कविता| #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
शासकीय सेवा करनें नहीं मेवा खाने आया हूं
शासकीय सेवा में हरे गुलाबी छापने आया हूं
मजे से जनता को चकरे खिलाने आया हूं
वेतन पेंशन नहीं ऊपरी कमाई के लिए आया हूं
शासकीय सेवा करनें नहीं मेवा खाने आया हूं
गांव में ईमानदारी से रहकर पछताया हूं
बच्चों के लिए कुछ भी प्रॉपर्टी नहीं बनाया हूं
शासकीय दोस्तोंके दूसरे नामोंपर फ्लैट्स देखाहूं
शासकीय सेवा करनें नहीं मेवा खाने आया हूं
इतने साल ईमानदारीका जीवन जीकर पछतायाहूं
अब शासकीय सेवा में हरे गुलाबी छापनें आया हूं
अब सही निर्णय लेकर जनताको घुमाना चालू किया हूं शासकीय सेवा करनें नहीं मेवा खाने आया हूं
बताना मत अंदर खाने बहुत लफड़ा किया हूं
जन्म जाति सहित सभी प्रमाण पत्र जाली दिया हूं
अनुकंपा के बलपर ऊपर तक सेटिंग किया हूं
शासकीय सेवा करनें नहीं मेवा खाने आया हूं
चकरे खिलाकर माल देने प्रोत्साहित करता हूं
शिकायत पर सेटिंग कर काम रिजेक्ट करवाता हूं
महीनों कागजी कार्रवाई फिर रिजेक्ट करता हूं
शासकीय सेवा करनें नहीं मेवा खाने आया हूं
-लेखक - कर विशेषज्ञ स्तंभकार कानूनी लेखक चिंतक कवि एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
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