुशील यादव, लालजी यादव, आशुतोष सिंह, शिव बहादुर, सूरज आदि एवं मरीज़ और उनके अभिभावक उपस्थित रहे।
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