Mumbai News: रामनिरंजन झुनझुनवाला महाविद्यालय में ‘धर्मवीर भारती’ पर दो-दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद संपन्न
नया सवेरा नेटवर्क
मुंबई। हिंदी विद्या प्रचार समिति द्वारा संचालित रामनिरंजन झुनझुनवाला महाविद्यालय (सशक्त स्वायत्त) के हिंदी विभाग एवंमहाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी, मुंबईके संयुक्त तत्त्वावधान में धर्मवीर भारती जी की जन्मशती पर‘धर्मवीर भारती का साहित्य: संवेदना के विविध पक्ष’ विषय परदो–दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन किया गया।कार्यक्रम का शुभारंभ महाविद्यालय की छात्राओं द्वारा प्रस्तुत माँ सरस्वती की वंदना तदुपरांत महाराष्ट्र राज्यगीत के साथ हुआ।
उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष हिन्दी विद्या प्रचार समिति के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र सिंह जी ने अपने वक्तव्य में इस प्रकार के संगोष्ठियों को विद्यार्थियों के लिए विद्या का महायज्ञ मानते हुए कहा कि धर्मवीर भारती का समग्र साहित्य मानवीय संवेदना का दस्तावेज है। कार्यक्रम के उद्घाटकमहाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी, मुंबई के पूर्व कार्याध्यक्ष प्रो.डॉ. शीतलाप्रसाद दुबे जी रहे।बीज वक्तव्यवरिष्ठ साहित्यकार डॉ. विजय कुमार जी ने दिया तथामुख्य अतिथि के रूप में हिन्दी विद्या प्रचार समिति की निदेशिकाडॉ. उषा मुकुंदनजी उपस्थितरही।स्वागत वक्तव्य प्राचार्य डॉ. हिमांशुदावड़ा जी ने दिया। प्रस्ताविकी एवं अतिथियों का परिचय हिंदी विभागाध्यक्षा डॉ. मिथिलेश शर्मा जी ने दिया।परिसंवाद का प्रथम सत्र“धर्मवीर भारती का काव्य साहित्य: संवेदना के विविध पक्ष”के अध्यक्ष मुंबई विश्वविद्यालयके हिंदी विभाग के अध्यक्ष वरिष्ठ प्रो. डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय और मुख्य अतिथिभाषा साहित्य भवन, गुजरात विश्वविद्यालय के सहायक आचार्यडॉ. राजेन्द्र परमारजी उपस्थितथे।इस सत्र की विशेष अतिथि जोशी बेडेकर महाविद्यालय, मुंबई की प्रो. डॉ. जयश्री सिंह, एस.आई.ई.एस. महाविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. दिनेश पाठक एवं के.सी. महाविद्यालय हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. अजीत कुमार राय जी उपस्थित थे।इस सत्र के मुख्य वक्ताओं मेंडॉ. अर्चना दुबे एवं डॉ. जया आनंदद्वाराप्रपत्र प्रस्तुत किए गए। सत्र का संचालनविल्सन महाविद्यालय, मुंबई की हिंदी विभागाध्यक्षाडॉ. सत्यवती चौबे द्वारा कियागया। द्वितीय सत्र का विषय “धर्मवीर भारती का कथा साहित्य: संवेदना के विविध पक्ष” था। इस सत्र की अध्यक्षता सुप्रसिद्धकथाकारश्रीमती मधु कांकरियाजी ने की।मधु जी ने कथा में मानवीय संवेदना एवं उसकी प्रासंगिकता पर सारगर्भितविचार व्यक्त किए।इस सत्र के मुख्य अतिथि के रूप में एम.डी. कॉलेज, मुंबई के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. उमेश शुक्ल उपस्थित थे।इस सत्र के विशेष अतिथि के रूप में रुइया महाविद्यालय, मुंबई के हिंदी विभागाध्यक्षडॉ. प्रवीण बिष्टजी उपस्थित थे।डॉ. वेदप्रकाश दुबे एवं डॉ. रीना सिंहने अपने विद्वत्तापूर्ण प्रपत्र प्रस्तुत किए।इस सत्र का संचालन डॉ. गुप्ता अशोक कुमार द्वारा किया गया।
दूसरे दिन 13 दिसंबर, 2025, दिनशनिवार को परिसंवाद का तृतीय सत्र “धर्मवीर भारती का नाट्य साहित्य: संवेदना के विविध पक्ष”कीअध्यक्षतावरिष्ठ नाट्य समीक्षक,वाराणसीप्रो. डॉ. सत्यदेव त्रिपाठी के द्वारा की गई। इस सत्र के मुख्य अतिथिदिल्ली विश्वविद्यालय से पूर्व प्रो. डॉ. राजेन्द्र गौतम जी उपस्थित थे। इस सत्र के विशेष अतिथि के रूप में नाट्य समीक्षक डॉ. वसुधा सहस्रबुद्धे जी, कीर्ति महाविद्यालय, पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. दयानंद भुबाल, मुंबई विश्वविद्यालय, कलीना से डॉ. सचिन गपाट जी एवं सनातन धर्म आदर्श संस्कृत महाविद्यालय, हरियाणा के आधुनिक विभाग के अध्यक्ष डॉ. मनोज दुबे जी उपस्थित थे।प्रपत्र पाठकों मेंडॉ. संदेशा भावसार एवं डॉ. जनकनंदिनीद्वारा प्रपत्र प्रस्तुत किया गया।इस सत्र का संचालन एम.एम.पी. शाह महाविद्यालय, हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. प्रशांत देशपांडे ने किया।प्रपत्र वाचकों की अधिकता के कारण इस सत्र के समानांतर एक अन्य सत्र का आयोजन किया गया। इस सत्र के अध्यक्ष के रूप में बी.के. बिड़ला महाविद्यालय,कल्याण के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो.डॉ. बालकवि सुरंजे जी एवं मुख्य अतिथि के रूप में आर.जे. महाविद्यालय, मुंबई की समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. शशि मिश्रा जी उपस्थित थीं। प्रपत्र वाचकों में डॉ. ज्योत्सना राम, डॉ. राजश्री चौरसिया, श्रीमती नम्रता रूपेश गायकवाड़, डॉ. कंचन यादव, श्रीमती गीतांजलि त्रिपाठी,श्रीमती गीता गौरव भान्दिर्गे एवं श्रीमती बविता पाण्डेयने अपने विद्वत्तापूर्ण प्रपत्र प्रस्तुत किए। इस सत्र के संचालन का कार्य श्रीमती बविता पाण्डेय द्वारा किया गया।
परिसंवाद का चतुर्थ सत्र “धर्मवीर भारती का कथेतर साहित्य: संवेदना के विविध पक्ष”एम.एम. पी. शाह महिला महाविद्यालय, मुंबईकी पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. उषा मिश्रा की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। इस सत्र के मुख्य अतिथि वरिष्ठ संपादक एवं पत्रकार श्री हरीश पाठकएवं सुप्रसिद्ध लेखक श्री अनूप सेठीजी उपस्थित थे।इस सत्र के विशेष अतिथि नवभारत टाइम्स, मुंबई के पूर्व नगर संपादकश्री विमल मिश्र एवं बी. के. बिड़ला महाविद्यालय, कल्याण के प्रोफ्रेसर डॉ. श्यामसुंदर पाण्डेय जी उपस्थित थे।मुख्य वक्ताओंमें श्रॉफ महाविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. उर्मिला सिंह, एम.एम.पी. शाह महाविद्यालय, के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. प्रशांत देशपांडे एवं डॉ. वृषाली चौगुले जी ने शोधपूर्ण प्रपत्र प्रस्तुत किये।पी.एन. दोशी, महाविद्यालय, मुंबई के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. वेदप्रकाश दुबे ने इस सत्र का संचालन किया।
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कार्यक्रम के समापनसत्र की अध्यक्षता सोमैया विद्याविहार विश्वविद्यालय के भाषा एवं साहित्य संकाय के पूर्व अधिष्ठाता डॉ. सतीश पाण्डेय जी के द्वारा की गई, जिन्होंने अपने वक्तव्य में धर्मवीर भारती के साहित्य की तात्विक विवेचना करने पर जोर दिया।समापन सत्र की मुख्य अतिथि हिन्दी विद्या प्रचार समिति की निदेशिका डॉ. उषा मुकुंदन जी उपस्थित रही।कार्यक्रम के सफल समापन पर महाविद्यालयकी छात्रा मौसम यादव, ऐमन शेखतथा शोधार्थी अर्पिता त्रिवेदी ने भी अपना मंतव्य व्यक्त किया और ऐसे आयोजन को विद्यार्थियों के लिए हितकर बताया। इस राष्ट्रीय परिसंवाद की संयोजिका डॉ. मिथिलेश शर्मा अपने महाविद्यालय की प्रबंधन समिति अध्यक्ष डॉ.राजेन्द्र सिंह, निदेशकडॉ. उषा मुकुंदन एवं महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. हिमांशु दावड़ा तथा महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी, मुंबई के प्रति विशेष आभार व्यक्त किया, जिनके आर्थिक सहयोग से यह आयोजन संभव हो सका।इसके अतिरिक्त अन्य महाविद्यालयों से आए प्राध्यापकों तथा अपने ही कनिष्ठ व वरिष्ठ महाविद्यालयों के प्राध्यापकों व दो दिन तक कार्यक्रम में उपस्थित रहने वाले सभी छात्रोंके प्रति आभार व्यक्त किया।
कुल छह सत्रों में विभाजित इस परिसंवाद में देश के अलग-अलग राज्यों से आए हुए पचास से अधिक विद्वानों द्वारा शोध आलेख प्रस्तुत किये गये और २०० से अधिक साहित्य प्रेमियों की सहभागिता रही। इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. विजय कुमार जी ने बीज वक्तव्य में इस परिसंवाद को धर्मवीर भारती के साहित्य की सिर्फ महिमामंडन न करके सम्यक अध्ययन करने की बात कही। कथाकार मधु कांकरिया ने धर्मवीर भारती के बदलते परिवेश से रचनाक्रम में आई प्रौढ़ता पर प्रकाश डाला।वरिष्ठ संपादक एवं पत्रकार श्री हरीश पाठक ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारती जी मेरी जिंदगी में नहीं आते तो मैं आज इस वक्त, इस सभागार में आपके सामने खड़ा नहीं होता।दो-दिवसीय इस राष्ट्रीय परिसंवाद में ‘धर्मवीर भारती का साहित्य: संवेदना के विविध पक्ष’ पर गंभीरतापूर्वक अकादमिक चिंतन-मनन हुआ।शोधार्थियों व विद्यार्थियों को धर्मवीर भारती का साहित्यिक संवेदना के विविध पक्षको समझने हेतु एक नई दृष्टि मिली। अंत में राष्ट्रगान के साथ इस परिसंवाद का समापन संपन्न हुआ।

