उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री आवास योजना के नाम पर खुली लूट | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
जौनपुर। देश के अत्यंत गरीब लोगों को पक्के घर देने की योजना पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने इंदिरा आवास योजना के रूप में की थी। इंदिरा आवास योजना कालांतर में मोदी सरकार द्वारा प्रधानमंत्री आवास योजना में तब्दील कर दी गई। मोदी सरकार ने आवास योजना में व्याप्त भ्रष्टाचार को रोकने की दिशा में आवास की रकम सीधे लाभार्थी के खाते में डालने की शुरुआत की। परंतु भ्रष्टाचारी तो ठहरे भ्रष्टाचारी।
तू डाल डाल तो मैं पात पात की तर्ज पर भ्रष्टाचार का खेल बदस्तूर जारी है। कुछ भ्रष्ट प्रधान, भ्रष्ट सेक्रेटरी आज भी धड़ल्ले से रिश्वत ले रहे हैं। इसका जीता जागता उदाहरण दो दिन पहले जौनपुर के विभिन्न समाचार पत्रों और सोशल मीडिया में देखने को मिला। बदलापुर विधानसभा के सुतौली ग्राम सभा के महमदपुर गांव में रहने वाले निषाद वर्ग के कुछ लोगों ने पहली बार खुलकर भ्रष्टाचारी प्रधान के खिलाफ मुंह खोला। प्रधान पति द्वारा प्रधानमंत्री आवास योजना के एक लाभार्थी के खाते से जबरन10000 रूपए निकाल लिए गए।
निषाद समुदाय से जुड़ी उस महिला ने मुंह खोला। बात मीडिया तक पहुंची और भ्रष्टाचार का काला कारनामा लोगों तक पहुंच गया। इस गांव में करीब 70 आवास पास किए गए हैं। बताया जाता है कि यह आवास पूर्व प्रधान के समय ही सूचीबद्ध किया गया था। पूर्व प्रधान तो हार गए अब नए प्रधान ने वसूली शुरू कर दी। इस काम में सेक्रेटरी ने भी बराबर सहयोग किया। उसने भी लोगों के मन में भय डाला कि जो पैसा नहीं देंगे उनकी कॉलोनी निरस्त हो जाएगी। फिर क्या था, जिससे जो मिला वसूला गया।
सबसे कम रेट 10000 रूपए था। देश के प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हमेशा भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाने की बात कहते हैं। परंतु सरकारी भ्रष्ट कर्मचारी और भ्रष्ट प्रधानों पर अंकुश कौन लगाएगा? ग्रामीण स्तर पर होने वाले भ्रष्टाचार का सबसे अधिक शिकार गरीब और लोअर मिडल क्लास के लोग होते हैं। वहीं कुछ प्रधान ऐसे भी हैं, जो आसपास के गांव के लिए मिसाल है। वहां गांव के लोगों को सरकारी योजनाओं का पूरा-पूरा लाभ मिल रहा है।प्रधानमंत्री आवास योजना में ही लूट नहीं है। दूसरी तरफ मनरेगा जैसी योजनाओं में भी जमकर बंदरबांट हो रही है। परिणाम भी सामने है। एक एक रास्तों की चार चार बार मरम्मत करके पेमेंट ली गई, परंतु रास्ते वैसे ही खराब हालत में हैं। निकृष्ट दर्जे की ईट का इस्तेमाल जगजाहिर है।
जो व्यक्ति गांव का प्रथम नागरिक माना जाता है, वही व्यक्ति अपने ही गांव की विकास योजनाओं का पैसा खा रहा है, इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है? मनरेगा में आधे मजदूर इस तरह रखे जाते हैं कि जो घर बैठे रहते हैं। प्रधान उनके घर जाएंगे, उनके साथ पैसा निकालने वाली मशीन होगी। पैसा निकलते ही प्रधान, एक बड़ा भाग अपने पास रख लेंगे। वह व्यक्ति यह समझ कर चुप रहता है कि उसे भी घर बैठे पैसे मिल रहे हैं। देखा जाए तो सरकार विभिन्न योजनाओं के माध्यम से गांव के विकास के लिए इतना पैसा देती है कि वाकई में गांव का विकास हो सकता है। परंतु भ्रष्टाचार का राक्षस गांव के विकास की राशि लगातार निगल रहा है।