नया सवेरा नेटवर्क
मीरगंज,जौनपुर। पुत्रवती माताओं ने आस्था और विश्वास के साथ मंगलवार को गणेश चौथ का ब्रात रखा। इस दौरान महिलाओं ने निर्जला व्रत रखकर भगवान गणेश की विधि विधान से पूजन किया। ब्राती महिलाओं ने बताया कि भगवान गणेश माघ चतुर्थी के दिन ही भगवान शिव और माता पार्वती की परिक्रमा की थी। महिलाएं चौथ का व्रत भगवान गणेश जी के पूजा अर्चना कर अपने सन्तानों की लंबी उम्र और उनके सुख सौभाग्य की वृद्धि के लिए रखती हैं। माताएं इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं । रात के समय चन्द्रमा को अर्घ्य देकर हीं व्रत का पारण किया जाता हैं। इस व्रत की पौराणिक कथा में बताया गया है कि सत्ययुग में महाराज हरिश्चंद्र एक प्रतापी राजा थे। उनके राज्य में कोई अपाहिज दरिद्र या दुखी नहीं था। सभी लोग व्याधि से रहित व दीर्घायु थे। उन्हीं के राज्य में एक ऋषिशर्मा नामक तपस्वी ब्रााह्मण रहते थे। जिन्हें एक 5 वर्ष का पुत्र था तभी उनकी मौत हो गयी। पुत्र का भरण पोषण उनकी पत्नी करने लगी। वह विधवा ब्रााह्मणी भिक्षा के द्वारा पुत्र का पालन पोषण करती थी। उसी नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार उसने बर्तन बनाकर आंवा लगाया पर आवां पका ही नहीं। बार बार बर्तन कच्चे रह गए। अपना नुकसान होते देख उसने एक तांत्रिक से पूछा तो उसने कहा कि किसी की बलि देने से ही तुम्हारा काम बनेगा। उसी दिन विधवा ब्रााह्मणी ने माघ माह में पड़ने वाली संकट चतुर्थी का व्रत रखा था। वह पतिव्रता ब्रााह्मणी गोबर से गणेश जी की प्रतिमा बनाकर सदैव पूजन किया करती थी। इसी बीच उसका पुत्र गणेश की मूर्ति अपने गले में बांधकर बाहर खेलने के लिए चला गया। तभी कुम्हार उस ब्रााह्मणी के पांच वर्षीय बालक को पकड़कर अपने आवां में छोड़कर मिटटी के बर्तनों को पकाने के लिए उसमें आग लगा दी। इधर उसकी माता अपने बच्चों को ढूंढने लगी। उसे न पाकर वह बड़ी व्याकुल हुई और विलाप करती हुई गणेश जी से प्रार्थना करने लगी। रात बीत जाने के बाद प्रात:काल होने पर कुम्हार अपने पके हुए बर्तनों को देखने के लिए आया जब उसने आवां खोल के देखा तो उसमें जांघ भर पानी जमा हुआ पाया और इससे भी अधिक आश्चर्य उसे तब हुआ, कि उसमें बैठे एक खेलते हुए बालक को देखा। इस घटना की जानकारी उसने राज दरबार में दी और राजा के सामने अपनी गलती भी स्वीकार की। तब राजा ने अपने मंत्री को बाहर भेज जानने के लिए कि वो पुत्र किसका है और कहां से आया था। जब विधवा ब्रााह्मणी को इस बात का पता चला तो वे वहां तुरंत पहुंच गई। राजा ने वृद्धा से इस चमत्कार का रहस्य पूछा तो उसने सकट चौथ व्रत के विषय में बताया। तब राजा ने संकट चौथ की महिमा को मानते हुए पूरे नगर में गणेश पूजा करने का आदेश दिया। उस दिन से गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगे। इस व्रत के प्रभाव से ब्रााह्मणी ने अपने पुत्र के जीवन को पुन: पाया लिया।
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