जौनपुर: शीतला महारानी अष्टमी पर विशेष पूजन | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
जौनपुर। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार सातों देवियों में शीतला माता सभी बहनो में सबसे छोटी है। जो सभी बहनों की दुलारी प्यारी है। भक्तो पर जल्द ही प्रसन्न होकर मनोवांछित फल प्रदान करती है। उनके एक झाडू दूसरे हाथ में कलश धारण की है। झाड़ू से विस्फोटक ज्वर रोग पीड़ा का को समाप्त कर कलश में शीतल जल से शारीरिक ज्वर पीड़ा को शान्त करती है। माता की सवारी गदहा है। सनातन हिन्दू धर्म के पंचांग के अनुसार, प्रत्येक वर्ष चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को बड़े ही विधि विधान से माता शीतला की पूजा की जाती है। इसे पर्व को पूर्वांचल में शीतला अष्टमी और बसौड़ा अष्टमी भी कहा जाता है। बसौड़ा शीतला माता को समर्पित लोकप्रिय त्योहार है। यह पूजन पर्व होली के आठवें दिन मनाया जाता है।धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन पूजन के दौरान माता शीतला देवी को हलवा ,पूरी, रोट,मीठे आटे में बने गुलगुल, मीठे चावल का भोग लगाया जाता है। खासतौर पर इस दिन मां शीतला को ठंडा होने पर ही बासी पकवानों का भोग लगाया जाता है। खुद भी बासी और ठंडा भोजन भक्तो को भी इस दिन करने चाहिए ऐसी मान्यता परम्परा है । शीतला अष्टमी के पूर्व घर की साफ सफाई कर पूरे विधि विधान के पूजन प्रसाद सामाग्री के साथ अस्टमी के दिन पूजन करने से शारीरिक बीमारियों से मुक्ति मिलती है और घर में सुख ,शांति, समृद्धि ,धन यश, वैभव बनी रहती है। इस बार शीतला अष्टमी 15 मार्च बुधवार को पड़ रहा है। इस दिन भोर में उठने के पश्चात स्नान करने के बाद साफ सफाई से रोट मीठे प्रसाद बनाकर माला फूल ले घर पूजन करने के बाद शीतला माता मन्दिर में जाकर भोग प्रसाद चढ़ाए। पंचांग के अनुसार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 14 मार्च 2023 को रात 08 बजकर 22 मिनट से शुरू हो रही है। इसका समापन 15 मार्च 2023 को शाम 06 बजकर 45 मिनट पर होगा। इस तरह 15 मार्च को शीतला अष्टमी रहेगी।मार्च को शीतला माता की पूजा का मुहूर्त 15 मार्च की सुबह 06 बजकर 30 मिनट से शाम 06 बजकर 29 मिनट तक है। शीतला अष्टमी के दिन सुबह स्नान के साफ वस्त्र धारण करें। पूजा के दौरान हाथ में फूल, अक्षत, जल लेकर व्रत का संकल्प लें।माता को रोली, फूल, वस्त्र, धूप, दीप, दक्षिणा और बासी भोग अर्पित करें।शीतला माता को दही, रबड़ी, चावल आदि चीजों का भी भोग लगाये।पूजा के समय शीतला स्त्रोत का पाठ करें और पूजा के बाद आरती जरूर करें। पूजा करने के बाद माता का भोग प्रसाद खाकर ही व्रत खोलें।
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