Poetry: मन में तप का दीप जलाओ
नया सवेरा नेटवर्क
मन में तप का दीप जलाओ
–डॉ मंजू मंगल प्रभात लोढ़ा, वरिष्ठ साहित्यकार
कार्तिक पूर्णिमा का शुभ दिन आया,
दया, धर्म, त्याग, सेवा का पर्व छाया।
मन में तप का दीप जलाओ,
आत्मा का आँगन उजियालो।
जैन धरा का पावन आँगन,
शत्रुंजय पर्वत अनुपम द्वार, श्री ऋषभदेव प्रभु की की ध्यान भूमि,
मोक्ष मार्ग का ज्योति-स्तंभ अपार।
अनगिनत मुनि सिद्ध हुए,
तप की धारा पर्वत पर बहती,
यही सिद्धक्षेत्र, यही सिद्धवाणी,
मुक्ति की राह यहाँ से रहती।
भक्ति कहती लोक-विश्वास से,
आज के दिन अनंतों ने मोक्ष पाया,
ऐसी पावन भाव कथा में
शुद्ध श्रद्धा का दीप जलाया।
जो पालीताणा चढ़ जाता है
मन कर्मों से निर्मल हो जाए,
दर्शन पुण्य को करोड़ गुणा कर दें
यह विश्वास हृदय में समाए।
घर बैठे भाव से वंदन कर ले
मन तीर्थयात्रा कर आए,
श्री आदिनाथ के चरण स्मरण में
मुक्ति की आशा जगमगाए।
काशी के घाट आज सजे हैं,
गंगा की लहरें गान सुनाती,
स्नान से पाप क्षीण हो जाते,
भक्ति धारा मन को नहलाती।
आज के दिन देव स्वयं उतरते,
धरती रोशन बन जाती है,
इसलिए इसे देव-दीपावली कहते,
हर घाट पर ज्योति जगमगाती है।
आरती की लहरें नदियों पर
दीपों का सागर चमक उठे,
जहाँ-जहाँ जल का तट दिखे
वहाँ देव-दीपावली प्रकट उठे।
सिख धरा पर आज प्रकाश पर्व,
गुरु नानक की कृपा बरसती,
“एक ओंकार” का अमृत संदेश,
सेवा, सत्य, करुणा हृदय में बसती।
संगत-पंगत का पावन सिद्धांत
मानवता की राह दिखाए,
हर दिल में प्रेम का ज्योत जले
अहंकार का पर्दा हट जाए।
बौद्ध धारा का शांत संदेश,
मैत्री, दया, समता की प्रार्थना,
क्रोध-लोभ मिटकर मन निर्मल
बने ध्यान की मधुर साधना।
पूर्णिमा का चाँद अमृत बरसे,
अंधकार जीवन से हट जाए,
ज्ञान की रोशनी फिर से जले,
दया की धारा मन में आए।
त्रिपुरा की पावन पूर्णिमा
शिवशक्ति का दिव्य विहान,
त्रिपुरासुर विनाश दिवस यह
धर्म विजय का अमिट विधान।
महादेव की कृपा बरसी थी
अहंकार का हृदय हुआ शून्य,
अधर्म रूप त्रिपुर नगरी
जली प्रकाशित सत्य का मूल।
शक्ति और शिव का योग प्रतीक
अंतर्मन में शक्ति जगाओ,
अज्ञान रूप त्रिपुर को तोड़ो
बुद्धि में शिवतत्त्व बसाओ।
अंतर की तीन पुरियाँ जलें
मद, मोह, तमस मिट जाए,
उज्ज्वल हो चेतन का दीपक
आत्मा मुक्त प्रकाश फैलाए।
आज संकल्प यही हृदय में,
सत्य-शांति को जीवन बनाएं,
कार्तिक पूर्णिमा की इस बेला में
हर मन दीप समदीप्त हो जाए।


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