नया सवेरा नेटवर्क
बीते हुए लम्हे आज याद आ गए
उस नए साल में ठंडी थी ,
इस साल की शुरुआत में भी ठंडी है तो क्या बदला ?
तब भी हम चिंतित थे और आज भी चिंतित है?
हम कल भी आशंकित थे आज भी आशंकित हैं,तो बदला क्या ?
बीते साल में भी दुख की
लंबी लिस्ट थी ,
और आज भी एक लंबी किश्त है बताओ क्या बदला ?
सिर्फ तारीख और कैलेंडर ही बदलते हैं
कुछ लोगो के चरित्र भी बदलते हैं,
लेकिन अंदर से लोग यही सोचते हैं
कल भी इसी राह पर थे आज भी उसी राह पर चलते हैं।
यही जीवन की विडंबना है
सब खुश है ये कल्पना है ।
रितेश मौर्य
जौनपुर उत्तर प्रदेश
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