एक खतरनाक साजिश की सच्चाई: संयुक्त परिवार बनाम आधुनिक बाजार
प्रो.(कैप्टन) अखिलेश्वर शुक्ला @ नया सवेरा
भारतीय सामाजिक संयुक्त परिवार को खंड खंड करके एक समृद्ध बाजार विकसित करने का जो सुनियोजित कुचक्र चल रहा है। फल फूल और विकसित हो रहा है। इतना कुछ विदेशी आक्रमणकारीयों और लुटेरों ने भी नहीं किया जो आधुनिक काल में दिख रहा है। भारतीय संयुक्त परिवार: भारतीय संयुक्त परिवार में तीन-तीन पीढियां, पांच -पांच भाईयों का परिवार-एक आंगन, एक छत, एक चुल्हा, एक नल, एक रसोई घर, एक बैठका , एक गौशाला, एक कार/,स्कुटर/सायकिल/आदि के साथ, बच्चों में संस्कार, सामाजिक सुरक्षा , पर्व त्योहार में उत्साह, खर्च में सामुहिकता, बुजुर्गो की सेवा- सम्मान सहित हर्षोल्लास का माहौल रहता था। आधुनिक बाजार: एक खतरनाक साजिश के तहत सम्मान, सुरक्षा, समझदारी की जगह - मीडिया , मोबाइल एवं मल्टीप्लेक्स के सहारे परिवार को तोड़ने और ग्राहक बनाने की खतरनाक खेल शुरू की गई।
फ्रिडम, न्यूक्लियर फैमिली, माडर्न, सेल्फमेड जैसे शब्दों को ग्लैमराइज किया गया। सास -बहु की लड़ाई फिर जुदाई पर आधारित अनेकों सीरियल प्रदर्शित किया गया। जहां बड़े बुजुर्गो से सलाह लेने की परम्परा थी वहां कौन्सलर के महत्व को प्रचारित किया गया । यही नहीं एक की जगह पांच चुल्हे, पांच रसोईघर, पांच टीवी , पांच गाड़ी , एक की जगह पांच -पांच सभी सामग्री चाहिए। फिर बाजार की चांदी ही चांदी। ऐसे में टुटते परिवार से होने वाले लाभ को भला कौन छोड़ना चाहेगा। यही कारण है कि पश्चिमी सभ्यता ने भारतीय परम्परा को नष्ट -भ्रष्ट करके आधुनिक विकास के नाम पर जो मुहिम चलाई । उससे हम सभी भारतीय बाजार के गुलाम बनते जा रहे हैं।
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बुजुर्ग बोझ बन गये, बच्चे मोबाइल स्क्रीन में गुम हो गए , रिस्तेदार-संस्कार गायब हो रहे हैं। दिवाली में AMAZON का सहारा, मां के हाथों से खाने की जगह Zomato का खाना, दादी -नानी की जगह NETFLIX की कहानी...। यही नहीं जीवन साथी के चुनाव (विवाह) से लेकर रस्मों रिवाज तक बाजार पर आधारित होते जा रहे है। वैवाहिक आयोजन में आत्मीयता की जगह औपचारिकता एवं प्रदर्शन तक सीमित। निमंत्रण में नात -रिस्तेदार-घर-परिवार- सगे- संबंधियों की जगह वी.आई.पी. की खातिरदारी पर विशेष जोर। हर समस्या एक उन्माद, एकाकीपन से मानसिक अशान्ति ; पारिवारिक सामुहिक सुरक्षा का अभाव आदि ऐसी समस्याओं का सामना करने की स्थिति माञ आधुनिक बाजारवादी खतरनाक खेल का परिणाम है।
सरकारी प्रशासनिक स्तर से ज्यादा जरूरी यह है कि सामाजिक स्तर पर इस ख़तरनाक खेल के विरुद्ध मुहिम चलाकर जागरूकता अभियान को समय रहते आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। अभी समय है -:-संयुक्त परिवार को अमुल्य सम्पत्ति समक्षें, बच्चों को उपभोक्ता की जगह संस्कारवान बनाएं, बुजुर्गो का सम्मान करें।, बड़ों के अनुभव को डिग्री से महत्वपूर्ण समक्षें। भारतीय समाज को एक क्रांतिकारी मुहिम के लिए तैयार होने की आवश्यकता है।
"जागो भारत - जागो उपभोक्ता" जय हिन्द जय भारत
प्रो.(कैप्टन) डॉ अखिलेश्वर शुक्ला
पूर्व प्राचार्य/विभागाध्यक्ष-राजनीति विज्ञान- राजा श्री कृष्ण दत्त स्नातकोत्तर महाविद्यालय,जौनपुर।




