नया सवेरा नेटवर्क
निरंकारी सत्गुरु ने नववर्ष पर मानवता को दिया दिव्य संदेश
जौनपुर। 'ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति से जीवन में वास्तविक भक्ति का आरम्भ होता है और उसके ठहराव से हमारा जीवन भक्तिमय एंव आनंदित बन जाता है।'' उक्त उदगार निरंकारी सत्गुरु माता सुदीक्षा महाराज द्वारा म़िडयाहू पड़ाव स्थित संत निरंकारी सत्संग भवन में आयोजित एलईडी टीवी के माध्यम से 'नववर्ष" के विशेष सत्संग समारोह में उपस्थित विशाल संत समूह को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए। कार्यक्रम का लाभ लेने के लिए नगर एंव जिले के अन्य स्थानों से भी सैकड़ो की संख्या में भक्तगण उपस्थित हुए और सभी ने सत्गुरु के पावन प्रवचनों से स्वयं को आनिन्दत एंव कृतार्थ किया। सत्गुरु माता ने ब्राह्मज्ञान का महत्व बताते हुए कहा कि ब्राह्मज्ञान का अर्थ हर पल में इसकी रोशनी में रहना है और यह अवस्था हमारे जीवन में तभी आती है जब इसका ठहराव निरंतर बना रहे, तभी वास्तविक रूप में मुक्ति संभव है। इसके विपरीत यदि हम माया के प्रभाव में ही रहते है तब निश्चित रूप से आनंद की अवस्था और मुक्ति प्राप्त करना संभव नहीं। जीवन की सार्थकता तो इसी में है कि हम माया के प्रभाव से स्वयं को बचाते हुए अपने जीवन के उद्देश्य को समझे कि यह परमात्मा क्या है और हम उसे जानने हेतु प्रयासरत रहे। इस संसार में निरंकार एंव माया दोनों का ही प्रभाव निरंतर बना रहता है। अत: हमें स्वयं को निरंकार से जोड़कर भक्ति करनी है। अपने जीवन में सेवा, सुमिरण, सत्संग को केवल एक क्रिया रूप में नहीं, एक चैक लिस्ट के रूप में नहीं कि केवल अपनी उपस्थिति को जाहिर करना है अपितु निरंकार से वास्तविक रूप में जुड़कर अपना कल्याण करना है। मुक्ति मार्ग का उल्लेख करते हुए कहा कि मुक्ति केवल उन्हीं संतों को प्राप्त होती है जिन्होंने वास्तविक रूप में ब्राह्मज्ञान की दिव्यता को समझा और उसे अपने जीवन में अपनाया। जीवन की महत्ता और मूल्यता तभी होती है जब वह वास्तविक रूप से जी जाये दिखावे के लिए नहीं। वास्तविक भक्ति तो वह है जिसमें हम सभी हर पल, हर क्षण में इस निरंकार प्रभू से जुड़े रहे। अंत में सत्गुरु ने सबके लिए यही अरदास करी कि हम सभी अपने उत्तम व्यवहार एंव भक्तिमय जीवन से समस्त संसार को प्रभावित करते हुए सुखद एंव आनंदमयी जीवन जीये। सभी संतों का जीवन निरंकार का आधार लेते हुए शुभ एंव आनिन्दत रूप में व्यतीत हो।
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