बड़ा ही हैरत-अंगेज है....!
बड़ा ही हैरत-अंगेज है....!
किसी आविष्कारक ने....!
दिमाग लगाकर...जूता बनाया होगा
पहले खुद प्रयोग किया होगा फिर..!
दूसरों को पहनना सिखाया होगा...
इसी बहाने लोगों के पाँवों को....
धूल,गरदा,कीचड़...और...
काँटों की चुभन से बचाया होगा....
मित्रों....उसके इस अविष्कार की....
महत्ता तो देखो....!
बचपन में...ये जूते खूब घिसते रहे..
राह के हर ईट-कंकड़....!
इस जूते से...ठुकते-पिटते रहे...
टूटती जूते की सिलाई रही...पर...
संग में यह एक सच्चाई रही...कि...
हर किसी की....गाहे-बगाहे....
इस जूते से....अक्सर ही...
होती....बलभर पिटाई रही....
गार्जियन का...शायद यह प्रसाद था,
पर मानता हूँ मैं....कि उन दिनों...!
हर शरारत की...यही एक दवाई रही
यह जूता....कभी किसी गरीब की...
मजबूरी और जज्बात होता......
वहीं किसी रायजादे की...
बकैती का....अंदाज़ होता...
यह जूता....धीरे-धीरे....!
लोगों की शान हो गया....
महफिलों में बड़े-बड़े लोगों की...
इज्जत का सामान हो गया....
यही जूता....समय के प्रवाह में...
चुराया भी जाने लगा....
सुरक्षित रखने को...विवाह-बारात में
सिरहाने भी लगाया जाने लगा....
हर समस्या का हल कराने में
बदनाम भी...अक्सर ये जूता हुआ...
कभी मुंशी जी की इज्जत भी....!
जूते से ही...निहारती रही...
गाँव-देश में हनक जूते की...मित्रों..
सदा ही डसती....फुफकारती रही....
बदलते दौर में तो प्यारे....
जूते का कैरियर....!
और ही ब्राइट हो गया....
पहले से...वजन भी उसका ....
लाइट से वेरी लाइट हो गया...और...
मॉड उसका....फ्लाइट हो गया है...
माहौल भी उसका.....
बड़ा ही टाइट हो गया है....
क़ायदे से गौर करें तो प्यारे....!
शासन-प्रशासन और राजनीति सबमें
इसकी अब भरपूर दखलंदाजी है....
बिना इसकी चर्चा के.....!
कोई मीटिंग....कोई सम्मेलन...
पूरा हो जाना...शायद दगाबाजी है..
मित्रों इसी जूते के उपयोग से....!
सफल...हर किसी की रंगबाजी है...
भले ही कोई यह कहता रहे...कि...
यह तो....टुच्ची चालबाजी है....
और तो और जूता तो अब हवाओं में
अक्सर खाता कलाबाजी है....
इसके उपयोग के बाद ही..…!
किसी को समझ में आता है....कि...
उसने करी कोई दगाबाजी है....
देखकर यह दुनियावी नज़ारा...
आपसे....सच बताऊँ प्यारे....
भले ही....दुनिया में नहीं है...!
अब जूते का आविष्कारक...पर...
उसकी आत्मा को.....!
निश्चित ही मिलती होगी,
इस बात की संतुष्टि....कि....
अविष्कार....जूते का उसका....!
बड़ा ही हैरत-अंगेज है....
हर कालखंड में...उसके जूते का...!
बना हुआ क्रेज है....
सदाबहार है....उसका जूता...
कभी नहीं आता.....!
उसका बुरा फेज़ है....
इस जूते की दुनिया में....!.
सारी दुनिया इंगेज है....
सचमुच....आविष्कार उसका....
जूते का....!
बड़ा ही हैरत-अंगेज है...
रचनाकार....
जितेन्द्र कुमार दुबे
अपर पुलिस उपायुक्त, लखनऊ
