युवाओं में आज भी लोकप्रिय है बच्चन की मधुशाला | #NayaSaveraNetwork
नया सवेरा नेटवर्क
प्रयागराज। हालावाद के प्रणेता डॉ. हरिवंश राय बच्चन को उनकी जयंती पर रविवार को भावपूर्ण स्मरण किया जाएगा। बच्चन ने साहित्य की अनेक विधाओं में लेखन किया। लेकिन उनकी कालजयी काव्य कृति मधुशाला हमेशा से पाठकों की खास पसंद रही है। रचना के प्रकाशन के 87 साल बाद भी मधुशाला ऑनलाइन, ऑफलाइन खूब पढ़ी जाती है। खासकर युवा वर्ग मधुशाला को काफी पसंद करता है। पिछले माह इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में शहर के प्रमुख प्रकाशकों की ओर से लगाई गई पुस्तक प्रदर्शनी में डॉ. बच्चन की आत्मकथा क्या भूलूं क्या याद करूं और मधुशाला की मांग अधिक रही। युवाओं का मानना है मधुशाला में प्रतीक के माध्यम से अनेक भावों की सुंदर व्यंजना की गई है।
इविवि हिंदी एमए के छात्र गजेंद्र पाल ने कहा कि मधुशाला के बारे में सबसे पहले मित्रों और सीनियर से जाना। किताब में जो रचना सबसे ज्यादा प्रेरित करती है वह है राह पकड़ तू एक चला चल पा जाएगा मधुशाला..। अब यह राह पकड़ कर चलना हम छात्रों के लिए अपने लक्ष्य पर पहुंचना भी हो सकता है। हिंदी शोधार्थी रीमा का कहना है कि मैंने बच्चन की मधुशाला पहली बार स्नातक करते समय पढ़ी थी। यह अपने ढंग की अनूठी कृति है, जो समय-समाज के बारे में परिचित कराती है। यह पंक्ति बैर कराते मंदिर-मस्जिद, मेल कराती मधुशाला..। यह अपने आप में सामाजिक एकता का एक बड़ा संदेश है। कृति का पाठ्यक्रम में न लगना इसकी लोकप्रियता को कहीं से भी कम नहीं करती है। इविवि हिंदी विभाग के शोधार्थी अवनीश यादव ने बताया कि बच्चन की काव्यकृतियां लोकप्रियता से अधिक बौद्धिकता के लिहाज से पढ़ी जाती हैं।
साहित्यकार अनुपम परिहार ने बताया कि डॉ. बच्चन ने मधुशाला को कटघर स्थित आवास पर भी लिखा था। उन्होंने बताया कि कविवर पं. सुमित्रानंदन पंत की बच्चन के साथ 30 वर्ष तक मित्रता रही। इस आत्मीय संबंध को निभाते हुए पंतजी ने डॉ. हरिवंश राय बच्चन को 700 से अधिक पत्र लिखे थे। साथ ही सभी पत्र को संजोकर रखा और प्रकाशित भी किया।
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