Poetry: ग़मों की धुन्ध
नया सवेरा नेटवर्क
ग़ज़ल
" ग़मों की धुन्ध "
मेरी दुनिया,
बहार लगती थी।
राह भी,
खुशगवार लगती थी।
तुम संग में,
सवार लगती थी।
मेरी दुनिया,
बहार लगती थी।
राह भी,
खुशगवार लगती थी।।
पर,
न जाने कब यूँ,
कर बैठी बेवफाई थी।
छुपके नई यारी,
यूँ तूँ बनाई थी।
मुझे ग़म में,
यूँ तूँ रुलाई थी।
न जाने कब यूँ,
कर बैठी बेवफाई थी!
जब से तेरी,
यूँ हुई बेवफाई है,,
ग़मों की धुन्ध,
हर पल दिल में छाई है।
ग़मों की धुन्ध,
हर पल दिल में छाई है।।
जब से तेरी,
यूँ हुई बेवफाई है।
जब से तेरी,
यूँ हुई बेवफाई है।।
सूना सूना सा,
सब कुछ पराया लगता है।
पूरी दुनिया का ग़म,
दिल में समाया लगता है।।
मार डालेगी तेरी,
यूँ हुई जुदाई है।
जब से तेरी,,
यूँ हुई बेवफाई है।।
मार डालेगी तेरी,
यूँ हुई जुदाई है।
जब से तेरी,
यूँ हुई बेवफाई है।।
ग़ज़लकार
विजय मेहंदी
जौनपुर