सारे जहां से अच्छा हिन्दोंस्तां हमारा! | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
सारे जहां से अच्छा हिन्दोंस्तां हमारा!
बदहाली की राह पर चले पाकिस्तान की एक खातून ने ख्वाब में अपने पति से क्या गुफ़्तगू की,आप भी समझिए!
मैं और मेरे शौहर अक्सर ये बातें करते हैं-
कि यदि हम भारत में होते,तो कितना अच्छा था,
जिस बदहाली से गुजर रहे हैं,इससे तो अच्छा था।
वे भारत के लोग और उनकी गंगा-जमुनी तहजीब,
जहाँ हिन्दू-मुस्लिम मिलकर मनाते हैं ईद।
खेलते हैं मिलके होली,
और बनाते हैं सारे जहां से अच्छा
हिन्दोस्तां हमारा की रंगोली।
शौर्य धारा को मोड़कर वे रचते हैं इतिहास,
पूरी दुनिया में है मानवता का तमगा उनके पास।
वसुधैव कुटुम्बकम् की है उनकी नीति,
दोस्त हो या दुश्मन हरेक से रखते हैं प्रीति।
सिर्फ अपने दोस्तों का ही वे भला नहीं चाहते,
वो तो दुश्मन को भी देते हैं ऊँचा पीढ़ा।
और परवरदिगार-ए-आलम से,
सभी की सलामती की माँगते हैं दुआ।
वो गुजार देते हैं रंज की घड़ी को भी खुशहाली में,
हमारे बजट के बराबर वहाँ के बच्चे
फोड़ देते हैं फटाकरी दिवाली में।
न जाने कितनी बार आक्रांताओं ने उन्हें लूटा था,
तोपों और तलवारों से उनका गर्दना नापा था।
माटी की आन बचाने में वो दुश्मन को
दिन में तारे दिखाए थे,
अपने वीरत्व की बदौलत विजय पताका भी फहराए थे।
धन्य है वो माटी भारत की
देखो खुशबू यहाँ तक है आती,
तरक्की की राहों पर हमें भी चलना है सिखाती।
वो करते हैं चरित्र की पूजा
और रहते हैं कपट से दूर,
पत्थर को छूकर अहिल्या के चेहरे पर लाए हैं नूर।
दूसरों का वो पी जाते हैं जहर और देते हैं अमृत,
किसी से उधार लेके नहीं पीते हैं घृत।
चमचम-चमचम-चमचम-चमचम चमक रहा है देखो,दिल्ली का सिंहासन,
न कभी किसी की जमींन है छीनता
और भंग न करता अनुशासन।
उस भारतवर्ष का दर्शन करा दे,
उस पावन मिट्टी को ला दे।
देख हमारी सत्ता का मद,
कभी न हमें ढंग से रहने देता।
जो भी बैठता हमारी कुर्सी,
न जाने कितना खाता।
कौन बताए इन्हें बाप-दादाओं की पगड़ी की इज्जत,
ये सदा सत्ता के भूखे रहते हैं और रहते हैं युद्धरत।
दिल पर हाथ रखकर बताओ शौहर,
मैंने क्या झूठ कहा?
वो जिधर समय को हाँकते हैं
पीछे चलता है सकल जहां।
उस खुदा ने हमें जो धरती बख्शी है
ये बम फोड़ने के लिए नहीं है।
सभ्यताओं का गला घोंटने के लिए भी नहीं है।
भूख से कितने बिलबिला रहे हैं बच्चे
रो रहे हैं बुनियाद के पत्थर,
जो कुछ देते थे आशीर्वाद देश,
उन्हें भी सता रहा है डर।
स्वाभिमान की रक्षा करना आखिर
हम क्यों भूल गए?
हम अपनी तकदीर को बोना आखिर क्यों भूल गए?
सत्ता-सुंदरी के संग कब तक रंगरेलियाँ मनाएँगे,
जो सोच के आए थे इस देश में
क्या उनके दिन लौटाएँगे?
क्या देखते हो थाम लो भारत का हाथ और गिरा दो नफरत की दीवार!
इन बेचैन हवाओं को रवानी दे दो,
और भंवर में फँसी कश्ती को जवानी दे दो।
दिल खोलकर ये कहो कि-
हाँ, भारत से मुझे मोहब्बत है!
मोहब्बत है!
मोहब्बत है!
रामकेश एम. यादव
(रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक), मुंबई।