दीपों का महासमर: काशी से अयोध्या तक जगमगा रहा भारत

दीपों का महासमर: काशी से अयोध्या तक जगमगा रहा भारत

अंधकार पर प्रकाश की विजय का अमर उत्सव

नया सवेरा नेटवर्क

कृष्णा से रामेश्वरम, वृंदावन से अयोध्या व महाकाल की नगरी उज्जैन से बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी तक यह रोशनी न केवल शहरों को बल्कि आत्माओं को भी प्रकाशित कर रही है। दीपावली संस्कारों, संस्कृति, भक्ति और मानवता का संगम है। आज हर दीप के प्रकाश में यही संदेश समाहित है, सत्य और अच्छाई हमेशा विजयी होती है। हर दीया, हर रंगोली, हर आरती इस संदेश को दोहराती है कि अंधकार पर प्रकाश की विजय सदा होती है। काशी, जो सदियों से आध्यात्मिक चेतना का केंद्र रही है, आज दीपों की रौशनी से नहाई हुई प्रतीत हो रही है। दशाश्वमेध घाट से लेकर अस्सी घाट तक दीपों की कतारें भक्तों के हृदयों में भक्ति और श्रद्धा का संचार कर रही हैं। बाबा विश्वनाथ और अन्नपूर्णा मंदिर में विशेष पूजा, आरती और श्रृंगार ने इस पर्व को और भी पावन बना दिया है


सुरेश गांधी


कार्तिक मास की अमावस्या, वर्ष की वह सबसे पावन रात्रि, जब संपूर्ण भारत माता अपने पुत्रों और पुत्रियों के दीपों की उजास में मुस्कुराती है। आज की यह रात केवल रोशनी की नहीं, बल्कि उम्मीद, विश्वास, भक्ति और आत्मप्रेरणा की भी रात है। दीपावली, जो मात्र एक पर्व नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय मनोदशा है, जो हर भारतीय के भीतर बसे देवत्व को उजागर करती है। आज जब पूर्व से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण तक हर घर-आँगन, हर मंदिर और हर घाट पर दीपक झिलमिला रहे हैं, तब ऐसा लगता है मानो पृथ्वी स्वयं स्वर्ग बन उठी हो। वैसे भी यह पर्व केवल रौशनी का प्रतीक नहीं, बल्कि आस्था, भक्ति, संस्कृति और सामाजिक समरसता का अद्वितीय उत्सव है। मतलब साफ है दीपावली केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों का भी पर्व है।

दीपों का महासमर: काशी से अयोध्या तक जगमगा रहा भारत

बाजारों में कारीगरों और दुकानदारों की मेहनत, घरों में रंगोली और मिट्टी के दीयों की सजावट, बच्चों की उत्सुकता, सब मिलकर दीपावली की जीवंतता को दर्शाते हैं। इस वर्ष पर्यावरण-संवेदनशील सजावट और स्वदेशी उत्पादों की रौनक ने इसे सामाजिक और पर्यावरणीय चेतना का पर्व भी बना दिया है। दीपावली हमें यह स्मरण कराती है कि हर व्यक्ति के भीतर अंधकार और प्रकाश का संघर्ष होता है। जब हम अपने भीतर के दीप को जलाते हैं, तब भय, लोभ और दुर्भावनाओं का अंधकार मिटता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि सत्य, धर्म और भक्ति की ज्योति कभी नहीं बुझती। सूर्यवंश की राजधानी, प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या आज दीपों के महासमर से आलोकित है। सरयू तट पर लहराते दीपों की कतारें जैसे ‘सत्यमेव जयते’ का साकार रूप बन गई हैं। हजारों वर्षों से चली आ रही परंपरा आज आधुनिक भव्यता के साथ खिल उठी है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में आयोजित ‘अयोध्या दीपोत्सव’ ने एक बार फिर विश्व की नज़रों को भारत की सांस्कृतिक गरिमा की ओर मोड़ दिया है। सरयू घाट से लेकर रामलला के दरबार तक दीयों की पंक्तियाँ अनंत आकाश के तारों को मात देती प्रतीत हो रही हैं। मुख्य मंच से जब योगी आदित्यनाथ ने दीप प्रज्वलित कर दीपोत्सव का उद्घाटन किया, तो पूरा नगर ‘जय श्रीराम’ के उद्घोष से गूंज उठा। ड्रोन से गिरती पुष्प वर्षा, रामायणकालीन झांकियाँ, और त्रेतायुग के प्रसंगों को जीवंत करती लेजर लाइट शो ने वातावरण को भक्ति से भर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संदेश भी इसी भाव को पुष्ट करता है, “दीपावली केवल घरों को नहीं, हृदयों को भी प्रकाशित करती है।”

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काशी की कंदीलें, गंगा के दीप : भक्ति और दर्शन का संगम


अयोध्या की ही तरह काशी में भी आज अद्भुत छटा बिखरी हुई है। माँ गंगा के तट पर बसे इस अविनाशी नगर में दीपावली मानो देवताओं का उत्सव बन जाती है। दशाश्वमेध घाट से लेकर अस्सी घाट तक दीपदान की अविरल श्रृंखला बह रही है। घाटों पर सजाए गए दीप जैसे जल की लहरों पर नृत्य करते हुए कह रहे हों, “प्रकाश सदा रहेगा, अंधकार मिट जाएगा।” काशी विश्वनाथ मंदिर में आज विशेष श्रृंगार, गंगा आरती और ‘अन्नकूट महोत्सव’ का आयोजन हुआ है। भक्तों की भीड़ इतनी अधिक कि गलियों में दीपों की रेखा किसी दिव्य मार्ग जैसी लग रही है। पुरोहितों के मंत्रोच्चार और घंटाध्वनि के बीच भक्तजन ‘हर हर महादेव’ का उच्चारण करते हुए माँ अन्नपूर्णा और बाबा विश्वनाथ से समृद्धि का आशीष मांग रहे हैं। सीईओ विश्वभूण मिश्र कहते है वाराणसी, जिसकी पावन घाटों की महिमा सदियों से अमर है, आज दीपावली के विशेष प्रकाश से जगमगा रही है। काशी के प्राचीन मंदिरों में पूजारी और श्रद्धालु मिलकर ऐसा माहौल बना रहे थे कि मानो समय थम गया हो और केवल भक्ति और दिव्यता का साम्राज्य शेष रह गया हो। गंगा नदी के तट पर लगाई गई आकाशदीप की कतारें ऐसा दृश्य प्रस्तुत कर रही थीं, मानो आकाश और पृथ्वी एक हो गए हों। प्रत्येक दीप एक कहानी कह रहा था, सत्य की, धर्म की और मानवता की। हर घर अपने आप में एक कला का केंद्र बन गया था। रंगोली की अलग-अलग आकृतियाँ, फूल, दीपक, ज्यामितीय आकार, हर घर में आनंद और सौंदर्य का संचार कर रही थीं। छोटे बच्चे और महिलाएँ मिलकर रंग-बिरंगे पाउडर, फूल और हल्दी-कुमकुम से घरों के द्वारों और आँगनों को सजाते हुए एक सांस्कृतिक संवाद प्रस्तुत कर रहे थे। मिट्टी के दीयों की सजावट और उन्हें घर-घर जलाना यह संदेश देता है कि छोटी-छोटी रोशनी भी अंधकार को मिटा सकती है। प्रत्येक दीया केवल रोशनी का प्रतीक नहीं, बल्कि यह हमारी आशा, प्रेम और सामूहिक विश्वास का संदेश भी है।

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आत्मदीप बनो


दीपावली का दार्शनिक संदेश सबसे गहरा है, अंधकार पर विजय केवल बाहर की नहीं, भीतर की भी होनी चाहिए। जैसे एक दीपक जलाने से कमरे का अंधकार मिट जाता है, वैसे ही ज्ञान और सद्गुणों का प्रकाश मनुष्य के भीतर के संशय और लोभ का अंधकार मिटा देता है। उपनिषदों में कहा गया है, “तमसो मा ज्योतिर्गमय” अर्थात् अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। भगवान श्रीराम के 14 वर्ष के वनवास के बाद लौटने की कथा केवल ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि यह प्रतीक है कि जब धर्म, सत्य और मर्यादा लौटती है, तो अंधकार अपने आप मिट जाता है। आज दीपावली पर हर मनुष्य जब अपने घर में दीप जलाता है, तब वह अपने भीतर के भय, दुर्भावना और स्वार्थ को भी जला देता है।

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घर-आँगन में माँ लक्ष्मी का आगमन

दीपों का महासमर: काशी से अयोध्या तक जगमगा रहा भारत

सुबह से ही शहरों और गांवों में दीपावली की तैयारियों का उल्लास फैला रहा। घरों की रंगोली, गोबर से बने दीपों की कतारें, खिड़कियों में जलती कंदीलें, बच्चों की खिलखिलाहट और मिठाइयों की सुगंध, यह सब मिलकर भारतीय गृहस्थ जीवन की पवित्रता को प्रदर्शित कर रहे हैं। आज शाम जैसे ही सूर्यास्त हुआ, हा किसी ने माँ लक्ष्मी, गणेश और कुबेर की आराधना की. सनातनियों में विश्वास हैं कि इस रात जब दीप जलता है तो लक्ष्मी स्वयं उस घर में प्रवेश करती हैं जहाँ सफाई, पवित्रता और श्रद्धा होती है। इस दिन का सबसे बड़ा प्रतीक दीपक है, मिट्टी से बना, तेल से भरा, रुई से सजा। मिट्टी से बना दीप इस बात का प्रतीक है कि साधारण जन भी प्रकाश का स्रोत बन सकता है।


बाजारों की रौनक, अर्थव्यवस्था का उत्सव


दीपावली केवल धार्मिक नहीं, आर्थिक दृष्टि से भी भारत की आत्मा है। पिछले कई दिनों से बाजारों में जो भीड़ उमड़ रही थी, आज उसका चरम देखने को मिला। सुनारों की दुकानों पर सोने-चांदी के सिक्कों की चमक, मिठाई की दुकानों पर कतारें, फूलों की महक और दीयों की बिक्री ने पूरे देश को आर्थिक गति दी है। यह पर्व छोटे दुकानदारों और कारीगरों के लिए उम्मीद का प्रतीक बनता है। इस वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘वोकल फॉर लोकल’ संदेश के बाद मिट्टी के दीयों, घरेलू उत्पादों और स्वदेशी वस्तुओं की बिक्री में अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की गई है। वाराणसी के गोदौलिया, लखनऊ के हजरतगंज, कानपुर के नवीन मार्केट, दिल्ली के सरोजिनी नगर से लेकर मुंबई के भुलेश्वर तक बाजारों में रौनक देखते ही बनती है।

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