मासूम बच्चे मन के सच्चे-सारे जग के आंख के तारे | #NayaSaveraNetwork

नया सवेरा नेटवर्क

  • आओ आक्रमिकता, शोषण के शिकार मासूम बच्चों को बचाएं
  • शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक शोषण के शिकार बच्चों के दर्द को स्वीकार कर निवारण करना परम मानवीय धर्म: एड. किशन भावनानी 

गोंदिया- दैनिक सौराष्ट्र भारत - वर्ष 1968 में रिलीज हुई फिल्म दो कलियां का 30 नवंबर 1967 को रिलीज 3 मिनट 48 सेकंड की अवधि का यह गीत, बच्चे मन के सच्चे, सारे जग के आंख के तारे, यह वो नन्हे फूल है जो भगवान को लगते हैं प्यारे जारी किया गया था, जिसे आज हर युवा को देखना सुनना समय की मांग है क्योंकि जिस तरह आज बच्चों के साथ क्रूरता, आक्रमकता, शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक शोषण किया जा रहा है वह न केवल अपराध है बल्कि मानवीय मूल्यों का अंतिम स्तर तक हनन मानवता का सबसे बड़ा अपराध और जीवन में कभी ना भुला पाने वाला वह क्षण है जिसे ईश्वर अल्लाह भी माफ नहीं करेगा क्योंकि बच्चे ईश्वर अल्लाह का ही एक रूप है। 

साथियों आज यूक्रेन-रूस युद्ध में भी टीवी चैनलों पर यूक्रेन के राष्ट्रपति के हवाले से बताया गया कि यूक्रेन के 2 लाख़ बच्चों को अनाथालय से अपहरण करके रूस के अलग-अलग शहरों में ले जाया गया है और कई बच्चों की युद्ध के दौरान मौत भी हुई है वैसे ही हर देश की विभिन्न रिपोर्टों में बच्चों के साथ क्रूरता के गंभीर आंकड़े हैं। आज हम बच्चों के आक्रमिकता के शिकार पर ही चर्चा करेंगे।

साथियों बात अगर हम पीड़ित बच्चों की करें तो दुनिया भर के उन बच्चों के दर्द को स्वीकार करना है जो शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक शोषण के शिकार हैं। यह बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है। इसका काम बाल अधिकारों पर कन्वेंशन 1989 (सीआरसी) (संयुक्त राष्ट्र, 2019) द्वारा निर्देशित है।यह दुनिया भर के लोगों के लिए बच्चों के खिलाफ, सभी रूपों में, दुर्व्यवहार की राक्षसीता के प्रभाव के बारे में जागरूक होने का समय है। यह एक ऐसा समय भी है जब संगठन और व्यक्ति बच्चों के अधिकारों की रक्षा पर केंद्रित जागरूकता अभियानों से सीखते हैं या उनमें भाग लेते हैंl 

साथियों बात अगर हम बच्चों के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक शोषण की करें तो, बच्चों पर सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव हाल के दशकों में दुनिया में अलग अलग जगहों पर जहां आतंकी घटनाएं होती हैं, वहां सबसे बड़ा नुकसान बच्चों को होता है. वे मानसिक और शारीरिक हिंसा के भी शिकार हो जाते है जिनके बारे में पता तक नहीं चलता। जहां भी किसी तरह का छोट सशस्त्र संघर्ष शुरू होता है उसमें सबसे ज्यादा कमजोर कड़ी बच्चे ही होते हैं और वे ही सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। 

शारीरिक शोषण -यह शारीरिक आक्रामकता से बच्चे को होने वाली चोट है। चोट लगने, धक्का देने, हिलाने, लात मारने, फेंकने और गर्म वस्तुओं से जलने से चोट लग सकती है। कई बच्चों का उनके किसी करीबी द्वारा शारीरिक शोषण किया जाता है। उन पर लगी चोटों से सैकड़ों हजारों बच्चे मर जाते हैं। जो लोग शारीरिक शोषण से बचे रहते हैं, उनके लिए भावनात्मक निशान शारीरिक निशान से ज्यादा गहरे होते हैं।

भावनात्मक शोषण - यह बाल शोषण का सबसे आम प्रकार है। बच्चों को उनके माता-पिता, शिक्षकों, साथियों या अन्य वयस्कों द्वारा सत्ता के पदों पर भावनात्मक रूप से दुर्व्यवहार किया जा सकता है। भावनात्मक शोषण से पीड़ित बच्चा कम आत्मसम्मान, सामाजिक वापसी और सामाजिक कौशल की कमी के लक्षण दिखाता है। भावनात्मक शोषण का शारीरिक या यौन शोषण की तुलना में कहीं अधिक लंबे समय तक चलने वाला नकारात्मक प्रभाव हो सकता है। 

साथियों बात अगर हम हाल ही में हुई कोविड महामारी का बच्चों पर असर पड़ने की करें तो, कोविड-19 की दूसरी लहर ने जो सबसे ज्यादा चिंता पैदा की है वह बच्चों का संक्रमित होना, पिछले साल पहली लहर में कोविड संक्रमण बच्चों  में नहीं पाया गया था, लेकिन दूसरी लहर में बच्चों में अच्छी खासी संख्या में संक्रमण पाया गया है। वहीं भारत में अभी  बच्चों के लिए वैक्सीन लगवाने की अनुमति दी गई है. ऐसे में अभिभावकों को बच्चों का खास ख्याल रखने की जरूरत है। उन्हें बच्चों पर खास तौर पर निगरानी रखनी होगी और देखना होगा कि उनमें किसी भी तरह के कोविड-19 संबंधी लक्षण दिखाई तो नहीं दे रहे हैं। इस दौरान वैसे तो संक्रमण से बचने और उसके इलाज के बारे में बहुत कुछ कहा जा चुका है, लेकिन इस मामलों में बच्चों की समस्याएं और उसके तनाव आदि से निपटने के लिए बहुत कम चर्चा हुई है। इन दो सालों में बच्चों को भावनात्मक निराशा, सामाजिक दूरियां जैसे की मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से दो चार होना पड़ा है, जो एक तरह से हमें समांतर महामारी में धकेलता दिख रहा है। 

साथियों बात अगर हम इसपर अंतरराष्ट्रीय दिवस को मनाने के इतिहास की करें तो, इस दिन को बाल अधिकारों की रक्षा करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के संकल्प की पुष्टि वाला दिन भी माना जाता है। लेकिन इसकी शुरुआत 19 अगस्त 1982 को तब हुई जब इजराइल की हिंसा में फिलिस्तीन और लेबनान के बच्चों को युद्ध की हिंसा का शिकार होना पड़ा था और  फिलिस्तीन ने संयुक्त राष्ट्र से इस बारे में कदम उठाने का आग्रह किया था।  इसी हिंसा का ध्यान रखते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 4 जून को इंटरनेशन डे ऑफ इनोसेंट चिल्ड्रन ऑफ एग्रेशन के रूप में मानाने का निर्णय लिया था।

साथियों साल 1982 में इजराइल ने दक्षिणी लेबनान पर हमला करने की घोषणा की थी। इस घोषणा के बाद इस हुए हमलों में बड़ी संख्या में निर्दोष लेबनानी और फिलिस्तीनी बच्चे या तो मारे या घायल हो गए या फिर वे बेघर हो गए। युद्ध हो या किसी अन्य तरह का सशस्त्र संघर्ष इसमें सबसे ज्यादा बुरा हाल बच्चों का होता है। वे सामान्य शिक्षा से तो वंचित होते ही हैं कुपोषण के भी शिकार हो जाते हैं। आक्रामकता के शिकार मासूम बच्चों का संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय दिवस बिना किसी अपवाद के बच्चों के अधिकारों की रक्षा करने की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि मासूम बच्चे मन के सच्चे - सारे जग के आंख के तारे, आओ आक्रमिता के शिकार मासूम बच्चों को बचाएं। शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक शोषण के शिकार बच्चों के दर्द को स्वीकार कर निवारण करना परम् मानवीय धर्म है। 

संकलनकर्ता लेखक - कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

*समस्त जनपद वासियों को शारदीय नवरात्रि, दशहरा, धनतेरस, दीपावली एवं छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं - ज्ञान प्रकाश सिंह, वरिष्ठ भाजपा नेता व चेयरमैन - श्रीमती अमरावती श्रीनाथ सिंह चैरिटेबल ट्रस्ट - #NayaSaveraNetwork*
Ad


*आचार्य बलदेव ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस | मॉडर्न विंग्स पब्लिक स्कूल, कोपा पतरहीं, जौनपुर एवं मैनेजमेंट गुरु अनिल यादव की तरफ से आप सभी को दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएं | #NayaSaveraNetwork*
Ad

*अक्षरा न्यूज सर्विस (Akshara News Service) | ⭆ न्यूज पेपर डिजाइन ⭆ न्यूज पोर्टल अपडेट ⭆ विज्ञापन डिजाइन ⭆ सम्पर्क करें ⭆ Mo. 93240 74534 ⭆  Powered by - Naya Savera Network*
Ad



नया सबेरा का चैनल JOIN करें