चाचा भतीजा मिले... क्या दिल खिले? | #NayaSaveraNetwork

नया सवेरा नेटवर्क

नया सवेरा नेटवर्क   प्रमोद जायसवाल  मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव ने समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव व चाचा शिवपाल यादव को मिला दिया। सारे गिले-शिकवे भुलाकर दोनों एक हो गए। भतीजे ने चाचा की शान में जमकर कसीदे पढ़े तो चाचा ने भी भतीजे को 'छोटे नेता' जी की उपाधि से विभूषित किया। नतीजन सपा प्रत्याशी डिम्पल यादव की रिकार्ड मतों से जीत हुई। तमाम कोशिशों व व्यूह रचना के बाद भी भाजपा उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा।    जीत से गदगद भतीजे ने चाचा को पार्टी में कद के मुताबिक सम्मानजनक पद देने की घोषणा की। उसके बाद चाचा भी पार्टी को मजबूत करने में जुट गए। मगर हाल में उपजे रामचरितमानस विवाद में दोनों की राहें जुदा नजर आई। अति पिछड़े और दलित वोटों को साधने के चक्कर में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ खड़े हो गए। इधर राजनीतिक परिपक्वता का परिचय देते हुए शिवपाल यादव ने स्वामी प्रसाद मौर्य के वक्तव्य से पल्ला झाड़ लिया और उसे उनका निजी विचार बताया। कहा कि उनके व्यक्तव्य से पार्टी का कोई लेना देना नहीं। अखिलेश यादव को रामचरितमानस प्रकरण में बहुत फायदा नजर आया। स्वामी प्रसाद मौर्य को पुरस्कृत करते हुए उन्होंने पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बना दिया। इधर चाचा शिवपाल के साथ भी वादा निभाते हुए उन्हें राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी दी। राजनीतिक गलियारे में इसका यही मायने निकाला गया कि भतीजे की निगाह में चाचा शिवपाल व स्वामी प्रसाद का कद बराबर है।  रामचरितमानस प्रकरण में समाजवादी पार्टी को नफा-नुकसान का आंकलन करें तो राजनीतिक विश्लेषक इसे घाटे का सौदा मानते हैं। इससे भाजपा को बैठे बिठाए सपा को सनातन धर्म विरोधी करार करने का एक मुद्दा मिल गया। समाजवादी पार्टी के अनेक नेता भी रामचरितमानस पर दिये गये स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान से खुश नहीं हैं।     दरअसल, भगवान राम और रामचरितमानस जन-जन के रोम-रोम में व्याप्त हैं। रामचरितमानस की जिस चौपाई पर स्वामी प्रसाद मौर्य सवाल उठा रहे हैं उस पर अनेक बहस हो चुके हैं और विद्वानों द्वारा उसकी सही व्याख्या भी सामने आ चुकी है। चाहे शबरी प्रकरण हो या राम-केवट संवाद भगवान राम ने ऊंच-नीच का भाव नहीं रखा। चौदह वर्ष के वनवास से लौटने पर राजपाट संभालने के बाद जनता की सोच को प्राथमिकता दी। मर्यादा पुरुषोत्तम, आदर्श चरित्र व जनहितकारी शासक के रूप में स्थापित हुए। समाजवादी पार्टी के एक नेता ने दबी जुबान से कहा कि भाजपा रामभक्तों पर गोलियां चलवाने का आरोप लगाती रहती है, अब खुलकर वह पार्टी के राम विरोधी होने का प्रचार करेगी।  लेखक डेली न्यूज़ ऐक्टिविस्ट अखबार के ब्यूरो चीफ व स्वतन्त्र टिप्पणीकार हैं.

प्रमोद जायसवाल

मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव ने समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव व चाचा शिवपाल यादव को मिला दिया। सारे गिले-शिकवे भुलाकर दोनों एक हो गए। भतीजे ने चाचा की शान में जमकर कसीदे पढ़े तो चाचा ने भी भतीजे को 'छोटे नेता' जी की उपाधि से विभूषित किया। नतीजन सपा प्रत्याशी डिम्पल यादव की रिकार्ड मतों से जीत हुई। तमाम कोशिशों व व्यूह रचना के बाद भी भाजपा उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा।

जीत से गदगद भतीजे ने चाचा को पार्टी में कद के मुताबिक सम्मानजनक पद देने की घोषणा की। उसके बाद चाचा भी पार्टी को मजबूत करने में जुट गए। मगर हाल में उपजे रामचरितमानस विवाद में दोनों की राहें जुदा नजर आई। अति पिछड़े और दलित वोटों को साधने के चक्कर में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ खड़े हो गए। इधर राजनीतिक परिपक्वता का परिचय देते हुए शिवपाल यादव ने स्वामी प्रसाद मौर्य के वक्तव्य से पल्ला झाड़ लिया और उसे उनका निजी विचार बताया। कहा कि उनके व्यक्तव्य से पार्टी का कोई लेना देना नहीं। अखिलेश यादव को रामचरितमानस प्रकरण में बहुत फायदा नजर आया। स्वामी प्रसाद मौर्य को पुरस्कृत करते हुए उन्होंने पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बना दिया। इधर चाचा शिवपाल के साथ भी वादा निभाते हुए उन्हें राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी दी। राजनीतिक गलियारे में इसका यही मायने निकाला गया कि भतीजे की निगाह में चाचा शिवपाल व स्वामी प्रसाद का कद बराबर है।

रामचरितमानस प्रकरण में समाजवादी पार्टी को नफा-नुकसान का आंकलन करें तो राजनीतिक विश्लेषक इसे घाटे का सौदा मानते हैं। इससे भाजपा को बैठे बिठाए सपा को सनातन धर्म विरोधी करार करने का एक मुद्दा मिल गया। समाजवादी पार्टी के अनेक नेता भी रामचरितमानस पर दिये गये स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान से खुश नहीं हैं। 


दरअसल, भगवान राम और रामचरितमानस जन-जन के रोम-रोम में व्याप्त हैं। रामचरितमानस की जिस चौपाई पर स्वामी प्रसाद मौर्य सवाल उठा रहे हैं उस पर अनेक बहस हो चुके हैं और विद्वानों द्वारा उसकी सही व्याख्या भी सामने आ चुकी है। चाहे शबरी प्रकरण हो या राम-केवट संवाद भगवान राम ने ऊंच-नीच का भाव नहीं रखा। चौदह वर्ष के वनवास से लौटने पर राजपाट संभालने के बाद जनता की सोच को प्राथमिकता दी। मर्यादा पुरुषोत्तम, आदर्श चरित्र व जनहितकारी शासक के रूप में स्थापित हुए। समाजवादी पार्टी के एक नेता ने दबी जुबान से कहा कि भाजपा रामभक्तों पर गोलियां चलवाने का आरोप लगाती रहती है, अब खुलकर वह पार्टी के राम विरोधी होने का प्रचार करेगी।

लेखक डेली न्यूज़ ऐक्टिविस्ट अखबार के ब्यूरो चीफ व स्वतन्त्र टिप्पणीकार हैं.


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