लखनऊ: कलाकार हमेशा स्वक्षन्द भाव में जीता है: अशोक सिन्हा | #NayaSaveraNetwork

नया सवेरा नेटवर्क

  • धर्म-आस्था और जीवन के समन्वित दस्तावेज हैं शैलेंद्र के छायाचित्र 
  • जलज स्मृति से सम्मानित हुए बिहार के वरिष्ठ छायाचित्रकार शैलेंद्र कुमार, सात दिवसीय छायाचित्र प्रदर्शनी का हुआ शुभारंभ।  
  • जलज के कृतित्व पर आधारित लेख संग्रह मोनोग्राफ का हुआ विमोचन  

लखनऊ। मुख्य अतिथि अशोक कुमार सिन्हा ने कहा कि कलाकार किसी बन्धन में नहीं रहता, वह स्वक्षन्द भाव मे जीता है और सृजनशील रहता है। यही सृजनात्मकता उसे  चिरकाल तक स्मृतियों में बनी रहती है। कला और कलाकारों को प्रोत्साहित करते रहना चाहिए। ताकि हमारी संस्कृति जीवित रह सके। कलाकारों और साहित्यकारों की नगरी लखनऊ में बुधवार की शाम एक कला का विशेष समारोह आयोजित किया गया। यह समारोह प्रदेश के युवा छायाचित्रकार जलज यादव की पावन स्मृति में हुई। इस समारोह में सर्वप्रथम सात दिवसीय छायाचित्र प्रदर्शनी का का उदघाटन किया गया जो एक धर्म-आस्था और जीवन के समन्वित दस्तावेज पर आधारित प्रदर्शनी लगाई गई है।

समारोह के कोऑर्डिनेटर भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने उक्त जानकारी देते हुए बताया कि यह समारोह बुधवार को सायं 4 बजे नगर के माल एवेन्यु स्थित सराका आर्ट गैलरी,होटल लेबुआ में आयोजित किया गया। समारोह में आमंत्रित कलाकार के रूप में पटना बिहार के वरिष्ठ सांस्कृतिक एवं विरासत छायाचित्रकार शैलेंद्र कुमार के 24 छायाचित्रों की शीर्षक "कल्चरल फ्रेम्स ऑफ इंडिया" एकल प्रदर्शनी भी लगाई गई, जलज यादव के कृतित्व पर आधारित  देश के 15 वरिष्ठ कला लेखकों और कला समीक्षकों के लेखों के संकलन मोनोग्राफ का भी लोकार्पण किया गया। और जलज स्मृति सम्मान-2023 से शैलेंद्र को सम्मानित भी किया गया।



इस समारोह का उदघाटन मुख्य अतिथि के रूप में पटना बिहार से बिहार संग्रहालय के अपर निदेशक अशोक कुमार सिन्हा एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में उत्तर प्रदेश सरकार के अपर मुख्य सचिव खेल एवं युवा अफ़ेयर नवनीत सहगल और जलज के पिता रमेश चन्द्र यादव ने दीप प्रज्ज्वलित करके शुभारंभ किया। प्रदर्शनी के क्यूरेटर डॉ वंदना सहगल ने शैलेंद्र के छायाचित्रों पर अपने विचार शब्दों के रूप में उपस्थित कला प्रेमियों और कलाकारों के बीच रखा। उन्होने कहा कि शैलेंद्र कुमार एक प्रसिद्ध फोटोग्राफर हैं, जो बिहार के रहने वाले हैं। वह अपनी रचनात्मक खोज को "आर्ट फ़ोटोग्राफ़ी" के रूप में प्रस्तुत करते हैं। श्री शैलेंद्र धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धरोहरों के क्षेत्र में विशेष योगदान को देखा जा सकता है। विदित हो कि कला एवं शिल्प महाविद्यालय, पटना से पेंटिंग विषय के स्नातक करने के बाद आज श्री शैलेंद्र पिछले 42 वर्षों से लगातार भारत के सांस्कृतिक रंगों एवं विरासत को अपने छायाचित्रों के माध्यम से सहेज रहे हैं। 

इनके छायाचित्रों की रेट्रोस्पेक्टिव शो, एकल और अनेकों समूहिक प्रदर्शनियां भी लगाई जा चुकी हैं । साथ ही अनेक कार्यशालाओं, कला शिविरों, स्लाइड शो में भी आपकी भागीदारी रही है। इतना ही नहीं विदेशों में आयोजित अनेक प्रदर्शनियों में भी आपके कलात्मक छायाचित्र प्रदर्शित एवं संग्रहित हो चुके हैं। कलात्मक फोटोग्राफी में अपने विशेष योगदान के लिए आपको अनेक सम्मान और पुरस्कार भी प्राप्त हैं। इनके चित्रों के फ्रेम,रंग और विषय के माध्यम से एक सामान्य तस्वीर को भी कला के रूप में बदल देता है। 

 रंग और कंट्रास्ट के सौंदर्यात्मक समन्वय से इनके फ्रेम का दर्शक पर गहरा प्रभाव पड़ता है। कहने की जरूरत नहीं है, फ्रेम का सौंदर्य पहलू अन्य सभी पर पूर्वता लेता है। वह अनुष्ठान या त्योहार या विरासत के अज्ञात पहलुओं को एक अद्वितीय फ्रेम और उसके उपचार के माध्यम से सामने लाते हैं। इस माध्यम से, शैलेंद्र दर्शकों के मस्तिष्क में कथा की एक पटकथा, एक लाक्षणिक शुरुआत, रंग, फ्रेम, घटना और विषयों के माध्यम से भारत के विचार और इसकी सांस्कृतिक समृद्धि की व्याख्या करती हैं।

उनके प्रिंट वास्तविकता को एक भ्रम के रूप में प्रस्तुत करते हैं, एक वास्तविक अनुभव पैदा करते हैं जो मन को एक स्थायी छाप के साथ छोड़ देता है और अंततः अनुष्ठान/त्योहार/स्थल की एक धारणा है जो भारत के लिए आंतरिक है लेकिन वास्तव में इसे कभी नहीं देखा जाता है। उनकी तस्वीरें समृद्ध विरासत को फिर से परिभाषित करने और फिर उन्हें भारत की एक केंद्रित समझ के रूप में बदलने के माध्यम से, भारत की सांस्कृतिक जड़ों का एक रूपक बनाती हैं। हम भारत को उनके 'आइडिया ऑफ इंडिया' के चश्मे से देख सकते हैं।

वरिष्ठ कला समीक्षक सुमन सिंह ने कहा कि धर्म सांस्कृतिक प्रणालियों, विश्वास और विश्वदृष्टि का एक ऐसा संग्रह है जो मानवता को आध्यात्मिकता और नैतिक मूल्यों से जोड़ता है। किसी धर्म या विचार को मानने-मनाने के क्रम में धर्मोपदेश, अपने आराध्य देवी-देवता या देवी-देवताओं का स्मरणोत्सव, बलिदान दिवस, उनसे जुड़े त्यौहार, प्रीतिभोज के साथ-साथ ध्यान, संगीत, कला एवं नृत्य जैसे आयोजन शामिल हो सकते हैं। हम पाते हैं कि जीवन के आध्यात्मिक आयाम में विश्वास अति प्राचीन काल से चला आ रहा है। इसके बहुतेरे उदाहरण हमें अपने भारतीय समाज में मिल जाते हैं। अब चाहे वह सूर्य, चन्द्रमा, अग्नि व प्रकृति की पूजा हो, अथवा विभिन्न देवी-देवताओं की; इसके प्रमाण व परंपरा के उदाहरण हमारे इर्द-गिर्द भरे पड़े हैं। सबसे सरल अर्थ में, धर्म मनुष्यों के उस संबंध का वर्णन करता है जिसे वे पवित्र, आध्यात्मिक या दैवीय मानते हैं। यह आमतौर पर संगठित प्रथाओं वाले समूहों के साथ होता है जो उस विश्वास को साझा करने वाली सामुदायिक भावना को बढ़ावा देता है। दरअसल विश्वास एक ऐसा व्यापक शब्द है और इसमें ऐसी प्रतिबद्धताएं शामिल हैं जो सदियों से मानव अस्तित्व का अविभाज्य अंग रहा है। कतिपय इन्हीं कारणों से हम अपने आसपास नियमित तौर पर ऐसे धार्मिक आयोजन या गतिविधियां देखते ही रहते हैं। इन आयोजनों या गतिविधियों के कुछ दृश्य ऐसे भी होते हैं, जिनकी स्मृतियां लंबे समय तक हमारे दिलोदिमाग में बस से जाते हैं। लेकिन जब शैलेन्द्र कुमार जैसा कोई अनुभवी कलावन्त छायाकार इन छवियों को अपने कैमरे में कैद कर लेता है। तो ऐसे में उन स्मृतियों को चिर स्थायित्व मिल जाता है। और जब किसी प्रदर्शनी के माध्यम से वे छायाचित्र हमारे सामने होते हैं, तो थोड़ी देर के लिए ही सही हम उस दृश्य या घटना से एकाकार हो जाते हैं। ऐसा ही एक अवसर लखनऊ के कलाप्रेमी दर्शकों के सामने उपस्थित है, युवा छायाकार जलज यादव की स्मृति में आयोजित इस एकल छायाचित्र प्रदर्शनी के माध्यम से। 

समारोह में प्रदेश और अन्य प्रदेश के भी कलाकार, कला समीक्षक, इतिहासकार,साहित्यकार, कलाप्रेमी उपस्थित रहे। सभी का धन्यवाद और आभार धीरज यादव ने किया। समारोह का संचालन भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने किया।


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