नया सवेरा नेटवर्क
जब तक जीवित रही नानी
उनकी कहानी
जीवित रही कानों में
फिर उसके बाद
फिज़ाओं में
हवाओं में
उड़ानों में
नानी की बातें, बातें जगत की थीं
उनकी पहेलियाँ जैसे भगत की थीं
जी हां, भक्ति-भाव से ही
जाना जा सकता हैं उन्हें
मगन रहती इतनी इष्ट के आराधन में
कि बच्चों और ईश्वर में नहीं कोई अंतर
इलाहाबाद से दूर सुदूर
किसी कस्बे में जनमी नानी
नाम स्नेहप्रभा !
पुकारा गया उन्हें - राजन !
उनका मन
रमा सदैव किताबों में
बताया करती वे कि कैसे-कैसे
कोचिंग पढ़ाते
उनके अधिकारी पिता इलाहाबाद में
कि जिन्होंने पढ़ाया था
रुपहले पर्दे के महानायक
जिसे कहा गया सदी का महानायक, को
हुलस-हुलस जाती नानी
बड़े पर्दे पर इस बड़े अभिनेता की हिंदी सुन
और अपनी हिंदी बार-बार परखती
पत्रिकाओं के पन्ने पलट
स्वेटर बुनने में माहिर
मुहल्ले भर की स्त्रियां
आती उनके पास
देखकर रह जाती दंग
सलाइयाँ उंगलियों पर चलती ऐसे
जैसे विचार कौंधते मस्तिष्क में
गनीमत कि एक भी घर
गलत पड़ जाए सलाइयों पर
स्वेटर के घर बनाने में प्रवीण
नानी ने बनाया अपना घर
जिसमें गहरे संकोच से रही ताउम्र
घूंघट काढ़े करती बड़ों से बातें
छोटों को देती सीख
नानी के साथ ही
चली गई सारी सीखें
तीज त्यौहार पर भेजती जो पकवान
- उनका स्वाद
अब बिम्ब की तरह नजर आता उनका चेहरा
दीपावली के दीयों में
होली के रंग अबीर गुलाल में
याद आती है उनकी भेजी गई चीजें
उपहार स्वरूप आम का अमावट और अचार
सूजी के लड्डू
लड्डू की मिठास
उनकी आवाज़ की भी मिठास
उन्हीं के साथ चला गया वो पर्दा
जो उनकी आवाज़ में
एक विरल संकोच के साथ
रहा आया करता था।
युवा लेखिका (शुचि मिश्रा) जौनपुर |
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