जौनपुर: शहीद क़ासिम सुलेमानी की याद हमेशा बाक़ी रहेगी:फज़ले मुमताज़ | #NayaSaveraNetwork
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मजलिस को खेताब करते मौलाना फज़ले मुम्ताज। |
नया सवेरा नेटवर्क
मस्जिद चहारसू रौजा मख्दूमशाह अढहन पर हुई मजलिसे तरहीम
जौनपुर। मस्जिद रौज़ा मख्दूम शाह अढहन चहारसू इन्तेज़ामिया कमेटी की जानिब से शहीद क़ासिम सुलेमानी, शहीद अबू मेंहदी अल मोहन्दिस की बरसी के मौके पर मजलिसे तरहीम का आयोजन मस्जिद चहारसू रौज़ा मख्दूम शाह अढहन में किया गया जिसमें तिलावते कुरआन पाक से मजलिस का शुभारंभ किया गया। मजलिस में गौहर अली ज़ैदी ने सोज़ख़्ाानी की और एहतेशाम जौनपुरी एवं अन्य शायरों ने अपने कलाम पेश किया। मजलिस को खेताब करते हुए मौलाना फज़ले मुमताज़ खां ने कहा कि शहीद क़ासिम सुलेमानी जैसी शख्सियत सदियों में दुनिया को हासिल होती है उन्होंने अपनी शहादत से इस्लाम के लिए अज़ीम कुर्बानी पेश की उन्होंने इराक़ में मौजूद नजफ, कर्बला,काज़मैन, सामरा के पवित्र रौज़ो की जिस तरह से हिफाज़त की और अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवादी संगठन आईएस एवं दायश के नेटवर्क को खत्म किया उसकी वजह से हमेशा उन्हें याद रखा जाएगा। शहीद क़ासिम सुलेमानी, अबू मेहदी अल मोहन्दिस के नेतृत्व में जो ईरान और इराक में इन्क़ेलाबी पैदा हुए उसने मध्य एशिया में साम्राज्यवादी सुपर पावर ताकतों का संरक्षण प्राप्त आंतकवादी संगठन की कमर तोड दी। क़ासिम सुलेमानी और उनके साथियों को दुनिया भर के मुसलमान विशेषकर शिया मुस्लिम कभी नहीं भूला सकते जिस तरह से तकरीबन 100 साल से शिया मुस्लिम जन्नतुल बक़ीअ मदीना (सऊदी अरब ) के रौज़ो के विध्वंस का ग़म मना रहें हैं वैसे ही शिया मुसलमान नजफ कर्बला,काज़मैन (इराक) के रौज़ो के विध्वंस हो जाने पर ग़म मनाते नज़र आते अगर शहीद क़ासिम सुलेमानी ने इराक के रौज़ो को आंतकवादी संगठनों के विध्वंस से न?बचाया होता। मजलिस में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और कर्बला के शहीदों के मसायब सुनकर मजलिस में उपस्थित जनों के आंखें नम हो गर्इं। बाद खत्म मजलिस अन्जुमन जाफरी मख्दूम शाह अढहन ने नौहा ख़्ाानी की। मजिलस में मोहम्मद वसीम हैदर, समाजसेवी अली मंजर डेज़ी, शौकत हुसैन, मोहम्मद अज़हर अब्बास, शहरयार, नियाज़ हैदर, अब्बास हैदर, आले हसन, नईम हैदर मुन्ने,मोहम्मद नासिर रज़ा गुडडु अक़ील, डाक्टर तक़वीम हैदर राहिल, सैफ अब्बास, फैज़ अब्बास इत्यादि उपस्थित थे सभी मोमेनीन ने शहीद क़ासिम सुलेमानी और शहीद अबू मेहदी मोहन्दिस और उनके शहीद साथियों की मग़फेरत के लिए फातेहा खानी की।
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